पटना के कई अपार्टमेंट में नहीं पहुंचे जनगणनाकर्मी, नहीं हो सकी जनगणना। रिपोर्ट पर उठ रहे हैं सवाल ।
पटना। जाति आधारित गणना के आंकड़े लोगों में संसय पैदा कर रहे हैं। कारण है राजधानी के अपार्टमेंट में गणना का नहीं होना। क्योंकि आशियाना-दीघा रोड स्थित अपार्टमेंट, नागेश्वर कॉलोनी स्थित अपार्टमेंट, धीराचक अनिसाबाद स्थित अपार्टमेंट, महेश नगर स्थित अपार्टमेंट, विश्वेशरैया भवन के पीछे पुनाईचक स्थित कुछ आवास सहित कंकड़बाग के कुछ इलाके में जनगणनाकर्मी के नहीं पहुंचने से जाति आधारित गणना नहीं हो सकी है।
बिहार में जातिगत गणना का फैसला जून, 2022 में लिया गया था। सरकार ने राज्य में मकान सर्वे की शुरुआत 7 जनवरी से शुरु की। सरकार ने जाति आधारित जनगणना सर्वेक्षण को दो चरणों में पूरा किया। सर्वेक्षण के दूसरे चरण में पहले चरण में चिन्हित किए गये मकानों में रहने वाले लोगों की जाति, उपजाति, सामाजिक-आर्थिक स्थिति आदि की सूचना एकत्र करने की शुरूआत 15 अप्रैल से शुरू की गई थी।
इसी बीच जातिगत सर्वे को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। 20 जनवरी को इस पर सुनवाई हुई। इस जनहित याचिका में बिहार में किए जा रहे जातिगत सर्वेक्षण को रद्द करने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चल रहे जातिगत सर्वे को चुनौती देने वाली किसी भी याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा है कि याचिकाकर्ता को पटना हाई कोर्ट में अपनी अपील दाखिल करनी चाहिए। पटना हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान 01 अगस्त को हरी झंडी दे दी गई।
बिहार सरकार ने आर्थिक और अन्य पहलुओं पर इकट्ठा किए गए आंकड़े को अभी सार्वजनिक करने की बात नहीं की है। जबकि सरकार ने जातिगत सर्वेक्षण में परिवार के सदस्य का पूरा नाम, पिता/पति का नाम, परिवार के प्रधान से संबंध, आयु (वर्ष में), लिंग, वैवाहिक स्थिति, धर्म, जाति का नाम, शैक्षणिक योग्यता (प्री-प्राइमरी से पोस्ट मास्टर डिग्री), कार्यकलाप संगठित या असंगठित क्षेत्र में सरकारी से लेकर निजी नौकरी, स्वरोजगार, किसान (कृषि भूमि के मालिक), कृषि मजदूर, निर्माण मजदूर, अन्य मजदूर, कुशल मजदूर, भिखारी, चीर-फाड़ करने वाले, छात्र, गृहिणी से लेकर जिनके पास कोई नहीं है काम, आवासीय स्थिति (पक्का/फूस का घर, झोपड़ी या बेघर), अस्थायी प्रवासीय स्थिति (कार्य या अध्ययन का स्थान, चाहे राज्य के भीतर या बाहर, देश या विदेश में), कंप्यूटर / लैपटॉप (इंटरनेट कनेक्टिविटी के साथ या उसके बिना), मोटरयान (दोपहिया, तिपहिया, चौपहिया, छह पहिया या अधिक, ट्रैक्टर), कृषि भूमि (0-50 डिसमिल से 5 एकड़ और उससे अधिक का क्षेत्र), आवासीय भूमि (5 डिसमिल से 20 डिसमिल और उससे अधिक भूमि का क्षेत्रफल, एक बहुमंजिला अपार्टमेंट में फ्लैट का मालिक), सभी श्रोतों से मासिक आय (न्यूनतम 0- ₹ 6,000 से लेकर अधिकतम ₹ 50,000 और अधिक) शामिल किया था। सर्वेक्षण में जाति की गिनती समेत 26 प्रकार की जानकारियां लोगों से ली गई थी।
किसका कितना प्रतिशत
जाति आधारित जनगणना के आंकड़ों की रिपोर्ट जारी होने पर जातियों की संख्या 214 बतायी गई है। अगर धर्म के अनुसार आंकड़े को देखा जाय तो 81.99 प्रतिशत हिन्दू, 17.70 प्रतिशत मुस्लिम और 0.292 प्रतिशत अन्य धर्म के लोग है। इसके अनुसार हिन्दू की आबादी 10,71,92,958 है। इस प्रकार हिन्दू हुए 81.9986 प्रतिशत, मुसलमान की आबादी 2,31,49,925 है। इस प्रकार मुस्लिम हुए 17.7088 प्रतिशत, ईसाई की आबादी 75,238 है। इस प्रकार क्रिस्चन हुए 0.0576 प्रतिशत, सिख की आबादी 14,753 है। इस प्रकार सिख हुए 0.0113 प्रतिशत, बौद्ध की आबादी 1,11,201 है। इस प्रकार बौद्धिस्ट हुए 0.0851 प्रतिशत, जैन की आबादी 12,523 है। इस प्रकार जैन हुए 0.0096 प्रतिशत, अन्य धर्म की आबादी 1,66,566 है। इस प्रकार अन्य लोग हुए 0.1274 प्रतिशत और कोई धर्म नहीं वालों की आबादी 21,460 है। इस प्रकार कोई धर्म नहीं वाले हुए 0.0016 प्रतिशत हुए।
आंकड़े पर ध्यान दिया जाय तो बिहार में 11 जातियां सबसे कम जनसंख्या वाली दर्शायी गयी है, जिसमें अगरी (फॉरवर्ड) जाति में एक मात्र कायस्थ की आबादी मात्र 7,85,000 दर्शाया गया है, जिसके कारण कायस्थ हुए 0.60 प्रतिशत, वहीं अन्य जातियों में कम जन संख्या वालों में लोहार 0.62 प्रतिशत, माहली 0.55 प्रतिशत, माली (मालाकार) 0.26 प्रतिशत, मझवार 0.0021 प्रतिशत, मलार (मालहोर) 0.0020 प्रतिशत, भूईयार 0.0019 प्रतिशत, मांगर 0.0009 प्रतिशत, मदार 0.0006 प्रतिशत, जादूपतिया 0.0001 प्रतिशत और भास्कर की आबादी मात्र 37 है।
बिहार में सर्वाधिक जनसंख्या वाली जातियों में, यादव 14.26 प्रतिशत, दुसाध 5.31 प्रतिशत, रविदास 5.25 प्रतिशत, कोइरी 4.21 प्रतिशत, शेख (मुस्लिम) 3.82 प्रतिशत, ब्राह्मण 3.65 प्रतिशत, मोमिन या जुलहा (मुस्लिम) 3.54 प्रतिशत, राजपूत 3.45 प्रतिशत, मुसहर 3.08 प्रतिशत, कुर्मी 2.87 प्रतिशत और भूमिहार 2.86 प्रतिशत है।
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जाति आधारित गणना की रिपोर्ट पर राजनीतिक बोल
सरकार का मानना है कि जाति आधारित जनगणना कराने से आर्थिक रूप से पिछड़ों को आरक्षण सहित उन्हें आगे बढ़ाया जायेगा।जारी रिपोर्ट पर राजनीतिक बोल भी सुनने -पढने को मिल रहे हैं। रिपोर्ट पर कांग्रेस विधान मंडल दल के डॉ शकील अहमद ने कहा है कि जाति आधारित गणना को आर्थिक आधार पर भी तैयार किया जाना चाहिए। भाकपा-माले के विधायक महबूब आलम ने कहा कि अब बिहार सरकार को जाति आधारित नये आंकड़ों के आधार पर दलित-बंचित, पिछड़े समुदाय के समुचित विकास की नीतियां बनानी चाहिए और दलित- अतिपिछड़े-पिछड़े समुदाय के आरक्षण का विस्तार किया जाना चाहिए।
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एआईएमआईएम विधायक सह प्रदेश अध्यक्ष अख्तरूल इमाम ने कहा कि पिछड़ों को आगे बढ़ाना है तो आरक्षण का आंकड़ा बढ़ना होगा। माकपा विधायक दल के नेता अजय कुमार ने कहा है कि अभी की जाति गणना की जारी रिपोर्ट का मतलब उस वक्त सार्थक होगा, जब आर्थिक, सामाजिक रिपोर्ट को सामने लाया जायेगा। भाकपा विधायक दल के नेता सूर्यकांत पासवान ने कहा कि रिपोर्ट के बाद अब उस पर काम करना चाहिए और आरक्षण का आकर बढ़ाना होगा। राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद ने कहा है कि आरक्षण का दायरा बढ़ाया जायेगा, जैसी संख्या जातीय गणना में आई है, आरक्षण का दायरा उसी अनुपात में बढ़ाया जायेगा।
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भारतीय जनता पार्टी के विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा और विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष हरि सहनी ने कहा है कि हमलोगों ने अपनी आपत्तियां दर्ज करा दी है। जबतक पारदर्शी तरीक़े से सब कुछ सामने नहीं आएगी, तब तक इस रिपोर्ट का कोई मतलब नहीं होगा। हम पार्टी के संरक्षक एवं पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा है कि राज्य में आबादी के प्रतिशत के हिसाब से सरकारी नौकरी एवं स्थानीय निकायों में आरक्षण की व्यवस्था हो।
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लोजपा (रा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने जातीय गणना के आंकड़ों पर सवाल उठाया है और कहा है कि एक जाति विशेष को राजनीतिक लाभ दिलाने कि दृष्टि से आंकड़ों को जहां बढ़ा चढ़कर दिखाया गया है तो कहीं कई जातियों की आबादी कम दिखाने का प्रयास किया गया है।
जितेन्द्र कुमार सिन्हा (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )