DEOGHAR YATRA
धर्म-ज्योतिष

DEOGHAR YATRA : बाबा डगरिया, चले कांवरिया

DEOGHAR YATRA: कांवर से कांवरियों का सरोकार कभी कम ना होगा. कांवर के प्रति ही नहीं भगवान भोलेनाथ को भी कांवरिया अति प्रिय है तभी तो कभी सावन तो कभी आश्विन के दौरान बहुसंख्यक सनातनी लोग ऊं नमः शिवाय का जाप करते थकते नहीं और ऐसा महसूस होता है मानों भोलेनाथ नाथ को भी अपने प्रिय भक्तों से मिलने का इंतजार रहा हो. DEOGHAR YATRA के प्रारंभिक चरण की तिथि उल्लेखनीय नहीं है फिर भी कांवरियों का मन टटोलने पर जो जानकारी हासिल हुई वह आस्था का पराकाष्ठा कहा जा सकता है । यानि अनादि काल से देवघर शिव अर्चना में कांवरियों की चर्चा का स्नेहिल सहयोग है।

सबसे पहले रेल या सड़क मार्ग से बाबा अजगैबीनाथ(सुल्तान गंज) तक की सुविधाजनक यात्रा होती है. वहां गंगा नदी उत्तर वाहिनी हैं. तट के समीप ही टीले पर ऋषि अजगैबीनाथ के आश्रम का मनोरम दृश्य तपस्थली के रूप में आज भी वैदिक संस्कृति के प्रमाण हैं। सहसा कृतज्ञता का भाव लिए कांवरिया बरबस बोल पड़ते हैं”बाबा अजगैबीनाथ”की जय.

आज का अजगैबीनाथ गंगा नदी तट अति रमणीय कहा जा सकता है लेकिन दशकों पहले दलदल का सामना कर हीस्नान करते रहे लोग. स्नान के साथ अपने-कांवर को भी गंगा जल से शुद्धिकरण करना जरूरी समझा जाता है. यहां से अब बाबा का खजाना(कांवर जल) पात्र में भरकर कांवर में रखा जाता है और साथ ही गेरुआ वस्त्र धारण कर कांवर की सामुहिक पूजा-आरती तथा भगवान शिव के नाम समेत अन्य आराध्य देवों का स्मरण कांवरियों के आत्मवल को बढ़ाता है.

इस बीचजोकांवरिया अजगैबीनाथ घाट पर सभी प्रकार से तैयार रहते वे लोग देवघर की 108 कि.मी.की कांवर यात्रा की श्रीगणेश से खुद को “कांवरिया” घोषित कर देते हैं. अब कोई भी अपने नाम से नहीं जाना जायेगा. फलांं बम, बमरी(महिला) या बम भोलिया बम, लाल बम (पहली बार कांवर लेने वाले) कांवरिया. सभी के संबोधन में बम शब्द एक ऊर्जा बन जाता है ।

Read Also: जीवन को प्यार से भर देता है रोज क्वार्ट्ज, जानिए कैसे ?

पांव-पैदल, दाहिने कांध पर श्रद्धा का कांवर,खुद के लिए झोला व उसमें पूजन सामग्री और मन में
उल्लास लिए कभी तेज चाल तो कभी धीमी गति. कभी सुस्ताने का मन तोकभी दूरी तय करने का
जतन, यही है कावरियों की अपनी दिनचर्या .कठोर तपस्या समान है यह कांवर यात्रा. नाही खाने, सोने औरना ही घर जैसा आराम, फिर भी अज्ञात सुख के साथ ऊंचे हुए मनोवल के बीच भोलेनाथ का जयकारा संजीवनी समान है. हर बम की टोली में पुराने साथी को सरदार बम कहा जाता है. दोनों पहर वही कांवर की आरती करते हैं. सरदारबम के आदेश का पालन ट़ोलीके सभी कांवरियों के लिए लक्ष्मण रेखा समान है .

यथा डेग वैसा वेग. दो, तीन,चार दिनों तक चलने के अनुसार देव घर पहुंचा जाता है. इसबीच रामपुर, जिलेबिया, अबरखा, पटनिया नामक विश्राम स्थलों पर बेहतरीन तरीके से सभी के लिए ठहराव बनाए गए हैं जो सरकारी ,निजी, दुकानदारों के द्वारा संचालित होता है . सावन, भादो, आश्विन, वसंत पंचमी के साथ महाशिवरात्रि पर्व पर देवघर का मार्ग कांवरियों से अटा- पटा रहता है.

मुझे भी 43वर्षों तक कांवरिया के रूप में देवघर यात्रा का सौभाग्य प्राप्त है लेकिन बीते दो वर्षों से कोरोना ने इस पवित्र यात्रा पर ग्रहण लगा दिया है .बाबा नाम केवलम् या बाबा नाम ही बलम्, यह तो शिव भक्त ही बता सकते हैं क्योंकि द्वादश ज्योतिर्लिंग रावणेश्वर महादेव का हृदया पीठ पंचशूल से युक्त कामद लिंग के रूप में विख्यात है।

शंभुदेव झा
शंभुदेव झा
Xpose Now Desk
मुकेश महान-Msc botany, Diploma in Dramatics with Gold Medal,1987 से पत्रकारिता। DD-2 , हमार टीवी,साधना न्यूज बिहार-झारखंड के लिए प्रोग्राम डाइरेक्टर,ETV बिहार के कार्यक्रम सुनो पाटलिपुत्र कैसे बदले बिहार के लिए स्क्रिपट हेड,देशलाइव चैनल के लिए प्रोगामिंग हेड, सहित कई पत्र-पत्रिकाओं और चैनलों में विभिन्न पदों पर कार्य का अनुभव। कई डॉक्यूमेंट्री के निर्माण, निर्देशन और लेखन का अनुभव। विविध विषयों पर सैकड़ों लेख /आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। कला और पत्रकारिता के क्षेत्र में कई सम्मान से सम्मानित। संपर्क-9097342912.