पटना,कुमार प्रबल। पटना का एक गैर सरकारी संगठन Didiji sanskarshala वैसी महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रहा है, जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है लेकिन वो चौका बर्त्तन या मजदूरी नहीं कर सकती हैं। संस्था ऐसी महिलाओं को सिलाई–कटाई और बुनाई का मुफ्त प्रशिक्षण देती है। साथ में अपना काम शुरु करने के लिए शुरुआत में कुछ कपड़े भी उपलब्ध करवाती है।
प्रशिक्षित महिलाएं इन्हीं कपड़ों से कुछ सिल कर,बना कर उसे स्थानीय बाजार में बेचकर अपने लिए कुछ धनोपार्जन कर लेती है। कुछ महिलाएं तो बीच में ही सिलाई का काम छोड़ देती हैं लेकिन कुछ महिलाएं Didiji sanskarshala से मिले कपड़े से काम शुरु कर लगातार काम करती रहती हैं। इससे उन्हें नियमित आमदनी भी होती है।साथ ही आसपास के घरों से सिलाई का काम भी उनकी आमदनी का जरिया बन जाता है।
Didiji sanskarshala दीदीजी फाउंडेशन की एक इकाई है इसका दफ्तर पटना से सटे कुरथौल में राजपुताना स्थित फुलझरी गार्डेन से संचालित होता है। फाउंडेशन की संस्थापिका डा. नम्रता आनंद पेशे से शिक्षिका हैं और लगातार तीस वर्षों से समाजसेवा करती आ रही हैं। संगठन के बारे में बताते हुए वह कहती हैं कि कुरथौल दफ्तर में ही दीदीजी संस्कारशाला संचालित होता हैं जहां विभिन्न तरह का प्रशिक्षण चलाया जाता कार्यक्रम चलाया जाता है। जिसमें सिलाई कटाई भी प्रमुख है। डा. नम्रता कहती हैं मुफ्त सिलाई प्रशिक्षण कार्यक्रम में सीखने के लिए तो बहुत सारी महिलाएं आ जाती हैं लेकिन सीखने के बाद वो पैसे और कपड़े के अभाव में अपना काम शुरु नहीं कर पाती थीं। इसलिए संस्था ने कपड़े देने का प्रावधान शुरु किया है। ताकि प्रशिक्षित महिलाएं अपना काम शुरु कर सकें। अन्यथा उनका यह स्किल बेकार चला जाता है। अब वो अपने स्किल का उपयोग कर आत्मनिर्भर बन रही हैं।
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नम्रता आनंद बताती हैं कि अबतक संस्कारशाला में 15 से अधिक बैच नकल चुके हैं। जिसमें 500 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित किया जा चुका है। संस्कारशाला में महिलाओं को तीन महीने तक सिलाई का प्रशिक्षण दिया जाता है। खुद आत्मनिर्भर बनने के साथ ही ये महिलाएं अब दूसरी महिलाओं को भी हुनर सिखाकर आत्मनिर्भर बना रही हैं। महिलाओं को सिलाई प्रशिक्षण के दौरान कटिंग, टेलरिंग का काम सिखाया जाता है। फाउंडेशन का यह कार्यक्रम वह कहती हैं यह महिला सशक्तीकरण में मील का पत्थर साबित हो सकता है। लेकिन संगठन की अपनी एक सीमा है। सरकार से कोई मदद नहीं ली जाती है। समाज सेवा के नाम पर संस्था से जुड़े कुछ लोग मदद करते है उसी से यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है। दो दो प्रशिक्षक को मासिक सहयोग राशि दी जाती है। वो भी कोई वेतन नहीं होता है। हमारी कोशिश है कुछ और लोगों को संस्था से जोड़ने की जो आर्थिक मदद कर सकें ताकि यह कार्यक्रम और मजबूती से चलाया जा सके।