Interlinked Destiny : ज्योतिष शास्त्र के कुछ महत्वपूर्ण सूत्रों पर चर्चा के पहले एक कथा में प्रवेश करते हैं। एक गांव में पंडित बुद्धि बाबू अपनी पत्नी के साथ वास करते थे।दस टोले का गांव था।सप्ताह में, महीने में कभी किसी के यहाँ सत्यनारायण की कथा या अष्टजाम तो कभी किसी के घर गृहप्रवेश पूजा,कहने का मतलब ये कि गाहे बेगाहे कुछ न कुछ होता ही रहता था। इन सभी कार्यों हेतु बुद्धि बाबू बुलाये जाते।अपने यजमानों से उन्हें आदर तो खूब मिलता परन्तु दान दक्षिणा उतनी उदारता से नहीं मिल पाती।परिणाम यह कि पंडित जी का परिवार तंगी में रहता।
Interlinked Destiny: पंडिताईन कई बार कह चुकी थीं कि क्या रखा है इस गांव में।चलो छोड़ो इस गांव को, चलो किसी और गांव।परन्तु पंडित जी उसे अनसुनी कर देते थे।एक रोज पंडिताईन रोष से भरकर बोली कि आज आपको बताना ही पड़ेगा कि इस गांव में ऐसा क्या है कि भरपेट भोजन नहीं मिलने के बावजूद भी आप इस गांव को छोड़ना नहीं चाहते हैं? कहीं कोई मोहिनी तो नहीं है यहाँ, जिसके मोह पाश में आप बंध गए हैं
पूर्णिमा के एक दिन पहले से पंडिताईन दूसरे गांव जाने की तैयारी शुरू कर दी। गांव में सबको कह दिया कि कल यानि पूर्णिमा को पंडित जी किसी के घर पूर्णिमा का पूजा नहीं करवाएंगे।
पूर्णिमा के दिन मुँह अँधेरे ही पंडित जी और पंडिताईन गांव छोड़कर निकलने को हुए ही थे कि गांव में आग लग गई। पंडिताईन ने कहा कि आप तो कहते थे कि आपके कारण ही गांव सुरक्षित है तो फिर ये आग कैसे ?
पंडित जी ने कुछ नहीं कहा बस चुप चाप बैठे रहे। आग तो लगी लेकिन वह उग्र नहीं हुई।पंडिताईन ने कहा कि अब बैठे ही रहोगे या चलोगे भी। पंडित जी को एक तरह से खींचते हुए वह लेकर चली।जैसे ही गांव के सीमान से ये दोनों बाहर आये, वैसे ही शांत पड़ी अग्नि उग्र हो गयी और समूचा गांव धू धू कर जलने लगा, पंडित जी ने पंडिताईन को जोड़ से धक्का देते हुए कहा कि तुम्हें जहाँ जाना है जाओ मैं इन गांव वालों को मरते छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा।इतना कहकर पंडित जी गांव के सीमान के भीतर आ गए। पंडित जी के सीमान में वापस आते ही वह अग्नि जो उग्रा हुई थी,एकदम से शांत हो गयी। अब कथा को यहीं विराम देकर कथा से बाहर आएं।
इस कथा को कहने का तात्पर्य यह कि इस ब्रह्माण्ड में सिर्फ परिवार के व्यक्ति ही नहीं वरन हम सभी एक दूसरे से जुड़े हैं| इसे ज्योतिष में Interlinked Destiny कहा जाता है|
बहुत बार ऐसा होता है कि-
1- कुंडली के द्वारा असाध्य रोग का संकेत है, मृत्यु तुल्य कष्ट का योग है लेकिन वैसा कुछ भी नहीं होता है|
2- वहीं दूसरी तरफ किसी व्यक्ति की कुंडली के द्वारा रोग के तो संकेत हैं लेकिन मृत्यु तुल्य कष्ट का संकेत नहीं है| इसके बावजूद वह व्यक्ति मृत्यु तुल्य कष्ट पाता है|
ऐसा क्यों??
1- ऐसा इसलिए कि उसी समय उनके परिवार जनों की कुंडली में शोक का योग बन रहा है।
2- वहीं दूसरी तरफ जिनकी कुंडली में अपार कष्ट होने के योग के बावजूद थोड़ी सी ही परेशानी होती है,वहाँ उनके परिवार जनों की कुंडली में शोक जनित योगों का पूर्णतः अभाव दिखता है।
इसी प्रकार से विवाह, संतान, व्यवसाय आदि से सम्बंधित प्रश्नों का भी फल निर्णय किया जाता है।
ठीक इसी प्रकार गांव, समाज राष्ट्र और विश्व के लोग भी एक दूसरे के साथ जुड़े होते हैं।
महाभारत काल की घटना से तो सब परिचित ही हैं।कृष्ण के रहते अर्जुन जो कर कर पाए कृष्ण के जाते ही उसे कर पाने में अक्षम हो गए। मैंने पहले भी कहा है कि ज्योतिष बहु आयामी है। इसके हर आयामों की जाँच किये बिना फलादेश करना ज्योतिष कि साख को धूमिल करने वाला ही होगा।
इसलिए अपनी कुंडली में प्रतिकूल योग को देखकर घबड़ायें नहीं।अपने परिवार के अन्य जनों की कुंडली से उसके प्रतिकूल या अनुकूल होने का संकेत देखें।
कृष्णा नारायण