महिलाओं को पीरियड्स के दौरान पेट में तेज दर्द और हैवी ब्लीडिंग की शिकायत होती है. इस असामान्य स्थिति को मेनोरेजिया कहते हैं. मेनोरेजिया में ब्लीडिंग इतनी तेज होती है कि हर घंटे या दिन में 2-4 पैड बदलने की जरूरत महसूस होती है. इसके अलावा मेनोरेजिया में पूरे समय पेट में दर्द रहता है और रोज के काम करने में भी दिक्कत महसूस होती है. रक्तस्राव और अति रक्तस्राव महिलाओं में होने वाली आम बीमारी है। इसको लेकर तरह तरह की भ्रांतिया महिलाओं में फैली हुई है। स्वास्थ्य स्तम्भ के तहत इसी अतििरक्त स्राव बीमारी के बारे में जानने के लिए मुकेश कुमार सिन्हा ने बात की पटना की सुप्रसिद्ध महिला डॉक्टर सिम्मी कुमारी से। डॉक्टर सिमी महिला रोग की विशेषज्ञ हैंं, साथ ही साथ महिला कैंसर और निःसंतानता रोग विशेषज्ञ भी हैं। यहां प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश :
डॉक्टर ये मेनोरेजिया क्या हैं?
मेनोरेजिया दरअसल महिलाओं की एक खास बीमारी हैं। यह तब दिखता है जब पीरियड्स शुरू होता है। दरअसल पीरियड्स के दौरान जब महिलाओं में आवश्यकता से अधिक रक्त स्राव या खून का बहाव होता है तो ऐसे में इसे मनोरेजिया कहते हैं।
इस बीमारी की पहचान क्या है ? मतलब किन लक्षणों के आधार पर महिलाएं तय कारगी की वो मेनोरेजिया की शिकार हैं , कुछ ऐसी बातें बताये जिससे ग्रामीण महिलाओं को सुविधा हो इसे पहचानने में
आम तौर से तीन से पांच दिन का पीरियड्स आता है। जिसमें महिलाओं को हर दिन दो से तीन पैड्स लेने की जरूरत होती है पर मनोरेजिआ में जब है घंटे या दो घंटे में पैड्स बदलने पड़ें या फिर खून का थक्का ज्यादा आने लगे तो महिला मेनोरेजिया की शिकार है। तब महिला को डॉक्टर्स की सलाह की जरूरत पड़ जाएगी।
मेनोरेजिया में महिलाओं को हर एक घंटे में पैड चेंज करना पड़ता है. रात में सोने के दौरान भी पैड चेंज करने की जरूरत महसूस होती है. कई बार हैवी ब्लीडिंग को रोकने के लिए एक समय में दो पैड लगाने की जरूरत महसूस होती है. दर्द की वजह से कोई भी काम करने में दिक्कत होती है. ब्लीडिंग में खून के थक्के आते हैं. 7 दिनों से ज्यादा हैवी ब्लीडिंग के साथ पीरियड्स चलते हैं. इस दौरान पूरे समय थकान रहती है और सांस लेने में भी दिक्कत होती है. कभी-कभी मेनोपॉज के बाद भी ब्लीडिंग होती है. इसके अलावा पेट में दर्द होना , काम में मन नहीं लगना। ऐसे में डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी हो जाता है नहीं तो ये ज्यादा भयंकर रूप ले सकता है।
डॉक्टर साहब किस उम्र की महिलाओं को यह बीमारी अधिक पाई जाती है ?
यह आम तौर पर दो उम्र की महिलाओं में अधिक होती है पहली जब बच्चियों किशोरावस्था में प्रवेश में प्रवेश कर रही होती हैं और दूसरा जब महिलाएं रिप्रोडक्टिव एज से मोनोपॉज एज में प्रवेश कर रही होती हैं, जब किसी बच्ची में पीरियड्स शुरू हो रहा होता है या किसी महिला का पीरियड्स का आना समाप्त हो रहा होता है। ज्यादा ब्लीडिंग होने पर रोजाना की गतिविधियां करने में दिक्कतें आती हैं। सामान्यतौर पर महिला में पीरियड्स के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग होने से एनीमिया हो जाता है ।
इसके निवारण क्या है , मेनोरेजिया का इलाज कैसे किया जाता है ?
हैवी ब्लीडिंग के कुछ मामलों में डॉक्टर्स गर्भनिरोधक गोलियां लेने की सलाह देते हैं. इन दवाओं की वजह से शरीर में हार्मोन का संतुलन बदलता है, जिससे हैवी ब्लीडिंग कम होने लगती है. डॉक्टर्स हैवी पीरियड्स को रोकने के लिए कुछ और दवाएं भी लिख सकते हैं. ये दवाएं आपको पीरियड्स के दौरान ही लेनी होंगी.
सर्जरी– अगर आपके शरीर में पॉलीप्स या फाइब्रॉएड है, तो डॉक्टर आपको सर्जरी कराने की भी सलाह दे सकता है. सर्जरी के बाद हैवी ब्लीडिंग की समस्या रुक जाएगी.
मेनोरेजिया का इलाज कई फैक्ट पर निर्भर करता है। डॉक्टर इलाज की प्रक्रिया तय करने से पहले मरीज का स्वास्थ्य और मेडिकल हिस्ट्री देखते हैं। भविष्य में बच्चे की योजना है कि नहीं, ये भी पूछ सकते हैं। सामान्यतौर पर तो डॉक्टर दवाइयां ही देते हैं, लेकिन अगर इससे कामयाबी नहीं मिलती तब मेनोरेजिया का सर्जरी के जरिए इलाज किया जा सकता है।
• डी एंड सी:- यह एक तरह की सर्जरी होती है, जिसमें डॉक्टर सर्विक्स को खोल कर पीरियड्स में ब्लीडिंग को कम करने के लिए यूटेरस की लाइन से टिश्यू को स्क्रैप करते है। हालांकि यह सामान्य प्रक्रिया है, इससे ज्यादा ब्लीडिंग होने का बेहतर तरीके से इलाज होता है।
• Uterine Artery Embolization:- जिन महिलाओं में फाइब्रॉइड की वजह से मेनोरेजिया हुआ है, उनमें इस फाइब्रॉइड को छोटा कर दिया जाता है। इसमें गर्भाशय की धमनियों में खून की सप्लाई बंद कर दी जाती है।
डॉक्टर यूट्रस से परत हटाकर सफाई भी कर सकते हैं. इसकी सबसे आसान प्रक्रिया डाइलेशन और क्यूरेटेज है. इससे भी हैवी ब्लीडिंग रूक जाती है. कुछ महिलाओं को ये एक बार से ज्यादा कराना पड़ता है.
कोई सावधानी है इसके लिए की यह बीमारी न हो ?
नहीं ऐसी कोई सावधानी नहीं है यह जो है हार्मोन के असंतुलन के कारण होता हो और इसके होने का कोई खास कारण नहीं है।
हाँ सही डाइट और सही रूटीन रखने से कुछ सुविधाएँ हो सकती है।