Gau raksha hamaara param dharm : वेदों में गाय का महत्व अतुलनीय व श्रेष्ठतम है। गाय रुद्रों की माता, वसओं की पुत्री, अदिति पुत्रों की बहन तथा अमृत का खजाना है। अथर्ववेद के 21वें सूक्त को गौ सूक्त कहा जाता है। इस सूक्त के ऋषि ब्रह्मा तथा देवता गऊ है। गायें हमारी भौतिक व आध्यात्मिक उन्नति के प्रधान साधन है। मनुष्य को धन–बल–अन्न व यश पाने के लिए गऊ सूक्त का रोज़ पाठ करना चाहिए। आरोग्य व पराक्रम पाने के लिए गाय के दूध, मक्खन व घी का सेवन करने से पूर्व इस सूक्त का पाठ मात्र करने से सर्वारिष्ट शांत होते है।
Gau raksha hamaara param dharm : गायों ने हमारे यहां आकर हमारा कल्याण किया है। वे हमारी गौ शाला में सुख से बैठे और उसे अपने सुन्दर शब्दों से गूंजा दे।
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ये विविध रंगो की गौऊएं अनेक प्रकार के बछड़े –बछड़ियाँ जनें और इन्द्र (परमात्मा) के भजन के लिए उषा काल से पहले दूध देने वाली हो।
वे गायें ना तो नष्ट हों, न उन्हें चोर चुरा ले जायें और न शत्रु ही कष्ट पहुँचाये।
जिन गायों की सहायता से उनका स्वामी देवताओं का भजन करने तथा दान देने में समर्थ होता है, उनके साथ वह चिरकाल तक संयुक्त रहे।
गौएं हमारा मुख्य धन हो, इन्द्र हमें गोधन प्रदान करें तथा यज्ञों की प्रधान वस्तु सोमरस के साथ मिलकर गायों का दूध ही उनका नैवेध बने। जिसके पास ये गायें है, वह तो एक प्रकार से इन्द्र ही है। मैं अपने श्रद्धायुक्त मन से गव्य पदार्थों के इन्द्र (भगवान) का भजन करना चाहता हूँ।
गौओं। तुम कृश शरीर वाले व्यक्ति को हष्ट-पुष्ट कर देती हो एवं तेजहीनों को देखने में सुन्दर बना देती हो। इतना ही नहीं तुम अपने मंगलमय शब्दों से हमारे घरों को मंगलमय बना देती हो। इसी से सभाओं में तुम्हारे ही महान यश का गान होता है।
गौओं तुम बहुत से बच्चे जनों, चरने के लिए तुम्हें सुंदर चारा प्राप्त हो तथा सुंदर जलाशयों में तुम जल पीती रहो। तुम चोरों तथा हिंसक जीवों के चंगुल में न फंसो और रूद्र का शस्त्र तुम्हारी सब ओर से रक्षा करें।इन्हीं कारणों से गऊ सेवा को आध्यात्मिक उन्नति का आधार माना गया है