बिहार का इतिहास बताता है कि पलासी युद्ध के पहले बिहार एक अलग सूबा था। लेकिन बक्सर की लड़ाई के बाद बंगाल, बिहार और उड़िसा ईस्ट इंडिया कम्पन...
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बिहार दिवस पर विशेष: समृद्धियों से अटा पड़ा है बिहार का इतिहास

111 साल का बिहार 22 मार्च को अपना भव्य सालाना समारोह मना रहा  है। बिहार वासियों और बिहार सरकार के लिए यह किसी पर्व से कम नहीं है। ऐसे में इस अवसर पर बिहार के इतिहास, बिहार की समृद्धि, संस्कृति और बिहार के वैभव पर चर्चा तो बनती है। xposenow.com के लिए यह विशेष चर्चा कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार जितेन्द्र कुमार सिन्हा ।  

बिहार दिवस पर विशेष: बिहार का इतिहास बताता है कि पलासी युद्ध के पहले बिहार एक अलग सूबा था। लेकिन बक्सर की लड़ाई के बाद बंगाल, बिहार और उड़िसा ईस्ट इंडिया कम्पनी के हाथ में चले जाने और बंगाल प्रेसीडेंसी बन जाले के कारण बिहार सूबे का अस्तित्व ही समाप्त हो गया था। वर्ष 1886 से 1905 तक बिहार, बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा बना रहा।

फिर से बिहार प्रान्त का अस्तित्व भारत के मानचित्र पर 1 अप्रैल 1912 को आया जब बंगाल प्रेसिडेंसी से अलग होकर बिहार स्वतंत्र राज्य बना। भारत की केंद्र सरकार ने बिहार, उड़ीसा और छोटनागपुर को बंगाल से अलग करने की घोषणा 12 दिसम्बर, 1911 को ही कर दी थी। जबकि अधिसूचना 22 मार्च 1912 को निकाली गई थी। यही वजह है कि बिहार दिवस प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को मनाया जाता है। इस वर्ष 2023 में 22 मार्च को होगा बिहार 111 वर्ष का हो जाएगा।

 बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा रहते हुए बिहार लोअर बंगाल कहा जाता था। वर्ष 1912 में बंगाल से बिहार अलग होकर उड़िसा के साथ अलग प्रान्त बना। इसके लिए डा. सच्चिदानंद सिन्हा की अगुवाई में एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। अंततः 1 अप्रैल 1936 को उड़िसा से अलग होकर बिहार और वर्ष 2000 में बिहार से अलग होकर झारखण्ड नया राज्य बना। आज आधुनिक बिहार राज्य का चिह्न वृक्ष पीपल, पुष्प गेंदा, पशु बैल और पंछी गोरैया है। खास बात है कि बिहार में प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को  गोरैया दिवस भी मनाया जाता है।

 बिहार का वैभव ऐसा रहा कि वेद, पुराण और, महाकाव्यों में इसकी गरीमामयी चर्चा होती रही है। इन ग्रंथों में बिहार का प्राचीन नाम “बौद्ध बिहार” का उल्लेख है। सर्वविदित है कि बिहार प्राचीनकाल से ही सामाजिक, राजनीतिक तथा उत्थान का         केंद्र रहा है। बिहार की भूमि चन्द्रगुप्त, अशोक, शेरशाह जैसे लोगों की जन्म एवं कर्म स्थली और गौतम बुद्ध, वर्धमान महावीर की ज्ञान स्थली रही है। वहीं बिहार की भूमि का गाथा महात्मा गाँधी, जयप्रकाश नारायण, चाणक्य, आर्यभट्ट, समुंद्रगुप्त, विद्यापति, गुरु गोबिंद सिंह, बाबू कुंवर सिंह, सच्चिदानन्द सिन्हा, ब्रजकिशोर प्रसाद, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, मौलाना मजहरुल हक जैसे महापुरुषों से जुड़ा है।

 बिहार समृद्ध इतिहास से भरा-पूरा एक अनूठा राज्य है। माना जाता है कि बिहार शब्द की उत्पत्ति बौद्ध विहारों के विहार शब्द से हुई है। बिहार के उत्तर में नेपाल, पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण में झारखण्ड है। वर्तमान में बिहार की राजधानी पटना गंगा नदी के तट पर स्थित है। विश्व में बिहार मखानों और मधुबनी चित्रकारी के लिए मशहूर है।

 पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम की पत्नी सीता बिहार की राजकुमारी थीं। वह विदेह, वर्तमान में उत्तर-मध्य बिहार के मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, मधुबनी और दरभंगा के राजा जनक की बेटी थी। किंवदंतियों के अनुसार सीता का जन्म स्थान पुनाउरा है, जो सीतामढ़ी शहर के पश्चिम में स्थित है। हिंदू महाकाव्य रामायण, के लेखक महर्षि वाल्मीकि के बारे में भी कहा गया है कि वे पश्चिम चंपारण जिले के एक छोटे से शहर वाल्मीकि नगर में रहते थे।

 भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी बिहार का इतिहास स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है । 1857 के भारतीय विद्रोह का नेतृत्व बिहार के बाबू कुंवर सिंह ने किया था। उस समय उनकी उम्र लगभग अस्सी साल थी और उनका स्वास्थ्य भी कमजोर था, लेकिन उन्होंने लगभग एक वर्ष तक एक अच्छी लड़ाई लड़ी और ब्रिटिश सेना के दांत खट्टे करते रहे। खास बात ये थी कि वे अंत तक अजेय रहे। वे छापामार युद्ध के विशेषज्ञ थे। उनकी रणनीति ने ब्रिटिशों को हैरान कर दिया था। उन सात शहीद छात्रों को भला कौन भुल सकता हैं जिन्होंने अपने सीने पर अंग्रेजों की गोलियां तो झेली लेकिन तिरंगे को न झुकने दिया न गिरने दिया।

 ऐतिहासिक और पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर ईसा से लगभग छठी सदी पहले विश्व का पहला गणराज्य वैशाली ही थी। वैशाली नगर तब के वज्जी महाजनपद की राजधानी हुआ करती थी

बिहार में ही वह मंदार पर्वत है, जिससे समुद्र का मंथन किया गया था। कहा तो यह भी जाता है कि यहीं पास के एक तलाब में आज भी पांचजन्य शंख रखा हुआ है। गया बिहार का वह स्थान है जो गयासुर राक्षस की पीठ पर बसा है। यहीं देश विदेश से लोग अपने पितरों को तृप्त करने के लिए प्रतिवर्ष पिंडदान करने आते हैं। पास ही बौधगया अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बौधों का सम्मानित तीर्थ स्थल है। तीर्थस्थल की श्रृंखलाओं में नालंदा,राजगीर वैशाली, गया, बोधगया, जैसे शहरों को कौन नजरअंदाज कर सकता है। सिखों का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थस्थल पटना साहिब, मुसलिमों के लिए बिहारशरीफ और मनेरशरीफ, बौधों और जैनियों के लिए बैशाली जैसे धार्मिक महत्व के स्थान भी बिहार में ही मिलते हैं।

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ऐसे स्थानों और कथाओं की लंबी गाथा है बिहार में। जिनपर कई पुस्तकें लिखी जा सकती है। यहां मिथिला की महीमा और मगध का महात्म्य तो दिखता ही है, साथ ही वैशाली का वैभव भी बरबस लोगों को आकर्षित करता है। भोजपुर और अँग प्रदेश की गाथा भी बिहारवासियों को गौरवान्वित करने वाली है। प्राचिन नालंदा, विक्रमशिला और पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में देश-विदेश के शिक्षक और छात्र अध्यन और अध्यापन करते थे।

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 पुरानी बस्ती चिरांद गाँव, जो बिहार की सारण में है वो करीबन 2500 वर्ष पूर्व की है। बिहार से नूर उल अनवर उर्दू समाचार पत्र का सर्वप्रथम प्रकाशन वर्ष 1853 में आरा से, बिहार बंधु हिन्दी समाचार का प्रकाशन सर्वप्रथम बिहारशरीफ से बाद में वर्ष 1872 में आरा से तथा बिहार हेराल्ड अंग्रेजी समाचार पत्र का प्रकाशन वर्ष 1874 में पटना से शुरू हुआ था।  

 हर क्षेत्र में बिहार की समृद्दि की अलग गाथा है। इस पर अलग से चर्चाएं की जा सकती है। फिलहाल तो बस बिहार का इतिहास इतना ही कि बिहार में अब भी शेष हैं अवशेष

Xpose Now Desk
मुकेश महान-Msc botany, Diploma in Dramatics with Gold Medal,1987 से पत्रकारिता। DD-2 , हमार टीवी,साधना न्यूज बिहार-झारखंड के लिए प्रोग्राम डाइरेक्टर,ETV बिहार के कार्यक्रम सुनो पाटलिपुत्र कैसे बदले बिहार के लिए स्क्रिपट हेड,देशलाइव चैनल के लिए प्रोगामिंग हेड, सहित कई पत्र-पत्रिकाओं और चैनलों में विभिन्न पदों पर कार्य का अनुभव। कई डॉक्यूमेंट्री के निर्माण, निर्देशन और लेखन का अनुभव। विविध विषयों पर सैकड़ों लेख /आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। कला और पत्रकारिता के क्षेत्र में कई सम्मान से सम्मानित। संपर्क-9097342912.