Breaking News धर्म-ज्योतिष बिहार

यात्रा-मुहूर्त विचार, देसी संस्कार


शंभु देव झा

अमूमन भारतीय संस्कृति और सभ्यता में आज भी परंपरागत विधि-विधान और रश्मों के प्रति लगाव देखा जाता है। हलाकि वर्तमान में उन परंपराओं को झुठलाने का प्रयास भी किया जता रहा है। यह और बात है कि यह प्रयास तर्क की कसौटी पर खड़ा नहीं उतरता फिर भी नूतन के आगे पुरातन की क्या बिसात!
सामान्य तौर पर उत्तरायण और दक्षिणायन की व्यवस्था से आम भारतीय परिचित हैं, लेकिन जब यात्रा मुहूर्त की बात आती है तो दकियानूसी विचार कहकर उस पर तंज कसने से भी लोग बाज नहीं आते। लेकिन यह भी सच है कि अतीत की कुछ तथ्य परख लोकोक्तियों पर आज भी शोध चल रहे हैं। उदाहरण के तौर पर “काक वचन, पंचक, दिशाशूल, मौसम की स्थिति का पंचांग निर्धारण आज भी हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण हैं।
इसी तरह पुरखों ने अपने अनुभव को आधार बनाकर यात्रा मुहूर्त के लिए दिशाशूल, नक्षत्रशूल, चंद्रमा, भद्रा, तारा, शुभ तिथि, शुभ नक्षत्र, योगिनी तथा अन्य विचारों को मानव मात्र के कल्याण हेतु गणना के माध्यम से दिया। इसके लिए गणित, फलित और ज्योतिष संवाद महत्वपूर्ण माने गये हैं। यह केवल भारतीयता का परिचायक नहीं अपितु विश्व पंचायत के आयत पर भी ऐसे ही प्रावधानों को स्वीकार किया गया है और आज चांद के सन्मुख रहने पर कई कार्य संपन्न हो रहे हैं। यहां यह तर्कसंगत है कि “प्रयोग के स्तर पर ही सही, एकबार देखा करें, भले ही विश्वास होने पर ही मानें।
सोम शनिचर पूरब न चालू,
मंगल बुध उत्तर दिसी कालू।
रवि शुक्र जो पश्चिम जाय
हानि होय पथ मुख ना पाये ।
बिफे दक्षिण करे पयाना
फिर नहीं समझे ताको आना।
उपरोक्त दोहों के बल पर पूर्वज ने दिशाशूल की स्थिति पर प्रकाश डाला है। आवश्यक यात्रा विचार पर रेमेडियल तथ्य दिये गए हैं। इसी क्रम में सामान्य मुहूर्त विचार में “राहु काल”प्रमुख है। अपने प्रतिष्ठान, शुभ कार्य, यज्ञ आदि कार्य के दौरान इस काल अवधि का परित्याग कर लाभ अर्जित किया जा सकता है।
सामान्य ज्ञान की तरह भारतीय पराविज्ञान के बारे में भी अच्छी जानकारी रखना उचित ही नहीं, जरूरी भी है। आधुनिक समाज इस विज्ञान के महत्व को जानता तो है लेकिन संकोचवश मानता नहीं है। जरूरत है अपने पुरातन सनातनी व्यवस्था को जानने और परखने की।
सभी बदलाव अच्छाई के लिए ही किये जाते लेकिन हमारे शरीर पर वातावरण का प्रभाव अंश काल का होता है जबकि खाये गये पदार्थों का असर हमारी बौद्धिक क्षमता पर अधिक होता। यदि यह सत्य नहीं तो भारतीय संस्कार में किसी देव कर्म से पहले “नहाय-खाय” की प्रक्रिया आज भी क्यूं है?
आसन पर व्यक्ति विशेष अपने मन से बैठता है, लेकिन “किसी पद या सिंहासन पर बैठाया जाता है, इसलिए वहां शुभ मुहूर्त की गणणा की जाती। अतः मंगलमय यात्रा की कामना के साथ मुहूर्त का विचार हमें दोहरे लाभ के द्वार तक ले जा सकता है। इसे प्रयोग के तौर पर ही परखें।