तुंगनाथ महादेव मंदिर
धर्म-ज्योतिष

पंचकेदार में से एक है पांडव निर्मित भगवान शिव का तुंगनाथ महादेव मंदिर

अनेक महापुरुषों ने खुद की रूचि के अनुसार आम लोगों के लिए बहुत कुछ किया है, जिन्हें आज देख कर आश्चर्य के साथ अपने पूर्वजों पर नाज भी होता है। पांडव निर्मित तुंगनाथ महादेव मंदिर ऐसा एक मंदिर है जिस पर हजारों वर्ष बाद आज भी हम नाज करते हैं। खासबात यह है कि यह दुनिया के सबसे ऊंचे स्थानों पर बने मंद्रों में से एक है।
निर्जन वन, यथा सामाग्री को तथा स्थान पहुंचाना और सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थापित करना,तब कैसे संभव हो सका होगा, यह सोचकर आज के लोगों को रोमांचित होना स्वाभाविक ही है ।
इस आलेख में हम विश्व के सबसे अधिक ऊंचाई पर निर्मित मंदिर तुंगनाथ महादेव की पौराणिकता से जुड़े कुछ पहलुओं पर चर्चा करेंगे।

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उत्तराखंड राज्य के रूद्र प्रयाग जिले में 3,680 मीटर की ऊंचाई पर पांडवों द्वारा निर्मित यह एक मंदिर है, जिसे पौराणिक मान्यता प्राप्त है। तुंगनाथ महादेव के नाम से इस मंदिर को जाना पहचाना जाता है। यह भक्तों के आकर्षण का अनोखा केंद्र है।
दिव्य पंचकेदार को तो सभी जानते ही हैं । तुंगनाथ महादेव का उनमें तीसरा स्थान प्राप्त है।
जहां ये बना-बसा है वह पर्वत शिखर को भी तुंगनाथ ही कहा जाता है और महादेव भी एक
हजार साल अतीत की याद से जुडे हुए हैं।
भगवान भोलेनाथ कहने को तो भोले हैं लेकिन जैसी उनकी लीला अनबूझ रही है, वैसे ही उनकी साधना भी कठिन है। तभी कहीं हिम खंड क्षेत्र के रसिया हैं, तो कहीं अति दुर्गम क्षेत्र में शिव विराजित होते हैं। इस तुंगनाथ महादेव मंदिर की भी बात भी निराली है।


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आध्यात्मिक और धार्मिक विशेषज्ञ के रूप में एक शिव भक्त सुनील सिंह ने बताते हैं कि “कुरूक्षेत्र संहार की घटना से भोलेनाथ ,पांडवों से मन ही मन क्षुब्ध थे। जब पांडवों को इसकी जानकारी हुई तो नरसंहार के पाप और द्वंद्व से उबरने के लिए पांचों पांडव भाइयों ने शिवआराधना करने के लिए पर्वतीय क्षेत्र मे साधना स्थली का निर्माण किया, जो जो कालांतर में तुंगनाथ महादेव के नाम से विश्व विख्यात हुआ।

shunil kumarसुनील कुमार ,आध्यात्मिक शोधकर्ता
विदित हो कि यहां बहने वाली नदी को अक्षकामिनी नदी कहा जाता है जो तीन धाराओं का श्रोत माना गया है। मंदिर क्षेत्र चोपता पड़ाव से लगभग तीन किमी पर स्थित है।अपने आराध्य देव के संमुख नंदी विराजमान हैं। जिनके कानों में भक्तों द्वारा प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाता है।
वैसे सामान्य दिनों में भी यहां पहुंच पाना संभव तो नहीं लेकिन कठिन जरुर है। कलकल करती हिमनद और झरने आध्यात्मिक आत्मबल के लिए संजीवनी समान हैं और ये ही कारण है कि श्रधालु यहां लगातार जाते रहते हैं।और ठंड के समय तो वर्फ की चादर सी बिछी रहती है।ऐसे में कुछ लोग ठंड में सैलानियों के रूप में भी यहां जाने लगे हैं।
शंभुदेव झा

शंभुदेव झा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )