Astrological yoga of discord in married life: हर पुरुष सुंदर पत्नी की कामना करता है तो वंही लड़कियां धनवान पति की कामना करती हैं। दाम्पत्य जीवन में अगर पार्टनर अनुकूल हो तो हर तरह की परिस्थितियों का सामना किया जा सकता है। लेकिन यदि दाम्पत्य जीवन में दोनों में से किसी भी एक व्यक्ति का व्यवहार यदि अनुकूल नहीं है तो रिश्ते में कलह और परेशानियों का दौर शुरु हो जाता है। ज्योतिषशास्त्र में जातक की जन्म कुंडली को देखकर, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आपके दाम्पत्य जीवन में कलह के योग कब उत्पन्न हो सकते हैं।
तो आइये एक नज़र डालते हैं जन्म कुंडली के उन योग पर जिनके प्रभाव से किसी भी जातक के दाम्पत्य जीवन में कलह के योग (Astrological yoga of discord in married life) बनते हैं।
कुंडली में सप्तम या सातवाँ घर विवाह और दाम्पत्य जीवन से सम्बन्ध रखता है। यदि इस घर पर पाप ग्रह या नीच ग्रह की दृष्टि रहती है तो आपको वैवाहिक जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में यदि सूर्य हो तो उसकी पत्नी शिक्षित, सुशील, सुंदर एवं कार्यो में दक्ष होती है, लेकिन ऐसी स्थिति में सप्तम भाव पर यदि किसी शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं हो तो दाम्पत्य जीवन में कलह और सुखों का अभाव बन जाता है।
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यदि जन्म कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, या द्वादश स्थान में यदि मंगल हो तो जातक को मांगलिक योग होता है, इस योग के होने से जातक के विवाह में विलम्ब, विवाहोपरान्त पति-पत्नी में कलह, पति या पत्नी के हेल्थ में प्रॉब्लम, तलाक के योग बनते हैं।यहां यदि मंगल की क्रूरता अधिक हो तो जीवन साथी की मृत्यु तक हो सकती है।
जन्म-कुंडली के सप्तम भाव में अगर अशुभ ग्रह शनि, राहू, केतु या मंगल ग्रह स्थित हो या सप्तम भाव पर इन ग्रहों की दृष्टी हो तो दाम्पत्य जीवन में कलह के योग उत्पन्न हो जाते हैं। शनि और राहु का सप्तम भाव में होना भी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है।
राहु, सूर्य और शनि पृथकतावादी ग्रह हैं, जो सप्तम भाव जो दाम्पत्य जीवन का भाव है और दूसरे भाव जो कुटुंब का भाव है पर विपरीत प्रभाव डालकर वैवाहिक जीवन को नारकीय बना देते हैं।
यदि अकेला राहू सातवें भाव में तथा अकेला शनि पांचवें भाव में बैठा हो तो तलाक होना तय है । लेकिन ऐसी अवस्था में शनि को लग्नेश नहीं होना चाहिए या फिर लग्न में उच्च का या स्वग्रही गुरु नहीं होना चाहिए।
यदि लग्न में शनि स्थित हो और सप्तमेश अस्त, निर्बल या अशुभ स्थानों में हो तो जातक का विवाह विलम्ब से होता है और जीवनसाथी से उसका मतभेद रहता है।
यदि सप्तम भाव में राहु स्थित हो और सप्तमेश पाप ग्रहों के साथ छ्ठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तो जातक के तलाक की सम्भावना होती है।
यदि लग्न में मंगल हो और सप्तमेश अशुभ भावों में स्थित हो और द्वितीयेश पर मारणात्मक ग्रहों का प्रभाव हो तो पत्नी की मृत्यु के कारण व्यक्ति को दाम्पत्य-सुख से वंचित होना पड़ता है।
यदि किसी स्त्री की जन्मपत्रिका में गुरु पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, सप्तमेश पाप ग्रहों से युत हो एवं सप्तम भाव पर सूर्य,शनि और राहु की दृष्टि हो तो ऐसी स्त्री को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।