मैं अकेली नहीं रही ममता, अपने दुख दर्द का मैं साथी हूः ममता मेहरोत्रा की ये पंक्ति खुद ब खुद उनके संघर्ष की कहानी कह जाती है। लेकिन राष्ट्...
इंटरव्यू

Success story-मैं अकेली नहीं रही ममता, अपने दुख दर्द का मैं साथी हूंः साहित्यकार ममता मेहरोत्रा

पटना, प्रेम। मैं अकेली नहीं रही ममता, अपने दुख दर्द का मैं साथी हूः साहित्यकार ममता मेहरोत्रा की ये पंक्ति खुद ब खुद उनके संघर्ष की कहानी कह जाती है। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिलब्ध साहित्यकार ममता मेहरोत्रा निम्नलिखित पक्तियों पर भरोसा करते हुए लगातार आगे भी बढ़ती रहीं।   

आसमां क्या चीज़ है,

वक्त को भी झुकना पड़ेगा

अभी तक खुद बदल रहे थे,

आज तकदीर को बदलना पड़ेगा।

संभावनाओं की कोई कमी नहीं है और अगर आपके पास जूनून है तो कोई मंजिल दूर नहीं है। जानी मानी लेखिका, समाज सेविका और साहित्यकार ममता मेहरोत्रा आज के दौर में न सिर्फ साहित्य जगत में धूमकेतु की तरह छा गयी हैं बल्कि शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र के क्षितिज पर भी सूरज की तरह चमक रही हैं। उनकी ज़िन्दगी संघर्ष, चुनौतियों और कामयाबी का एक ऐसा सफ़रनामा है, जो अदम्य साहस का इतिहास बयां करता है।

 बहुमुखी प्रतिभा की धनी साहित्यकार ममता मेहरोत्रा ने अब तक के अपने कार्यकाल के दौरान कई चुनौतियों का सामना किया और हर मोर्चे पर कामयाबी के परचम लहराये। ममता मेहरोत्रा लेखन के क्षेत्र में लघु कथा, निबंध, लंबी कविताएं एवं नाटकों के कथ्य की रचना कर चुकी है। ममता मेहरोत्रा की रूचि लघु फिल्मों एवं डाक्यूमेंट्री के निर्माण में भी है। साहित्यकार ममता मेहरोत्रा सामाजिक सरोकार और शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है।

 नवाबों के शहर उत्तर प्रदेश के लखनऊ में जन्मी ममता मेहरोत्रा प्रारिंभिक शिक्षा लखनऊ के सुप्रसिद्ध लरुटो कॉन्वेंट से की। ममता मेहरोत्रा को पढ़ाई लिखाई में काफी रूचि रही थी। ममता मेहरोत्रा के पिता प्रेम नाथ खन्ना और मां मीना खन्ना घर की बड़ी बेटी को अपनी राह खुद चुनने की आजादी दी थी। ममता मेहरोत्रा उन गिनी चुनी चंद लोगों में शामिल हैं, जिन्हें उन दिनों आईसीएससी बोर्ड में हिंदी साहित्य में 90 प्रतिशत नंबर मिला  था।

उसके बाद उन्होंने आईटी कॉलेज से साइंस में ग्रेजुएशन किया। ममता मेहरोत्रा उन दिनों अधिवक्ता, डांसर या लेक्चरार बनना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने ने प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद में कुमकुम श्रीवास्तव से कत्थक का चार वर्षीय कोर्स भी पूरा किया था।

 वर्ष 1991 में ममता मेहरोत्रा की शादी आईएस आफिसर बज्रेश मेहरोत्रा के साथ हुई, जिसके बाद वह बिहार आ गयीं। ममता जी अपने पति मे साथ तत्कालीन बिहार अब झारखंड के साहेबगंज जिले में चली गयी। शादी के बाद इनके जीवन में ठहराव सा आ गया था। शादी के तुरंत बाद ये मां बनीं और वह अपने बच्चों के परवरिश में लग गयी। साहेबगंज के बाद वो गया, बेतिया, छपरा, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया लोहरदग्गा, चाईंबासा, जमशेदपुर, पटना कई जगहों पर पति के ट्रांसफर की वजह से घूमती रहीं। इस दौरान इनकी पढाई-लिखाई भी रूक सी गयी। इस

बीच इन्होंने वर्ष 1993 से सामाजिक क्षेत्र में काम करने लगी। ममता बताती हैं कि जब उनके पति का तबादला मुजफ्फरपुर हुआ तब हमलोग गांव-गांव जाकर महिलाएं के लिए सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाते थे। उस समय के लिए ये नई बात थी, नयी-नयी सोच थी। इसको हमलोग एक मुकाम देने की कोशिश करते थे कि जो गांव की महिलाएं हैं, उन्हें किस तरह से आत्मनिर्भर बनाया जा सके। जब इनके दोनों बच्चे कुछ बड़े हुये तब उनहोंने एक बार से पढ़ाई शुरू की और इसी क्रम में 1997 में  जूलॉजी में इन्होंने पीजी किया।

 जुनूँ है ज़हन में तो हौसले तलाश करो,

  मिसाले-आबे-रवाँ रास्ते तलाश करो।            

 इज़्तराब रगों में बहुत ज़रूरी है,

उठो सफ़र के नए सिलसिले तलाश करो

    2002 ममता मेहरोत्रा ने घरेलू हिंसा को रोकने के प्रयास के तहत गया में भारत की पहली वूमेन हेल्प लाइन सूर्या महिला कोषांग शुरू की। वो कहती हैं कि उन्होंने इस हेल्पलाइन से जुड़कर कम से कम 1000 घरेलू हिंसा के मामलों को सहजता पूर्वक सुलझाया है। इसके लिये उन्होंने काफी शोध भी किया था और और वो रेड लाइट एरिया में भी जाने से नही हिचकीं। बाद में उन्होंने किताब We Women भी लिखा, जिसमें इनसे जुड़े  उनके निजी अनुभव हैं। Success story: दीदीजी से पर्यावरण लेडी ऑफ बिहार बन गई डा.नम्रता आनंद

 वाक़िफ़ कहाँ ज़माना हमारी उड़ान से,

 वो और थे जो हार गए आसमान से।  

कुछ इसी तर्ज पर वो काम के साथ संघर्ष करती रहीं और आगे बढ़ती रहीं। वर्ष 2005 में वो अपने पति के साथ राजधानी पटना आ गयी जो उनके करियर के लिये अहम साबित हुआ। वो कहती हैं कि लेखन में उनका रूझान बचपन से ही है। जब वो छोटी थीं, तब से ही रोज डायरी लिखा करती थीं। वो वेहद ही संवेदनशील स्वभाव की हैं। जब भी कुछ उनके दिल को छूता है या प्रभावित करता है तो वो उसे कागज पर उकेर लेती हैं। ममता मेहरोत्रा की लिखी पहली पुस्तक (कहानी संग्रह) 2005 में प्रकाशित हुई। इसके बाद से अबतक 50 किताबें वो लिख चुकी हैं। ममता मेहरोत्रा की लिखी कहानियाँ कादम्बनी और अन्य स्थानीय समाचार पत्रों में छपती रही हैं।

 सामयिक परिवेष तथा वर्तमान संदर्भ जैसी पत्रिकाओं का संपादन भी उन्होंने किया है।वह मानवाधिकारों के लिए गणादेश अखबार के लिए कॉलम भी लिखती रही हैं। उनकी कई रचनाएं अलग विषयों पर अलग अलग अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। इसी के साथ उन्होंने कक्षा 1 से 9 तक के विद्यार्थियों के लिए पाठ्य पुस्तकें भी लिखी हैं।लिंग-भेद पर उनकी हिन्दी व अंग्रेजी में कई पुस्तकें छप चुकी हैं।

  उसे गुमाँ है कि मेरी उड़ान कुछ कम है,

  मुझे यक़ीं है कि ये आसमान कुछ कम है।

   कुछ इसी विश्वास के साथ  ममता मेहरोत्रा कादाम्बनी क्लब और बाद में सामायिक परिवेश समेत कई सामाजिक संसथाओं की स्थापना की और उससे जुड़कर काम करती रहीं। वर्ष 2017 में ममता मेहरोत्रा राजधानी पटना के प्रतिष्ठित स्कूल डीपीएस वर्ल्ड की प्रिसिंपल बनीं। इससे पूर्व वो डीएवी के कई ब्रांच में बतौर प्रिसिंपल रह चुकी थी।

  रख हौसला कभी वो मन्ज़र भी आएगा,

 प्यासे के पास चल के समंदर भी आयेगा।

थक कर ना बैठ ऐ मंज़िल के मुसाफिर,

  मंज़िल भी मिलेगी और मजा भी आयेगा।

        इन पंक्तियों पर भरोसा करने वाली ममता कलम के जादूगर मुंशी प्रेमचंद को प्रेरणा मानती हैं। साथ ही काम ऐसा कि बिहार की वो पहली महिला बनीं जिनका नाम ‘लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस’ में भी दर्ज किया गया है। उनकी किताब ‘माटी का घर’ जिस पर आठ भाषाओं में समीक्षात्मक विश्लेषण की किताब प्रकाशित हुई है, उसके लिए उन्हें यह उपलब्धि मिली है। यह किताब ‘माटी का घर’ की शोधात्मक समीक्षा के नाम से है| इस शोध प्रबंधन का प्रकाशन दिल्ली की एक पब्लशिंग हाउस द्वारा किया गया है। और इसपर शोध समीक्षा कुमार उत्पल ने की है| हिंदी, संस्कृत, भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका, वज्जिका, और अंग्रेजी में शोध समीक्षा प्रकाशित हुई है|  ममता मेहरोत्रा को दैनिक भास्कर समूह की ओर से उनके सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये देश के नौ प्रभावशाली लोगों में शामिल कर सम्मानित किया जा चुका है। इसके साथ ही राज्य और राज्य से बाहर इन्हें कई छोटे-बड़े सम्मानों से नवाजा गया है।

 ममता जी ने कहा कि मैंने जीवन की बिहार में शुरुआत की। फिर बिहार ही मेरी कर्मभूमि हो गयी। यहाँ रहते हुए मुझे लगभग 35 साल हो गए। अब तो मैं यह भी तय नहीं कर पाती कि मैं बिहारवासी हूँ या यूपी की हूँ। क्यूंकि मैं अपने काम की वजह से बिहार को रिप्रजेंट करती हूँ इसलिए खुद को बिहारी मानती हूँ। मुझे उम्र के इस पड़ाव पर भी पढ़ने का, डिग्री लेने का, निरंतर आगे बढ़ने का जुनून है। मैं आज भी अपने आप को एक विद्यार्थी हीमानती हूँ. तो कहीं-न कहीं वो सीखने की प्रक्रिया आज भी चल रही है, जिसके वजह से अंदर से मैं अपने आप को बहुत जवां महसूस करती हूँ।

ममता मेहरोत्रा ‘यौन अपराधों से बालकों को संरक्षण अधिनियम-2012’ के तहत भी काम कर रही हैं।वो कहती हैं कि महिला होना ही अपने आप में चुनौती है। आज भी समाज में यह धारणा व्याप्त है कि किसी महिला की सफलता के पीछे उसके रूप और आकर्षण की अहमियत होती है। हम महिलाएं और बेटियां आज भी पुरूषों और बच्चों को इस बात के लिए प्रभावित या ट्रेंड करने में सफल नहीं हो पा रहीं हैं कि वो हमें उचित सम्मान दें, जिसकी हम हकदार हैं। मेरे कार्यक्षेत्र में मुझे अपने पति से बहुत सहयोग मिला. किसी भी कार्य में उनका हस्तक्षेप नहीं रहता है। इन्हें युवा रोल मॉडल मानते रहे हैं। वो युवाओं को मोटिवेट करते हुये कहती हैं –

  टूटने लगे हौसले तो ये याद रखना,

  बिना मेहनत के तख्तो-ताज नहीं मिलते,

  ढूंढ़ लेते हैं अंधेरों में मंजिल अपनी,

क्योंकि जुगनू कभी रौशनी के मोहताज़ नहीं होते…

Xpose Now Desk
मुकेश महान-Msc botany, Diploma in Dramatics with Gold Medal,1987 से पत्रकारिता। DD-2 , हमार टीवी,साधना न्यूज बिहार-झारखंड के लिए प्रोग्राम डाइरेक्टर,ETV बिहार के कार्यक्रम सुनो पाटलिपुत्र कैसे बदले बिहार के लिए स्क्रिपट हेड,देशलाइव चैनल के लिए प्रोगामिंग हेड, सहित कई पत्र-पत्रिकाओं और चैनलों में विभिन्न पदों पर कार्य का अनुभव। कई डॉक्यूमेंट्री के निर्माण, निर्देशन और लेखन का अनुभव। विविध विषयों पर सैकड़ों लेख /आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। कला और पत्रकारिता के क्षेत्र में कई सम्मान से सम्मानित। संपर्क-9097342912.