पटना / सवांददाता। जब आपका बच्चा खोया-खोया सा रहने लगे, सबकुछ धीरे-धीरे सीखता हो, कुछ सालों से एक ही क्लास में रह रहा हो तो हो सकता है कि उसे काउंसेलिंग की जरुरत है।
भाग जाउंगा। यहां भी नहीं टिकूंगा। ऐसा कोई हॉस्टल नहीं जो अन्नू बाबा को रोक सके। अन्नू यह सब अपने स्वभाव के कारण अपनी मम्मी से फोन पर कह रहा था। उसके इसी स्वभाव से तंग आकर उसके माता-पिता बार-बार हास्टल में एडमिशन दिलवा देते हैं और वह हॉस्टल छोड़ कर भागता रहा है। उसकी ऐसी ही आदतों से माता-पिता तो परेशान रहते ही हैं, साथ पढ़ने वाले बच्चे और पढ़ाने वाले शिक्षक भी इनसे पनाह मांगते रहे हैं।
अन्नू एक बड़े बाप का बेटा है। लोग उसे बड़े बाप का बिगड़ा बेटा भी कहते हैं। टीचरों पर भी वह हाथ उठा चुका है। गाली में उसे मास्टरी है।वह पिछले क्लास में फेल कर चुका है। और इसीलिए उसे पिछले स्कूल से निकाला जा चुका है। लेकिन फुटबॉल का वह बहुत ही अच्छा खिलाड़ी था। किक में जबरदस्त पकङ थी उसकी।
तब वह पढने में खुद को कम नहीं समझता था, लेकिन बाकी बच्चे होमवर्क जरूर करके आते। उसको भी क्लास में लगता कि वह कक्षा के सभी काम कर लेगा, लेकिन घर जाकर भूल जाता था ।
अन्नू की परेशानी थी कि उसे लगता था टीचर बहुत फास्ट पढा देते हैं। तब वह साथी के पन्ने की ओर देख लिखता। जया उसकी मदद करती थी। जब वह जया की ओर देखता तो हिन्दी वाली मैम सबके सामने बहुत सुनाती थी। मैम को लगता की उसका कोई चक्कर चला रहा। लेकिन को सिर्फ जया से मदद के लिए देखता।बहुत बार उसे अलग बैठाया गया। एग्जाम की बात सुनता तो पसीने आ जाते थे। वह क्लास में खोया-खोया सा रहता। वह सबकुछ धीरे-धीरे सीखना चाहता। लेकिन कोई उसे समझ नही पा रहा था। कुछ सालों तक वह एक ही क्लास में रहा। फिर भी राईटिंग अच्छी नही हुई। उसे जल्दी याद नही होता। वह तुरंत भूल भी जाता था। पापा को भी लगता की वह नहीं पढ रहा। अक्सर डांट खाकर मम्मी की गोद में सुबक लेता। उसे म्यूजिक सीखने में मजा आता। घरवाले को लगा की वह नहीं पढ पायेगा। इसलिए बार-बार उसका एडमिशन डे बोर्डिंग स्कूल में कराया जाने लगा। अबतक सात स्कूल से वह भागा चुका था। पढाई से अब उसे चिढ होने लगी थी। मारपीट व चिङचि़ङापन उसके लिए आम बात हो गयी थी।
16 साल के अनु को दरअसल एजुकेशनल प्रॉब्लम थी। जो स्लो लर्नर की समस्या से वह जूझ रहा था। किसी से जानकारी लेकर अन्नू को मेरे पास काउंसेलिग के लिए भेजा गया। शुरूआत में एक झिझक व अङियलपन व्यवहार, अन्नू में देखने को मिला।वह कटा-कटा सा रहता। लंबी गाङी में बैठकर आता। जल्दी नीचे नहीं उतरता। काउंसलर जब उसे लेने जाते तब वह उतरता। चेहरे के रंगत अविश्वास से नीले हो चुके होते थे। उसे किसी पर भरोसा नहीं रह गया था। पढाई-लिखाई, टीचर, माता-पिता, स्टाफ जैसे मानों कहीं कोई संवेदना नहीं बची हो। कुछ समय तक जब मनोवैज्ञानिक विधियों से उपचार किया गया तो उसका आत्मविश्वास उभरने लगा। लगातार प्रेरित कर उसके आत्मविश्वास को जगाया गया और बढ़ाया गया। अब वह खुलकर सहयोग करने लगा था। टीचर से कुछ मीटिंग के बाद वह फिर से पढने लगा। उसके पापा को लगता है कि मैंने कोई चमत्कार कर दिया है उनके बेटे पर। अब वह अपनी सोच बदल घंटो इसपर डिस्कशन करना चाहते हैं। दरअसल अन्नू को काउंसेलिंग की आवश्यकता थी। वह पूरा होते ही वह पूरी तरह से ठीक हो गया।