पटना,जितेन्द्र कुमार सिन्हा। जीकेसी (ग्लोबल कायस्थ कांफ्रेंस) की प्रबंध न्यासी रागिनी रंजन ने बताया कि भारत के इतिहास में कायस्थ समाज का अतुलनीय योगदान रहा है। चाहे प्राचीन भारत हो, मध्यकालीन भारत हो या फिर आधुनिक भारत हो, भारत के नवनिर्माण में कायस्थों की बड़ी भूमिका रही है। रागिनी रंजन एक अनऔपचारिक बातचीत ये बता रहीं थीं। उन्होंने महाराजा प्रतापादित्य, महाराजा ललितादित्य, पुलकेशिन द्वितीय, गौतमीपुत्र सातकर्णि, महाराजा कृष्णदेव राय, चोल, चालुक्य, पाल एवं सेन वंशों सहित अनेक प्रतापी कायस्थ राजाओं के शौर्य और पराक्रम की चर्चा करते हुए कहा कि आज देश-दुनिया के अनेक मुल्कों में भी उनकी शौर्य गाथा सुनी जा सकती है।
रागिनी रंजन ने कहा कि इन प्रतापी राजाओं ने दुनिया को यह यह दिखाया था कि चित्रांश यदि कलम चलाते हैं तो वक्त आने पर तलवार भी चला सकते हैं। उन्होंने कहा कि स्वाधीनता आंदोलन में भी चित्रांश ने आगे बढ़कर देश को आजाद कराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज की राजनीति में चित्रांश अल्पसंख्यक की श्रेणी में आ गए हैं। राजनीति में कमजोर होने के कारण यह समाज प्रशासन सहित अन्य क्षेत्रों में भी पिछड़ते जा रहे हैं। समाज के सभी क्षेत्रों में चित्रांश की जो धमकदार उपस्थिति रहती थी, आज के वर्तमान परिदृश्य में उसमें निरंतर गिरावट आ रही है। हम सभी को यह स्वीकार करना होगा कि राजनीति असमानता का सबसे बड़ा शिकार चित्रांश ही हुआ है।
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उन्होंने बताया कि जेपी आंदोलन की गर्भ से निकले राजनेता आज देश के कई प्रांतों में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं फिर भी चित्रांश के साथ उनकी बेरुखी अचंभित करती है। हमें राजनीतिक दलों का पिछलग्गू बनने के बजाय एकजुट होकर एक ऐसी आवाज बनना है, जिसे कोई अनसुना ना कर सके। इसके लिए उन्होंने लोगों से अनुरोध की है कि 19 दिसम्बर 2021 को नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित विश्व कायस्थ महासम्मेलन को सफल बनाकर तंत्र की कुम्भकर्णी निद्रा को तोड़ने में सहयोगी बनें।