विकासशील स्वराज पार्टी चलाएगी हस्ताक्षर अभियान। राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश निषाद ने कहा – राजनीतिक लाभ के लिए सामाजिक आंकड़ा जारी किया गया, आर्थिक रिपोर्ट नहीं।
पटना, जितेन्द्र कुमार सिन्हा। बिहार में जातीय गणना के आंकड़े सार्वजनिक होने के साथ ही इसको लेकर सियासत भी शुरू हो गई है। एक तरफ जहां सरकार आंकड़ों को जारी करने के बाद अपनी पीठ थपथपा रही है, तो वहीं दूसरी तरफ इसको लेकर सवाल भी उठने लगे हैं। विकासशील स्वराज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश निषाद ने कहा है कि राजनीतिक लाभ के लिए सामाजिक आंकड़ा जारी किया गया है, लेकिन आर्थिक रिपोर्ट नहीं। यह एक सोची समझी राजनीति है। सरकार की नियत में खोट है।
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उन्होंने कहा कि हम पूरे बिहार का दौरा कर रहे हैं, खासकर हमारे समाज के लोगों ने यह बताया है कि, हमसे कभी किसी ने जाति नहीं पूछी तो फिर यह जनगणना रिपोर्ट कैसे आ गई, ऐसी स्थिति में इस रिपोर्ट पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं। व्यक्तिगत तौर पर मैं भी यह कह सकता हूं कि, मुझे एवं मेरे पार्टी के अन्य राष्ट्रीय एवं प्रदेश पदाधिकारी से कभी भी इस तरह के सर्वेक्षण एवं जनगणना के बारे में पूछताछ नहीं की गई है। इसे प्रमाणित करने के लिए हमारी पार्टी पूरे राज्य में हस्ताक्षर अभियान चलाएगी एवं सरकार के कृतियों को बेनकाब करेगी।
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उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी पूर्व से भी खासकर हमारे समुदाय मलाह एवं मलाह की उपजातियां को एकीकृत करने की मांग कर रही है। इस संदर्भ में सरकार के साथ-साथ बिहार के महामहिम राज्यपाल को भी ज्ञापन सौंपा जा चुका है। परंतु इस पर कोई कार्रवाई न होकर ये जातीय गणना के फर्जी आंकड़े जारी कर सरकार जातीय उन्माद फैलाना चाहती है। आने वाले चुनाव में बिहार की जनता इस सरकार को जवाब देगी। बिहार की जनता अब 1990 की दशक वाली जनता नहीं है। 21वीं सदी भी किशोरावस्था को पार कर चुकी है, उनमें भी ऐसी सूझबूझ आ गई है कि वह अब इस भेदभाव में पड़ने वाले नहीं हैं। बिहार सरकार के इस कृत से युवा वर्ग काफी आहत है, भविष्य में सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
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एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि अपने को “सन ऑफ मल्लाह ” मानने वाले मुकेश साहनी ने जाति जनगणना रिपोर्ट का समर्थन किया है। इस पर मुकेश निषाद ने बताया कि, उन्हें तो अब शर्म आनी चाहिए। इस रिपोर्ट में उनकी संख्या स्वतंत्र प्रतिशत में भी नहीं है, वह अपने को मल्लाह नहीं कह सकते, वे बनपर जाति से आते हैं ,और उनकी संख्या इस आंकड़े में देखी जा सकती है, समाज के लिए भी यह आईना है कि, मलाह जाती को गुमराह कर एक वनपर जाति का नेता समाज को ठग रहा है एवं उनका राजनीतिक सौदा कर रहा है।