अष्टमी/नवमी कब के विवाद में न उलझें। इस आलेख को पढ़ें और स्वयं तय करें।
जानें दशहरा 2024 में अष्टमी/नवमी कब है। नई दिल्ली, बी कृष्णा। पूजा के नाम पर हम चीजों को लगातार क्लिष्ट तो बना ही रहे हैं साथ ही भ्रम भी फैला रहे हैं।हज़ारों वर्ष पूर्व भी एक ऐसा समय भी आया था जब पूजा के नाम पर लोगों को काफी भ्रमित किया गया था। पूजा में प्रयोग किए जाने वाले दूर्वा घास का tip किस तरफ हो- दाईं या बायीं ओर। इस पर भी दिशा निर्देश जारी किया जाने लगा था। फिर लोगों में जागृति आयी। उन्होनें इस पर चिंतन मनन किया और इस तरह की चीजों से अपने आप को दूर कर लिया।
आज फिर से हम उसी क्लिष्टता और भ्रमजाल में फंसते जा रहे हैं। अलग अलग स्वयंभू धर्म विशेषज्ञों और मुहूर्त विशेषज्ञों की राय हमें भ्रमित करती रहती हैंं।आखिर हम कहाँ अटकते और फंसते जा रहे हैं।
इस वर्ष दशहरा को लेकर भी कुछ ऐसी ही स्थिति बन रही है। महाअष्टमी और महानवमी की तिथी को लेकर विवाद चल रहा है। जबकि सबकुछ स्फष्ट है।यहां फिर से स्पष्ट करने की कोशिश की जा रही है। इसवर्ष 2024 में दशहहरा की शुरुआत 3 अक्टूबर से हुई।
#दशहरा काल में सूर्योदय काल की तिथियाँ निम्नलिखित हैं- 3अक्टूबर-आश्विन शुक्ल प्रतिपदा । 4अक्टूबर-आश्विन शुक्ल द्वितीया । 5अक्टूबर-आश्विन शुक्ल तृतीया। 6अक्टूबर- आश्विन शुक्ल तृतीया । 7अक्टूबर- आश्विन शुक्ल चतुर्थी । 8अक्टूबर-आश्विन शुक्ल पंचमी । 9अक्टूबर- आश्विन शुक्ल षष्ठी । 10अक्टूबर- आश्विन शुक्ल सप्तमी । 11अक्टूबर- आश्विन शुक्ल अष्टमी। 12अक्टूबर- आश्विन शुक्ल नवमी । 13अक्टूबर- आश्विन शुक्ल दशमी।
तिथि की शुरुआत और समापन भी स्पष्ट है। अष्टमी तिथि की शुरुआत-10 अक्टूबर 12:32:08 PMबजे से और समापन- 11 अक्टूबर 12:07:51 PM बजे। नवमी तिथि की शुरुआत- 11 अक्टूबर 12:07:52 PM से और समापन-12 अक्टूबर 10: 59:08 AM बजे और समापन-13 अक्टूबर 9 :09 AM बजे।
अब स्पष्ट है कि अष्टमी का व्रत तो अष्टमी में ही होना चाहिए न की नवमी में। उसी प्रकार नवमी का पूजन भी नवमी को ही होना चाहिए न की दशमी को।12 अक्टूबर को 10: 59:08 AM बजे तक नवमी का होम हो जाना चाहिए। 11 अक्टूबर को अष्टमी एवं नवमी की संधि में मंत्र दीक्षा ली जानी चाहिए।इसबार भी तिथियों की overlapping हो रही है।
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ऐसा नहीं है कि यह overlapping सिर्फ इन्ही तिथियों की हो रही है और अभी इस बार ही हो रही है। इनके पहले की तिथियों में भी ऐसा होता रहा है। इसलिए भ्रम में न पड़िए। तिथि का निर्धारित समय देखिये और अपनी सुविधा के अनुसार पूजन, हवन कीजिये। मन में ये भाव कतई नहीं लाइए कि अरे इस तरह से पूजा कर लिया तो गलती हो गयी। सहज भाव से सरलता पूर्वक पूजा कीजिए।
दुर्गति नाशिनी दुर्मति हारिणी दुर्ग निवारण दुर्गा माँ
भवभय हारिणी भवजल तारिणी सिंह विराजिनी दुर्गा माँ
पाप ताप हर बंध छुड़ाकर जीवो की उद्धारिणी माँ
जय जग जननी आदि भवानी जय महिषासुर मारिणी माँ।

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