भारतीय समयानुसार 5 मई की रात आठ बजकर पैंतालीस मिनट से चंद्र ग्रहण की शुरुआत होगी।जैसे जैसे ग्रहण का समय नजदीक आता जाता है सभी लोग जाने अनजाने भयग्रस्त होने लगते हैं। एक दूसरे से पूछना शुरू कर देते हैं कि कब से कब तक रहेगा यह ग्रहण ? क्या करें इस अवधि में ? आदि आदि।
1. इन चार राशि वालों को रहना होगा सावधान।
2. साल का पहला चंद्र ग्रहण रू बदलेगा इन तीन राशि वालों का भाग्य।
3. इस चंद्र ग्रहण से इन राशि वालों के किस्मत के द्वार खुल जायेंगे।
4. गर्भवती महिलाएं भूलकर भी न करें सिलाई-कटाई, कैंची और चाकू का प्रयोग न करें। सब्जी न काटें।
ग्रहण चाहे सूर्य ग्रहण हो या चंद्र ग्रहण इनके आने की खबर आते ही इस तरह की भ्रम फैलाने वाली खबरें सुर्ख़ियाँ बनती हैं। कुछ ज्योतिषियों द्वारा यह आकलन किया गया है कि मेष, मिथुन, तुला, वृश्चिक और मकर राशि को यह विशेष तौर पर प्रभावित करेगी। इसके जरिए उपाय बता कर व्यावसायिक दृष्टिकोण को हवा देने की पूरी कोशिश की गई है। इन तथाकथित ज्योतिषियों के अनुसार यह योग इन राशियों के लोगों पर जहां नकारात्मक प्रभाव देने वाला होगा। वहीं इसके प्रभाव से व्यक्ति के पारिवारिक और सामाजिक जीवन में विसंगतियाँ पैदा होंगी, गर्भ में पल रहे बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव होगा। कुछ ज्योतिषियों ने तीन राशि के व्यक्ति के मालामाल हो जाने की बात कही है।
ज्योतिषियों द्वारा किया गया इसका विश्लेषण किसी भी सामान्य व्यक्ति अथवा गर्भवती महिला को आशंकित कर सकता है और उसके दिमाग में कुंठा और नकारात्मक भाव के लिए जगह बना सकता है। यहां हम शास्त्रों का आश्रय लेकर जानेंगे की ग्रहण को लेकर क्या बातें कही गईं हैं। ऋग्वेद के अनुसार –
1-ग्रहण के कारण होनेवाले अन्धकार और रात्रि के समय व्याप्त होने वाले अंधकार में बहुत अंतर होता है। इस समय के अंधकार की वजह से पशु पक्षी भयभीत होकर अस्वाभाविक व्यवहार करने लगते हैं।
2-ग्रहण की वजह से वायु की दिशा परिवर्तित हो जाती है। गति परिवर्तन की बात नहीं की गयी है।
3. समुद्र जल के PH मान में परिवर्तन होने लगता है। PH मान में परिवर्तन अर्थात जल के अम्लीयता और क्षारीयता में परिवर्तन की बात की गयी है। समुद्र जल में आये इस परिवर्तन की वजह से समुद्र में रहने वाले जीवों और जंतुओं पर इसका प्रभाव पड़ता है।
4- ग्रहों के आपसी तालमेल में गड़बड़ी की वजह से पेड़ पौधों में आनेवाले फूलों और फलों की संरचना पर असर होता है।
रामचरितमानस और वाल्मीकि रामायण में अरण्य कांड में ग्रहण की चर्चा की गयी है। एक ही पक्ष में दो ग्रहण और उनके असर की बात कही गई है। राष्ट्र और राजा पर इसके प्रभाव की चर्चा की गयी है। प्राकृतिक उत्पात में वृद्धि की बात कही गई है।
उसी प्रकार से भगवद्गीता में भी एक ही पक्ष में दो ग्रहण और उनके असर की बात कही गई है। राष्ट्र और राजा पर इसके प्रभाव की चर्चा की गयी है।
ग्रहण का राष्ट्राध्यक्ष और राष्ट्र पर प्रभाव- कब निर्मित होंगे ऐसे हालत और कब मिलेगी इससे मुक्ति यह सब संबंधित स्थान, समय, पात्र की दशाएं योग आदि बातों पर निर्भर होता है। इसके लिए हमें ज्योतिषशास्त्र की मदद लेनी होती है। ज्योतिषशास्त्र के तहत मेदिनी ज्योतिष अध्याय में इसकी चर्चा की गयी है। ज्योतिषशास्त्र में इसके मेदिनी पक्ष को देखे जाने की सलाह दी गयी है। किस भाव में किस राशि में ग्रहण लग रहा है, इसको देखने के साथ साथ राशिधिपति की क्या स्थिति है, नक्षत्राधिपति की क्या स्थिति है, यह भी देखना है। मूलभूत सिद्धांत को नहीं छोड़ना है।
चाहे वह वेद हो, रामचरितमानस हो, भगवद्गीता हो या ज्योतिषशास्त्र हो। कहीं भी ग्रहण के वैयक्तिक प्रभाव की चर्चा नहीं की गयी है। गर्भवती महिलाओं को कहा जाता है कि अगर इस दौरान यदि वे कैंची, चाकू का प्रयोग करेंगी तो उनका बच्चा खंड तालु अर्थात कटी हुई तालु लेकर पैदा होगा। यह एक विचारणीय प्रश्न है कि सूर्य ग्रहण के दौरान जितने भी बच्चे होंगे क्या वे खंड तालु लेकर ही पैदा होंगे, एक नज़र ज्योतिष में वर्णित षोडश संस्कारों पर भी डालते हैं। गर्भवती महिला के तीसरे महीने में पुंसवन संस्कार किया जाता है। गर्भस्थ शिशु के लिए यह माह काफी संवेदनशील होता है। इस समय वैदिक मंत्रोच्चार के साथ साथ आहार परिवर्तन और औषधीय प्रयोग द्वारा गर्भस्थ शिशु का लिंग परवर्तित किया जा सकता है। विज्ञान भी इस बात को मानता है कि तीसरे महीने में गर्भस्थ शिशु का लिंग परिवर्तन किया जा सकता है। चूँकि यह महीना इतना संवेदनशील होता है इसलिए वैसी महिलाएं जिनका तीसरा महीना चल रहा है गर्भ का, वे इस दौरान अपने खाने पीने की शुचिता का ध्यान रखें।
व्यक्ति विशेष तो ग्रहण के नाम से ही राहु केतु का स्मरण करने लगते हैं और इन्हें सर्प सदृश मानकर उन्हें अपने भीतर खतरे की घंटी बजती सुनाई देने लगती है, सामने सर्प की प्रतीति जानकर बस बचो ! बचो ! भागो ! कोई उपाय करो कि सर्पदंश से बचा जा सके।
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हम और आप ग्रहण से नहीं बल्कि सांप सी अपनी विचारों की वजह से बीमार हो जाते हैं या मृत्युपाश में चले जाते हैं। ग्रहण हर वर्ष कम से कम चार बार और अधिक से अधिक सात बार लगता ही है। हर ग्रहण अपने साथ पंद्रह दिन आगे-पीछे दूसरे ग्रहण को लेकर आता ही है ऐसे में यह तो समझने की बात है कि कोई कितनी बार मर सकता है या मालामाल हो सकता है।
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ग्रहण के समय को दान और पूजा के लिए बेहतर समय माना गया है। इसलिए दान दीजिये।ईश्वर उपासना कीजिये। आदित्य ह्रदय स्त्रोत्र का पाठ कीजिये।ग्रहण और व्यापार को समझिये। स्वयं जानने का प्रयास कीजिये। तथ्यपरक शोध कीजिये और खोज कीजिये। यह एक खगोलीय घटना है इसका आनंद लीजिए।