मंत्ररहस्य : ऊर्जा अविनाशिता के नियमानुसार ऊर्जा कभी भी नष्ट नहीं होती है, वरन् एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती रहती है। अतः जब हम मंत्रों का उच्चारण करते हैं, तो उससे उत्पन्न ध्वनि एक ऊर्जा के रूप में ब्रह्मांड में प्रेषित होकर जब उसी प्रकार की ऊर्जा से संयोग करती है तब हमें उस ऊर्जा में छुपी शक्ति का आभास होने लगता है।
जो मन का त्राण (दुःख) हरे या दूर करे उसे मंत्र कहते हैं। यहां यह जानना जरूरी मंत्रों में प्रयुक्त स्वर, व्यंजन, नाद व बिंदु देवताओं या शक्ति के विभिन्न रूप एवं गुणों को प्रदर्शित करते हैं। यह भी मान्यता है कि मंत्राक्षरों, नाद, बिंदुओं में दैवीय शक्ति छुपी रहती है।
मंत्ररहस्य : मंत्र उच्चारण से ध्वनि उत्पन्न होती है, उत्पन्न ध्वनि का मंत्र के साथ विशेष प्रभाव होता है। जिस प्रकार किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु के ज्ञानर्थ कुछ संकेत प्रयुक्त किए जाते हैं, ठीक उसी प्रकार मंत्रों से संबंधित देवी-देवताओं को संकेत द्वारा संबोधित किया जाता है, इसे बीज कहते हैं।
मंत्ररहस्य : विभिन्न बीज मंत्र इस प्रकार हैं।-
ॐ- परमपिता परमेश्वर की शक्ति का प्रतीक है।
ह्रीं- माया बीज, श्रीं- लक्ष्मी बीज, क्रीं- काली बीज, ऐं- सरस्वती बीज,क्लीं- कृष्ण बीज।
अलग अलग बीजमंत्रों के अलग अलग लाभ होते हैं मसलन-
कं- मृत्यु के भय का नाश, त्वचारोग व रक्त-विकृति में भी उपयोगी।
ह्रीं-मधुमेह और हृदय की धड़कन में उपयोगी।
घं-स्वप्नदोष व प्रदररोग में के लिए।
भं-बुखार दूर करने के लिए।
क्लीं-पागलपन में।
सं-बवासीर मिटाने के लिए।
वं-भूख प्यास रोकने के लिए।
लं-थकान दूर करने के लिए।
बं-वायु रोग और जोड़ों के दर्द के लिये।
बीज मंत्रों के अक्षरों के गूढ़ संकेत होते हैं। साथ ही इनके व्यापक अर्थ भी होते हैं। बीज मंत्रों के उच्चारण से मंत्रों की शक्ति बढ़ती है। क्योंकि, यह विभिन्न देवी-देवताओं के सूचक हैं मसलन ह्रीं इस मायाबीज में
ह्= शिव, र= प्रकृति,नाद= विश्वमाता बिंदु= दुखहरण है। इस प्रकार मायाबीज का अर्थ है- “शिवयुक्त जननी आद्य शक्ति मेरे दुखों को दूर करें।
श्री [श्री बीज या लक्ष्मी बीज]: इस लक्ष्मी बीज में श्= महालक्ष्मी,र= धन संपत्ति, ई= महामाया, नाद= विश्वमाता बिन्दु= दुखहरण है। इस प्रकार इसका अर्थ है धन संपत्ति की अधिष्ठात्री जगजननी मां लक्ष्मी मेरे दुख दूर करें।
ऎं [वाग्भव बीज या सारस्वत बीज]: इस वाग्भव बीज में ऎ= सरस्वती,नाद= जगन्माता बिंदु= दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ है-जगन्माता सरस्वती मेरे ऊपर कृपा करें।क्लीं [कामबीज या कृष्णबीज]: इस कामबीज में क = योगस्त या श्रीकृष्ण, ल= दिव्यतेज, ई= योगीश्वरी या योगेश्वर बिंदु= दुखहरण। इस प्रकार इस कामबीज का अर्थ है-राजराजेश्वरी योगमाया मेरे दुख दूर करें। कृष्णबीज का अर्थ है योगेश्वर श्रीकृष्ण मेरे दुख दूर करें। क्रीं [कालीबीज या कर्पूरबीज]: इस बीज मंत्र में क= काली, र= प्रकृति, ई= महामाया, नाद= विश्वमाता, बिंदु= दुखहरण है। इस प्रकार इस बीजमंत्र का अर्थ है, जगन्माता महाकाली मेरे दुख दूर करें। गं [गणपति बीज]: इस बीज में ग्= गणेश, अ= विघ्ननाशक एवं बिंदु= दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ विघ्ननाशक श्रीगणेश मेरे दुख दूर करें।
दूं [दुर्गाबीज]: इस दुर्गाबीज में द्= दुर्गतिनाशनी दुर्गा, = सुरक्षा एवं बिंदु= दुखहरण है। इस प्रकार इसका अर्थ है-दुर्गतिनाशनी दुर्गा मेरी रक्षा करे और मेरे दुख दूर करें।
हौं- [प्रसादबीज या शिवबीज]: इस प्रसाद बीज में ह्= शिव, औ= सदाशिव एवं बिंदु= दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ है-भगवान शिव एवं सदाशिव मेरे दुखों को दूर करें।
कहा जाता है कि बीज मंत्रों की शक्ति इतनी असीम होती है, कि देवताओं को भी वशीभूत कर लेती है और जप अनुष्ठान के माध्यम से देवता से साक्षात्कार करा देती है।मंत्रों में छुपी अलौकिक शक्ति का प्रयोग कर जीवन को सफल एवं सार्थक बनाया जा सकता है। लेकिन इसके प्रयोग के पहले यह जानना जरूरी है कि ‘मंत्र’ क्या है। सरल भाषा में इसे इस तरह समझा जा लकता है।
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मंत्ररहस्य : किसी देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए प्रयुक्त शब्द समूह मंत्र कहलाता है, जो शब्द जिस देवता या शक्ति को प्रकट करता है, उसे उस देवता या शक्ति का मंत्र कहते हैं।विस्तार से ऐसे भी समझ सकते हैं कि मंत्र एक ऐसी गुप्त ऊर्जा है, जिसे हम जागृत कर अखिल ब्रह्मांड में पहले से ही उपस्थित इसी प्रकार की ऊर्जा से एकात्म कर उस ऊर्जा के लिए देवता (शक्ति) से सीधा साक्षात्कार कर सकते हैं।
मंत्रों में देवी-देवताओं के नाम भी संकेत मात्र से दर्शाए जाते हैं, जैसे राम के लिए ‘रां’, हनुमानजी के लिए ‘हं’, गणेशजी के लिए ‘गं’, दुर्गाजी के लिए ‘दुं’ का प्रयोग किया जाता है। इन बीजाक्षरों में जो अनुस्वार या अनुनासिक (जं) संकेत लगाए जाते हैं, उन्हें ‘नाद’ कहते हैं। नाद द्वारा देवी-देवताओं की अप्रकट शक्ति को प्रकट किया जाता है।