बाल श्रम रोकने के लिए 1098 डायल करें
पटना,संवाददाता। भारत में हर साल 30 अप्रैल को राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है। उड़ान परियोजना के तहत बिहार के 22 जिलों में यूनिसेफ और समाज कल्याण विभाग अंतर्गत डब्ल्यूसीडीसी (महिला एवं बाल विकास निगम), बिहार सरकार द्वारा किशोर-किशोरियों और माता-पिता के साथ-साथ शिक्षकों, धर्म गुरुओं, निर्वाचित जनप्रतिनिधियों, स्थानीय व्यवसायियों सहित प्रमुख हितधारकों को बाल श्रम के मुद्दे पर जागरूक करने के लिए एक जागरूकता अभियान शुरू किया गया है। सेव द चिल्ड्रन, एक्शन एड और प्रथम के सहयोग से इस अभियान को मूर्त रूप दिया जा रहा है।
बाल मजदूरी को रोकने के लिए ज़िम्मेदार विभागों के पदाधिकारियों जैसे एसडीएम, श्रम आयुक्त, एसडीओ, डीएसपी, सीडब्ल्यूसी अध्यक्ष, श्रम अधीक्षक, एसडीओ आदि ने इन सभी जिलों में बाल श्रम उन्मूलन संदेशों से सजे-धजे ई-रिक्शा को झंडी दिखाकर रवाना किया। यह अभियान 12 जून तक चलेगा और इसके तहत विभिन्न गतिविधियां संचालित की जायेंगी।
‘बाल श्रम : वैश्विक अनुमान 2020, रुझान और आगे की राह’- जून 2021 में जारी अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और यूनिसेफ की एक रिपोर्ट ने चेतावनी दी थी कि दुनिया भर में बाल श्रम में बच्चों की संख्या बढ़कर 160 मिलियन हो गई है। पिछले चार वर्षों में 84 लाख बच्चों की वृद्धि दर्ज़ की गई है। इतना ही नहीं, कोविड-19 के प्रभावों के कारण लाखों और बच्चों के इसकी चपेट में आने का ख़तरा है।
बाल मजदूरी उन्मूलन को लेकर राज्य में चलाई जा रही प्रमुख पहल के बारे में बात करते हुए यूनिसेफ बिहार की बाल संरक्षण अधिकारी, गार्गी साहा ने कहा कि लगभग 3297 सामुदायिक अभियानों के ज़रिए 2.93 लाख लोगों को जागरूक किया गया है। इसके अलावा, ‘उड़ान परियोजना’ के तहत ‘स्पोर्ट्स फ़ॉर डेवलपमेंट’ नामक एक पायलट पिछले सितंबर से 7 जिलों में शुरू किया जा चुका है। इसके तहत बच्चों की बड़ी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सरकारी स्कूलों में खेल गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। पुरस्कार वितरण के दौरान माता-पिता के साथ-साथ समुदाय के सदस्यों को भी आमंत्रित किया जाता है, जहां उन्हें बाल मजदूरी के विभिन्न आयामों के बारे में जागरूक किया जाता है। निकट भविष्य में इसे शेष 15 जिलों में भी लागू किए जाने की संभावना है।
उन्होंने आगे कहा कि अब तक लगभग 186000 किशोर-किशोरियों को बाल श्रम के मुद्दे पर उन्मुख और संवेदनशील बनाया गया है। इसी प्रकार, बाल संसद एवं मीना मंच के माध्यम से लगभग सोलह-सोलह हज़ार बालक-बालिकाओं को बाल श्रम के विषय में जागरूक किया गया है।
‘उड़ान–बच्चों के खिलाफ हिंसा पर रोक एवं किशोर-किशोरियों का सशक्तिकरण’ परियोजना को महिला एवं बाल विकास निगम, बिहार सरकार और यूनिसेफ़ द्वारा राज्य भर के 22 ज़िलों में तीन भागीदारों के समर्थन से लागू किया जा रहा है। इन 22 जिलों में 2011 की जनगणना, एनएफएचएस-5 और अन्य सरकारी आंकड़ों के अनुसार 13 अत्यधिक बाल श्रम प्रवण जिले शामिल हैं, जहां पहले से ही विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
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‘बाल श्रम के विरुद्ध बिहार’ इस अभियान का मार्गदर्शक सिद्धांत है। बाल श्रम के नुकसान के अलावा इससे जुड़े कानूनी प्रावधानों, छुड़ाए गए बच्चों के पुनर्वास प्रक्रिया आदि के बारे में जागरूकता पैदा करने और नागरिकों को शिक्षित करने हेतु विभिन्न गतिविधियां आयोजित की जाएंगी। साथ ही, उन्हें अपने आसपास बाल श्रम गतिविधियों की रिपोर्ट करने के लिए चाइल्डलाइन आपातकालीन नंबर (1098) अथवा बिहार सरकार के बाल श्रम व्हाट्सएप शिकायत नंबर (9471229133) का इस्तेमाल करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाएगा।
निरंतर जागरूकता अभियान और प्रमुख हितधारकों द्वारा निभाई गई सक्रिय भूमिका के परिणामस्वरूप राज्य के बाहर कार्यरत काफी बाल श्रमिकों को छुड़ाया गया है। सरकारी एजेंसियों द्वारा जनवरी 2020 से अब तक लगभग 1231 बाल मजदूरों को बचाया गया है। पिछले एक साल में 257 छुड़ाए गए बच्चों को सीएमआरएफ (मुख्यमंत्री राहत कोष), केंद्रीय बंधुआ मजदूर योजना या किसी अन्य योजना से जोड़ा गया है।
साक्ष्यों का हवाला देते हुए यूनिसेफ बिहार की संचार विशेषज्ञ निपुण गुप्ता ने कहा कि बाल मजदूरी गरीबी और निरक्षरता के दुष्चक्र को कायम रखता है। वयस्कों को रोजगार देना और बच्चों को स्कूलों, व्यावसायिक और जीवन कौशल से जोड़ने के साथ-साथ बाल श्रम कानूनों का उल्लंघन करने वालों को कड़ी सजा देना बाल मजदूरी की मांग-आपूर्ति चेन को तोड़ने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।