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सौम्य व विशेष फलदायी होती है बटुक और काल भैरव की पूजा


भैरव:पूर्णरूपोहि ,
शंकरस्य परात्मन:।
मूढ़ास्तेवै न जानंति,
मोहिता:शिवमाया।

शिवपुराण में वर्णित श्लोकों के अनुसार भैरव को भोलेशंकर का ही संपूर्ण स्वरूप माना गया है तथा जब इन्हें हम अपनी संततियों की सुरक्षा से जोड़ कर देखते हैं, तो वहां बटुक भैरव का कल्प मन को सुकून देता है।
आयु,आरोग्यता व सात्विकता का संवरण से बटुक भैरव का सीधा सरोकार है। अर्थात दैनिक दिनचर्चा में बटुक भैरव हमारे लिए सभी स्तरों पर पथप्रदर्शक की भूमिका में रहते हैं। सामान्य रूप में प्रत्येक मंदिरों में बटुक भैरव की प्रतिमा का केंद्र समझे जाते हैं। बात करें यदि काशी की, तो वहां कालभैरव का स्थान प्रमुख केंद्र है। यहां नगर रक्षक केी तरह “कोतवाल” का विशेष दर्जा उन्हें दिया गया है। इसी तरह बटुक भैरव एवं काल भैरव के रूपों को पूजने की अपने देश में विशेष मान्यता है।यात्रा-मुहूर्त विचार, देसी संस्कार
राजधानी दिल्ली स्थित पांडव युग से जुड़ा बटुक भैरव मंदिर आज भी आस्था का केंद्र है, जहां देश के विभिन्न स्थानों से आज भी भक्त अपनी आस्था के आवेग में खिंचे चले आते हैं। इसी क्रम में भारत के कई प्रांतों में अवस्थित भैरव मंदिर ,रहस्यमयी अवस्था के लिए लाभकारी हैं। इन स्थानों की पूजा- अर्चना भले ही भिन्न भिन्न हैं, लेकिन लोगों की आस्था अडिग है।
देखा गया है कि बटुक भैरव तथा काल भैरव मंदिर से भोलेनाथ का गहरा लगाव रहा है। इसी के कारण स्थूल के साथ सूक्ष्म देवी, देवता और पितरों के प्रति निष्ठा से लोग समर्पित रहे हैं। शंका, श्रद्धा और उसके बाद आस्था का प्रकटीकरण इसान कीफितरत रही है। तात्पर्य यह कि यदि आप किसी को मंत्र जाप करने को कहते हैं, तो सहसा उसके मन में मंत्र के प्रति शंका का जन्म होगा लेकिन कुछ दिन क्रमवद्ध करते रहने के बाद उक्त मंत्र के प्रति श्रद्धा का पैदा होना स्वाभाविक है। पुनः व्यक्ति एक और पायदान चढ़ कर आस्था तक पहुंच जाता है।
कहा जाता है कि भय और प्रीत दोनों जीवनदायी है और यह भी
कहा जाता है कि ईश्वर की लाठी में आवाज नहीं होती। यानि यह बात महत्वपूर्ण है कि भय से आस्था और भय से उत्पन्न श्रद्धा ही मानव का नैसर्गिक आधार है। कालभैरव पूजन भी एक वैसा ही भाव है, जिसमें महाभैरव, संहार भैरव, असितांग भैरव, चंद्र चूड़ भैरव, रूद्र भैरव, क्रोध भैरव, ताम्र चूड़ भैरव व काल भैरव की पूजा आनंददायक होता है। प्रचंड दंडनायक
के रूप में भी इन्हें जाना जाता है। महामारी के दौरान इनकी विशेष ध्यान व पूजन का विधान है।

शंभुदेव झा