क्या है अक्षय या आंवला नवमी का महत्व। पटना, अनमोल कुमार कार्तिक माह में बहुत से हिन्दू त्यौहार मनाये जाते हैं। खास बात ये है कि अलग अलग क्षेत्र, और अलग अलग समुदाय के लोग इस महीने अलग अलग त्यौहार मनाते हैं। भारत के उत्तर एवं मध्य भारत में आंवला नवमी का त्यौहार इन्हीं त्योहारों में से एक पारिवारिक त्यौहार है। आँवला नवमी अथवा अक्षय नवमी कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन मनाई जाती है। यह पर्व दिवाली त्योहार के बाद आता है। इस वर्ष अर्थात वर्ष 2021 में 13 नवंबर को यह मनाया जाना है। इसी दिन भारत के दक्षिण एवं पूर्व में जगद्धात्री पूजा का महा पर्व शुरू होता है। यह पर्व भी बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
माना जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण वृन्दावन गोकुल की गलियाँ छोड़ मथुरा गए थे। इस दिन उन्होंने अपनी बाल लीलाओं को त्याग कर अपने कर्तव्य के पथ पर कदम रखा था। यह पूजा खासतौर पर उत्तर भारत में की जाती है। इस दिन वृंदावन की परिक्रमा शुरू कर दी जाती है। महिलाएं आँवला नवमी की पूजा पूरे विधि विधान के साथ करती है। यह पूजा संतान प्राप्ति एवं पारिवारिक सुख सुविधाओं के उद्देश्य से की जाती है।
आंवला नवमी पूजन सामग्री एवं पूजा विधि
आँवले का पौधा, पत्ते एवं फल, तुलसी के पत्ते एवं पौधा कलश एवं जल। कुमकुम, हल्दी, सिंदूर, अबीर, गुलाल, चावल, नारियल, सूत का धागा, धूप, दीप, माचिस, श्रृंगार का सामान, साड़ी-ब्लाउज, दान के लिए अनाज। इस दिन औरतें जल्दी उठ नहा धोकर साफ कपड़े पहनकर आंवला वृक्ष के आसपास की साफ-सफाई करें और वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करके कच्चा दूध डालें। इस दिन आंवला के पेड़ की पूजा होती है, और उसी के पास भोजन किया जाता है। इस दिन पूरा परिवार ऐसी जगह पिकनिक की योजना बनाता है, जहाँ आवला का पेड़ होता है।
जो लोग बाहर कहीं नहीं जाते है, वे घर में आंवले के छोटे पौधे के पास ही इसकी पूजा करते है, और फिर भोजन करते हैं। पूरे परिवार के लिए यह एक पिकनिक हो जाती है, जिसमें औरतें घर से खाना बनाकर ले जाती है, या वहीँ सब मिलकर बनाते हैं। इसदिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है, उसकी परिक्रमा का विशेष महत्व है। सफ़ेद या लाल मौली के धागे से इसकी परिक्रमा की जाती है। आँवले के वृक्ष में दूध चढ़ाया जाता है। पूरी विधि के साथ पूजन की जाती है। श्रृंगार का सामान एवं कपड़े किसी गरीब सुहागन अथवा ब्राह्मण पंडित को दान देते हैं। गरीबों को अनाज अपनी इच्छानुसार देते हैं।
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औरतें अपने अनुसार 8 या 108 बार परिक्रमा करती हैं। इस परिक्रमा में 8 या 108 की भी चीज चढ़ाई जाती है, इसमें औरतें बिंदी, टॉफी, चूड़ी, मेहँदी, सिंदूर आदि कोई भी वस्तु का चुनाव करती है, और इसे आंवला के पेड़ में चढ़ाती हैं। इसके बाद इस समान को हर सुहागन औरत को दिया जाता है। फिर सब साथ बैठकर कथा सुनती है, और खाने बैठती है। इस दिन ब्राह्मणी औरत को सुहाग का समान, खाने की चीज और पैसे दान में देना अच्छा मानते हैं।
आजकल गार्डन में आँवला नवमी पूजा किया जाता है। पूरे परिवार के साथ सभी महिलाएं गार्डन में एकत्र होती हैं पूजा करती हैं और साथ में मिलकर सभी भोजन करते हैं। खेलते हैं और भजन-गाना गाकर उत्साह से आँवला पूजन करते हैं।