खतरनाक हो सकता है पैदायशी दिल का रोग। घर में बच्चे का आना पूरे परिवार के लिए सबसे महत्वपूर्ण पल होता है, लेकिन अगर यह पता चले कि आपका बच्चा शरीर से सामान्य नहीं है तो पैरों तले की जमीन खिसक जाती है। सत्य यही है कि कुछ बच्चे पैदायशी दिल का रोग लेकर पैदा होते हैं। जन्मजात दिल की बीमारी ऐसा ही रोग है। जन्मजात होने वाली बीमारियों में यह आम तौर पर देखा जाने वाला रोग है।
जन्मजात दिल की बीमारी वह होती है, जब बच्चे के दिल का विकास सही ढंग से नहीं हो पाता है। गर्भावस्था के पांचवें सप्ताह में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी होने से बच्चे का दिल विकसित नहीं हो पाता है। इस अवस्था में ही बच्चे का हृदय एक ट्यूब के रूप से दिल का आकार लेता है। कुछ कारणों से इसका खतरा बढ़ने का अंदाजा लगाया जाता है, जैसे ‘डाउन सिन्ड्रोम’। यह ऐसा आनुवांशिक विकार है जो बच्चे के सामान्य शारीरिक विकास में बाधा डालता है और सीखने की क्षमता को प्रभावित करता है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कोई संक्रमण जैसे रुबेला या फ्लू आदि के संपर्क में आने से भी ऐसा हो सकता है या फिर गर्भवती महिला को अनियंत्रित टाइप-1 या टाइप-2 मधुमेह की समस्या हो। यदि गर्भावस्था के दौरान महिला शराब का सेवन करती है तो इससे भी बच्चे के विकास पर गलत असर हो सकता है। गर्भावस्था की पहली तिमाही में किसी प्रकार की दवा जैसे ब्रूफेन, मिर्गी की दवा, खून पतला करने की दवा के सेवन से बच्चे के दिल में समस्या उभर सकती है। इस बीमारी का पता गर्भावस्था के दौरान ही अल्ट्रासाउंड से लगाया जा सकता है। लेकिन कुछ केसों में इसका पता नहीं चल पाता है।
बीमारी के लक्षण
दिल की धड़कन बहुत तेज हो जाती है। तेज सांसें चलने लगती हैं। अत्यधिक पसीना आना, अधिक थका-थका महसूस करना या सुस्त पड़े रहना, छाती में दर्द, सही ढंग से दूध न पी पाना, बच्चे के दूध पीते समय बहुत तेज-तेज सांस लेना या थकावट महसूस होना, व्यवहार में चिड़चिड़ापन होना, किसी से सही से बात न करना, खाने-पीने में ना-नुकुर करना आदि इसके लक्षण हैं। कुछ बच्चों के पैदा होते ही ये लक्षण उभरने लगते हैं, लेकिन कुछ केस में ये लक्षण देर से सामने आते हैं। ऐसे बच्चों में आगे चलकर कुछ अन्य समस्याएं उभर सकती हैं। जैसे उनका सही से विकास नहीं हो पाना, बार-बार छाती में संक्रमण होना जिसे आरटीआई के नाम से जाना जाता है। इसमें पीड़ित को अक्सर छाती में संक्रमण, गले में तकलीफ, सर्दी-खांसी व जुकाम रहता है। दिल में संक्रमण का स्पष्ट लक्षण दिखते ही डॉक्टर से सलाह लें।
दिल का फेल होना
जहां हृदय उचित दबाव में सही से रक्त पंप नहीं कर पाता है तो दिल फेल हो जाता है। गर्भावस्था के दौरान ईको कार्डियोग्राफी नामक अल्ट्रासाउंड टेस्ट से बच्चों में जन्मजात दिल की बीमारियों का पता लगाया जा सकता है। यह गर्भावस्था के 18वें से 20वें सप्ताह के दौरान किया जाता है। इसके अलावा इलेक्ट्रो कार्डियोग्राम यानी ईसीजी, छाती का एक्सरे, कार्डियक कैथराजेशन जैसी जांच करके बच्चे में जन्मजात दिल की बीमारियों का पता लगाया जा सकता है।
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क्या है उपचार
दिल में छोटा-सा छेद होना या अन्य छोटी समस्याओं से कोई बड़ी दिक्कत नहीं आती है। जैसे-जैसे बच्चे की सेहत सुधरती है, इस समस्या से निजात मिलने लगती है। लेकिन यदि ऐसी समस्याओं से बच्चे को अधिक तकलीफ होती है तो सर्जरी की आवश्यकता होती है। सर्जरी से 80 फीसदी बच्चों की जन्मजात दिल की बीमारियां ठीक हो जाती हैं। लेकिन उन्हें समय-समय पर पूरे जीवन हृदय की जांच कराते रहना चाहिए। खास बात यह है कि बच्चों की हरकत एवं व्यवहार पर गौर करते हुए उनपर उस समय निगरानी रखें, जब वे दूध पी रहे होते हैं।
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सांस फूलना एवं छिद्रों की समस्या लाइलाज नहीं है। एंजियोप्लास्टी विधि से नौनिहालों को नवजीवन देने की कोशिश आज कामयाब है। ऑपरेशन के दौरान चीर-फाड़ नहीं की जाती है। पल भर में नई जिंदगी के लिए यह सुनिश्चित कर लें कि गर्भवती महिला ने फ्लू रुबेला का टीका लगवाया हो। ड्रग्स लेना या शराब का सेवन नहीं करे। अपने मधुमेह को नियंत्रण में रखें। पहली तिमाही के दौरान 400 माइक्रोग्राम के फोलिक एसिड का सेवन करें। गर्भावस्था के दौरान कोई भी दवा लेने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।