पुण्यतिथि पर याद किए गए डॉ सतीशराज पुष्करणा। पटना, संवाददाताI लघुकथा को साहित्यिक विधा के रूप में मान्यता दिलाने के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन की शुरूआत करने वाले डॉ सतीश राज पुष्करणा को उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर लघुकथाकारों ने अपनी-अपनी रचनाओं का पाठ कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की और इस क्षेत्र में दिए गए उनके अद्वितीय योगदान को याद किया।
अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच के बैनर तले डॉ ध्रुव कुमार के संयोजकत्व में सोमवार को युवा आवास सभागार में आयोजित स्मृति पर्व में इस अवसर पर डॉ. अनीता राकेश, चितरंजन भारती, विभा रानी श्रीवास्तव, पंकज प्रियम, विद्या चौधरी, सिद्धेश्वर, अनिल रश्मि, सुधांशु चक्रवर्ती, पूनम कटियार, ज्योति मिश्रा, श्रीकांत व्यास, रवि श्रीवास्तव, अमृता सिन्हा, प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र, एकता कुमारी, सुधा पांडेय, मीरा प्रकाश, डॉ शंकर प्रसाद, समर्थ नाहर, नीरव समदर्शी आदि ने अपनी-अपनी लघुकथा का पाठ किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ शंकर प्रसाद ने कहा कि लघुकथा को स्थापित करने में सतीशराज पुष्करणा का योगदान अद्वितीय है।दशकों तक उनके साथ साहित्य की सेवा में संलग्न शायर कासिम खुर्शीद ने कहा कि वे रचनाओं को ही नहीं, रचनाकारों को भी संवारते थे।
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जेपी विश्वविद्यालय, छपरा की स्नातकोत्तर हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. अनीता राकेश ने कहा कि उन्होंने संपूर्ण जीवन लघुकथा की समृद्धि के लिए कार्य कियाI चितरंजन भारती ने कहा कि पुष्करणा जी ने 90 से अधिक पुस्तकों का लेखन और संपादन कियाI अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच के महासचिव डॉ. ध्रुव कुमार ने कहा कि 5 अक्तूबर, 1946 को पाकिस्तान के लाहौर में जन्में पुष्करणा ने पटना को अपनी कर्मभूमि बनाया और 55 वर्षों से अधिक समय तक यहां रह कर साहित्य की अविस्मरणीय सेवा की। उनकी चर्चित पुस्तकों में लघुकथा बहस के चौराहे पर, लघुकथा की रचना प्रक्रिया, लघुकथा स्वरूप और दिशा, लघुकथा की रचना प्रविधि वर्तमान के झरोखे में, प्रसंगवश, आग की नदी, जहर के खिलाफ आदि शामिल हैं।
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इससे पूर्व कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए पटना दूरदर्शन के कार्यक्रम प्रमुख डॉ राज कुमार नाहर ने कहा कि पिछले 5 दशकों में सतीशराज पुष्करणा और लघुकथा दोनों एक दूसरे के पर्याय बन गये थे। सभी ने उनके विस्तृत योगदान पर चर्चा करते हुए अपनी लघुकथाओं का पाठ कर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।