आरजेडी को तय करना होगा अपना राजनैतिक टारगेट
मुकेश महान। इस बार बिहार में मजबूत नेता नीतीश कुमार की अगुआई में भाजपा की दबाव वाली एनडीए की सरकार है तो युवा नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महगठबंधन के रूप में बहुत ही मज़बूत विपक्ष भी है । इस पर चर्चा हो रही है और आगे भी होती रहेगी कि मुख्य मंत्री नीतीश कुमार भाजपा का दबाव कब तक और कितना झेल पाएँगे और ये सरकार कब तक चलेगी। इसके साथ साथ ये चर्चा भी चलती ही रहेगी की तेजस्वी की अगुआई में विपक्ष नया क्राया गुल खिला सकता है।
यह सवाल तब और समीचीन हो जाता है जब कुछ सीटों से ही वो सरकार बनाने से चूक गई । लेकिन उसके समर्थकों को अब भी ये भरोसा है कि सरकार बनाने की संख्या और गणित में कोई चमत्कार होगा और राजद समर्थित सरकार कभी भी बिहार में शपथ ले सकती है । दरअसल इसी उहापोह में राजद का राजनैतिक टारगेटतय नही हो पा रहा है। दूसरे शब्दों में तेजस्वी तय नहीं कर पा रहे हैं कि राजद को सरकार के लिए कार्ड खेलना चाहिए या मजबूत विपक्ष होने का लाभ लेना चा
राजद की एक धारा नीतीश सरकार के ख़िलाफ़ आक्रामक होने को आतुर है तो दूसरी धारा नीतीश कुमार को नाराज़ नही करना चाहती है । इस धारा को नीतीश के साथ सरकार बनाने की संभावना अब भी दिख रही है। नतीजा ये है कि बिहार में अबतक मज़बूत विपक्ष की वो मजबूती नहीं दिखी है जो उसके पास है। अब बड़ा सवाल है कि क्या करे राजद।राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है की राजद को अपना लाइन और लेंथ तय करने में अब देर नही करनी चाहिए। जनता ने उसे मजबूत विपक्ष की भूमिका दी है , सत्ता की नहीं । पार्टी को जल्द ही अब यह समझ में आ जाना चाहिए। ऐसे में एक मज़बूत,आक्रामक और रचनात्मक विपक्ष जनता को दिखना ही चाहिए।अन्यथा जनता का भरोसा टूट सकता है। जनता यह तो सहज ही सोच सकती है कि सामर्थ्य होते हुए भी जो पार्टी विपक्ष की भूमिका का निर्वहन सही तरीक़े से नहीं कर सकती है वह सत्ता की ज़िम्मेदारी कैसे निभा सकती है। पार्टी के रणनीतिकारों को इस पर गम्भीरता से विचार कर अपनी दिशा तय करनी होगी।
किसान आंदोलन के समर्थन में तेजस्वी की अगुवाई में जबतब आवाज़ उठाती रही है, लेकिन विरोध का वह तेवर और धार नही दिखा कभी, जो एक मजबूत विपक्ष में होता है या होना चाहिए। हाँ, किसान आंदोलन के समर्थन में महगठबंधन 30 जनवरी को मानव श्रृंखला बनाने की घोषणा कर चुका है ,लेकिन यह घोषणा कितना सफल होगा या रहेगा, ये देखना अभी शेष है। जबकि एक मजबूत विपक्ष का विरोध या समर्थन राज्य में ही नहीं राज्य के बाहर भी महसूस किया जाना चाहिए। निश्चित रूप से राजद या महगठबंधन या बिहार का विपक्ष इसमें चूक रहा है।
रोज़गार राजद का एक सफल चुनावी मुद्दा था, लेकिन विपक्ष में आते ही आरजेडी इस मुद्दे को लगता है भूल चुका है। जबकि बिहार के युवा वोटर्स को राजद से खास कर तेजस्वी यादव से रोज़गार को लेकर बड़ी उम्मीदें हैं।बतौर विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव इस मुद्दे पर कितना खड़े उतरते हैं ये भी देखना अभी बाक़ी है ।