मन्त्र महिमा : "मनने जायते इति मंत्रम"-मनन के द्वारा जो हमारी रक्षा करे वह मन्त्र है । स्वयं ही उच्चारित करना है और मनन करना है। तैत्तरीय उ...
धर्म-ज्योतिष

मन्त्र महिमा : जानें मंत्र शास्त्र क्या है और कैसे होता है इसका उच्चारण  

मन्त्र महिमा : “मनने जायते इति मंत्रम”-मनन के द्वारा जो हमारी रक्षा करे वह मन्त्र है । स्वयं ही उच्चारित करना है और मनन करना है। तैत्तरीय उपनिषद के अनुसार मन्त्रों का उच्चारण शिक्षा के नियमानुसार होना चाहिए। स्वर वर्णों का स्पर्श उच्चारण और व्यंजन वर्णों का स्पष्ट उच्चारण करना चाहिए। किस वर्ण का उच्चारण उच्च स्वर में करना है, किस वर्ण का उच्चारण मध्यम स्वर में करना है और किस वर्ण का उच्चारण निम्न स्वर में करना है, जिससे कि उसमें निहित भाव भी प्रकट हों और उसका लाभ भी मिले, इसका ध्यान रखना अति महत्वपूर्ण है। कहां कौन स्वर है- इसका यथार्थ ज्ञान होना अति आवश्यक है। मन्त्रों के उच्चारण में स्वर भेद होने से उनका अर्थ बदल जाता है। अशुद्ध स्वर के उच्चारण से अनिष्टकारी प्रभाव पड़ते हैं या पड़ सकते हैं।

महर्षि पतंजलि ने महाभाष्य में लिखा है कि-‘स्वर या वर्ण की अशुद्धि से दूषित शब्द ठीक ठीक प्रयोग न होने के कारन मनोवांछित फल देने वाला नहीं होता। इतना ही नहीं, वह मंत्रोच्चार करने वाले को हानि भी पहुंचाता है। जैसे ‘इन्द्रशत्रु’ शब्द में स्वर की अशुद्धि होने के कारण ‘वृतासुर’ स्वयं ही इन्द्र के हाथों मारा गया।

दुष्टः शब्दः स्वरतो वर्णतो वा मिथ्याप्रयुक्तो न तमर्थमाह।

स वाग्वज्रो यजमानं हिनस्ति यथेन्द्रशत्रुः स्वरतोआपराधात ||

मन्त्र रचना-

आमतौर पर लोग मंत्रो को मात्र कुछ शब्दों की तरह देखते हैं परन्तु वो यह नहीं जानते की इन मन्त्रों की तरंगों में बहुत ताकत होती है। यह कुछ ऐसे-वैसे शब्द नहीं हैं। इन्हें हमारे ऋषि-मुनियों ने सालों की ध्यान साधना द्वारा प्राप्त किया है। ऋषि मुनि मन्त्र द्रष्टा होते थे। द्रष्टा का मतलब यह नहीं कि वे खुली आखों से मन्त्र को देखते थे| इसका अर्थ यह कि वे संकल्प सहित तप द्वारा पंचभूतों में सन्निहित सिद्धांतों कि अनुभूति करते थे और बड़ी ही सरलता से सांख्य, मीमांसा, दर्शन, अनुखति का समावेश करके इसे व्यवहार के स्तर पर लेकर आते थे।

सांख्य अर्थात एक एक अक्षरों को व्यवस्थित करते हैं।फिर मीमांसा की बारी आती है अर्थात इन अक्षरों का विन्यास कैसा हो, किस अक्षर के आगे कौन अक्षर और किस अक्षर के पीछे और मध्य में कौन अक्षर बिठाया जाये, इसका विश्लेषण करते हैं। यहाँ यह देखते हैं कि यह जो हमने अक्षरों का विन्यास किया यह दोषपूर्ण विन्यास या गलत विन्यास तो नहीं है? क्या प्रत्येक अक्षर अपनी अपनी जगह पर सही रूप में व्यवस्थित होकर सही शब्द का निर्माण कर रहे हैं या किसी प्रकार के फेर बदल की गुंजाईश है।

आगे दर्शन की बारी है, अर्थात अब इसको अनुभूति में लाते हैं|।दर्शन में जब तक अनुभूति नहीं होगी तब तक वैसा दर्शन भ्रम में ले जाने वाला होगा। तब इसको व्यवहार में लेकर आते हैं।

विज्ञान भी तो यही करता है न | इलेक्ट्रान, प्रोटोन, न्यूट्रॉन  के आपसी विन्यास से भिन्न भिन्न तत्वों की रचना करता है|

मंत्रोच्चार

यहाँ ध्वनि और ध्वनि तरंग का समावेश होता है। मंत्रोच्चार में ध्वनि का बहुत महत्व है। यह तरंगित ध्वनि किस प्रकार बैखरी से परा ध्वनि तक जाकर एकात्म स्थापित करनेवाली होगी। कहाँ बैखरी ध्वनि का प्रयोग होगा, कहाँ मध्यमा ध्वनि प्रयोग की जाएगी, कहाँ पश्यन्ति ध्वनि, अनुस्वर ध्वनि से होकर परा ध्वनि में लीन हो जाएगी। सुषुप्ति अवस्था की व्याप्ति हो जाएगी। सुषुप्ति अवस्था को आज विज्ञान डेल्टा तरंग के मध्यम से समझाता है।

(विज्ञान इसे अल्फा, बीटा, थीटा, डेल्टा और गामा तरंगों के मध्यम से समझता और समझाता है|) इन ध्वनियों को इस प्रकार समझा जा सकता है।

बैखरी ध्वनि – सामान्य ध्वनि

मध्यमा ध्वनि – फुसफुसाहट वाली ध्वनि

पश्यन्ति ध्वनि – स्वयं ही बोलना और स्वयं ही सुना जाये ऐसी ध्वनि

अनुस्वर ध्वनि – स्वयं के भीतर का नाद स्वर

परा ध्वनि – अनहद नाद, एकात्म की ध्वनि

मन्त्र कैसे काम करते हैं

बैखरी ध्वनि से परा ध्वनि की तरफ जब हम जाते हैं तो न केवल ध्वनि की तीव्रता परिवर्तित होती है अपितु उसकी फ्रीक्वेंसी भी बदलती जाती है और यह धीरे धीरे उच्चारित करने वाले व्यक्ति के स्नायु तंत्र के साथ अपना सूक्ष्म सम्बन्ध स्थापित कर लेता है। न केवल भीतरी स्तर पर स्नायु तंत्रों से सम्बन्ध स्थापित करते हैं वरन बाह्य स्तर पर परम चेतना से संपर्क स्थापित करते हैं। बाह्य और अंतस के बीच लय स्थापित करते हैं, और इस सम्बन्ध के द्वारा वह सूक्ष्म स्तर पर चीजों में सकारात्मक बदलाव लाकर उस शक्ति का प्राकट्य कर देता है जो आनंद प्रदायिनी होती है।

इसे एक उदहारण से समझ सकते हैं। जब हम टीवी देख रहे होते हैं तो हमारे सामने कलाकार अभिनय या नृत्य या कोई भी प्रस्तुति नहीं कर रहे होते हैं, बल्कि टीवी सेट, सॅटॅलाइट, उपग्रह के माध्यम से जो तरंगें आती हैं उन तरंगों को वह परिवर्तित करता है और तब वह परिवर्तित तरंगें एक निर्धारित फ्रीक्वेंसी पर हमारे सामने नृत्य, संगीत या अभिनय के रूप में दृश्यमान होती है। अपने मन माफिक अभिनय या नृत्य को देखकर शरीर में आनंद की व्याप्ति हो जाती है। रोम रोम हर्षित हो जाता है।ठीक इसी प्रकार मन्त्र काम करते हैं।

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मन्त्र क्या करते हैं

ध्वनि तरंगों के द्वारा शरीर में संरचनात्मक बदलाव लाते हैं। जैसे रक्त वाहिकाओं आदि के संरचना में बदलाव। सत्व, राजस और तमस गुण में परिवर्तन के द्वारा मनोवैज्ञानिक बदलाव लाते हैं। वात, पित्त और कफ में परिवर्तन के द्वारा शारीरिक बदलाव लाते हैं।

मन्त्रों के द्वारा शक्ति का प्राकट्य

मन्त्रों द्वारा शक्ति का प्राकट्य किया जाता है। आज भौतिक विज्ञान शक्ति के प्राकट्य हेतु जिस प्रकार के यंत्रों का निर्माण कर रहा है उसकी विनाशलीला हम सब देख रहे हैं।

क्या कोई भी किसी मन्त्र को जप सकता है

आजकल जिसे देखिए वही कोई भी मन्त्र जप रहा होता है बगैर यह जाने की इसका उसके शरीर और मानस पर क्या प्रभाव होगा। परिणाम विक्षिप्तता की स्थिति होती है।

ज्योतिषशास्त्र, हर एक व्यक्ति को अपनी अपनी प्रकृति और प्रवृत्ति के अनुसार मन्त्र का जप करने की सलाह देता है। जैसे आग्नेयास्त्र के लिए आग्नेयास्त्र का प्रयोग नहीं करके वरुणास्त्र का प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार अपनी-अपनी प्रकृत्ति और प्रवृत्ति के अनुसार मन्त्रों का प्रयोग किया जाता है।

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क्या मंत्रोच्चार किसी भी समय किया जा सकता है।   

इसके उत्तर में ज्योतिषशास्त्र कहता है- नहीं। जैसे कोई स्त्री जब रजस्वला होती है तो उस समय उसे हनुमान चालीसा का पाठ नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस समय इसके उच्चारण से उत्पन्न हुई ध्वनि तरंगें हार्मोन के असंतुलन की स्थिति बनाकर अनिष्टकारी हो जाते हैं|

इसी प्रकार से कब कौन सी तरंगें कितने फ्रीक्वेंसी पर चाहिए इसका ज्ञान होना अति आवश्यक है। ऐसा अगर नहीं होगा तो जहाँ हमें निम्न फ्रीक्वेंसी वाले ध्वनि के उच्चारण की जरूत है वहां हम उच्च फ्रीक्वेंसी वाली ध्वनि का उच्चारण करेंगे और जहाँ उच्च फ्रीक्वेंसी वाले ध्वनि के उच्चारण की जरूरत है वहां निम्न फ्रीक्वेंसी वाले ध्वनि का उच्चचारण करेंगे तो स्वस्थ होने के बजाये विक्षिप्त ही होंगे|

मंत्रो के लाभ

जब हम  मंत्रोच्चार करते हैं तो उसका हमारे ऊपर अत्यंत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मन्त्रों के उच्चारण द्वारा वातावरण में सकारात्मक तरंगे फैलती है और उनका उच्चारण करने से मन शांत होता है, सभी प्रकार के व्याधियों का समूल नाश होता है तथा अभीष्ट फल की सिद्धि होती है।

ज्योतिष विद
कृष्णा नारायण (लेखक ज्योतिष और मंत्र के जानकार हैं)
Xpose Now Desk
मुकेश महान-Msc botany, Diploma in Dramatics with Gold Medal,1987 से पत्रकारिता। DD-2 , हमार टीवी,साधना न्यूज बिहार-झारखंड के लिए प्रोग्राम डाइरेक्टर,ETV बिहार के कार्यक्रम सुनो पाटलिपुत्र कैसे बदले बिहार के लिए स्क्रिपट हेड,देशलाइव चैनल के लिए प्रोगामिंग हेड, सहित कई पत्र-पत्रिकाओं और चैनलों में विभिन्न पदों पर कार्य का अनुभव। कई डॉक्यूमेंट्री के निर्माण, निर्देशन और लेखन का अनुभव। विविध विषयों पर सैकड़ों लेख /आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। कला और पत्रकारिता के क्षेत्र में कई सम्मान से सम्मानित। संपर्क-9097342912.