Bharadwaj Rishi
धर्म-ज्योतिष

ऋषि कथाः भारद्वाज ऋषि के नाम विमान, अद्भुत था प्राचीण विज्ञान

Bharadwaj Rishi : भारतवर्ष के प्रखर संतानों ने एक से एक ग्रंथ की रचना कर विज्ञान, अध्यात्म, पराज्ञानी तथा जीव विज्ञान के रहस्यों को सुलझाया, लेकिन वे चतुर सुजान नहीं बन सके। सतलब यह है कि शोध कार्य भले ही सर्वप्रथम उन्होंने किया, लेकिन बाजी मारी किसी और ने। अब ऋषि भारद्वाज की विविधता को ही देखें तो साफ हो जायेगा कि काम किया इन्होंने और नाम कमा गया कोई और।

सनातनी व्याख्या के अनुसार सदियों पहले प्राचीन भारतीय महर्षि भारद्वाज (Bharadwaj Rishi) ने विमानशास्त्र के सहारे वायुयान को क्षितिज से अदृश्य करने की असाधारण जानकारी से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व दुनिया के किसी सिरे तक जाने की बात पर से पर्दा उठाया था, लेकिन आधुनिक समय में इस पर चर्चा नहीं होती चर्चा केवल यह होती है कि राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया और इसे ही प्रचारित-प्रसारित किया जाता रहा। इसके साथ ही भारतीय ऋषि कुल की क्षमताओं को नजरअंदाज कर दिया गया।

इतिहास लेखन से लेकर वृहत आडंबर फैलाने में माहिर पश्चिमी देशों के सामने संतसमागम की क्या बिसात। जबकि ऋषि भारद्वाज ने ‘यन्त्र-सर्वस्व’ नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के साथ साथ ऐसे विमाऩों के निर्णाण के लिये जरूरी सभी धातुओं के निर्माण से संबंधित चर्चा भी विस्तार से वर्णन है।
सभ्यता के उदय से पहले ज्ञान व परालौकिक सत्ता में भारतवंशी अग्रणी थे। हमें गर्व है अपने संत, ऋषि, आध्यात्मिक गुरुओं व ज्योतिष सामर्थ्य शक्ति पर जिसके बल पर विश्व की सोच से हमेशा आगे रहा है भारत।

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महाभारत, शान्तिपर्व के अनुसार ऋषि भारद्वाज ने ‘धनुर्वेद’- पर प्रवचन किया था। वहां यह भी चर्चा कि ऋषि भारद्वाज ने ‘राजशास्त्र’ का प्रणयन किया था। कौटिल्य ने भी अपने पूर्व में हुए अर्थशास्त्र के रचनाकारों में ऋषि भारद्वाज को सम्मान स्वीकारा है। साफ है कि भारद्वाज ‘धनुर्वेद’ और ‘राजशास्त्र ज्ञाता थे। साथ ही यह सर्वविदित है कि उन्होंने व्याकरण का ज्ञान इन्द्र से प्राप्त किया था। पिता वृहस्पति और माता ममता के पुत्र ऋषि भारद्वाज को आयुर्वेद और सावित्र्य अग्नि विद्या का ज्ञान इन्द्र और कालान्तर में भगवान श्री ब्रह्मा जी द्वारा प्राप्त हुआ था। सबसे लंबी आयु तक जीवित रहने वाले ऋषियों में शामिल भारद्वाज दो सौ से अधिक वर्षों तक सिर्फ अध्ययन ही करते रहे थे और इसके लिए उन्होंने आयु का वरदान इंद्र से प्राप्त किया था। चरक ऋषि ने तो उन्हें अपरिमित आयु वाला बताया है। कहा जाता है कि महर्षि भृगु ने भारद्वाज को धर्मशास्त्र का उपदेश दिया था।

इस प्रकार एक साथ व्याकरण शास्त्र, धर्मशास्त्र, शिक्षा-शास्त्र, राजशास्त्र, अर्थशास्त्र, धनुर्वेद, आयुर्वेद और भौतिक विज्ञानवेत्ता सहित कई शास्त्र के ज्ञाता थे ऋषि भारद्वाज। इसे उनके ग्रन्थ और अन्य ग्रन्थों में दिये उनके ग्रन्थों के उद्धरण ही प्रमाणित करते हैं। भारद्वाज ऋषि को ही प्रयाग का प्रथम वासी माना जाता है। मतलब यह माना जाता है कि महर्षि भारद्वाज ने ही प्रयाग को बसाया था। वहीं प्रयाग में उन्होंने उस समय के धरती के सबसे बड़े गुरूकुल (विश्वविद्यालय) की स्थापना की थी। जहां हजारों वर्षों तक वो विद्या दान करते रहे।आयुर्वेद संहिता, भारद्वाज स्मृति, भारद्वाज संहिता, राजशास्त्र, यंत्र-सर्वस्व (विमान अभियांत्रिकी) आदि ऋषि भारद्वाज के रचित प्रमुख ग्रंथ हैं।

शंभुदेव झा.