गुरु चांडाल योग - इस वर्ष की खगोलिय गणना और ज्यातिषीय आकलन के अनुसार 22 अप्रैल से गुरु का प्रवेश मेष राशि में होने पर उस का संपर्क राहु के...
धर्म-ज्योतिष

गुरु चांडाल योग गोचर में 22 अप्रैल से शुरु, डरें नही,सतर्क रहें  

22 अप्रैल से गोचर में चांडाल योग या गुरु चांडाल योग शुरु हो गया है। यह 29 नवंबर तक रहेगा। इसे एक दुर्योग बता कर कुछ ज्योतिषों ने इसके नाम पर अपने क्लाइंटों को डराना और उनका आर्थिक दोहन भी शुरु कर दिया है। ऐसे में आपको सावधान रहने की जरुरत है। प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य बी कृष्णा का यह आलेख आपको गुरु चांडाल योग की बारीकियों को बता रहा है।

गुरु चांडाल योग इस वर्ष 22 अप्रैल से 29 नवंबर 23 रहेगा। तक इस वर्ष की खगोलिय गणना और ज्यातिषीय आकलन के अनुसार 22 अप्रैल से गुरु का प्रवेश मेष राशि में होने पर उस का संपर्क राहु के साथ आने की स्थिति में खास किस्म का योग बना है। इसे गुरु चांडाल योग  का नाम दिया गया है। यह युति 29 नवंबर तक रहेगी।  कुछ  ज्योतिषियों के द्वारा यह आकलन किया गया है कि पांच राशियों. मेष, मिथुन, कन्या, धनु और मकर राशि को यह विशेष तौर पर प्रभावित करेगी, इसके जरिए उपाय बता कर व्यावसायिक दृष्टिकोण को हवा देने की पूरी कोशिश की गई है, इन तथाकथित ज्योतिषियों के अनुसार  यह योग इन पांच राशियों के लोगों पर जहां नकारात्मक प्रभाव देने वाला होगा, वहीं इसके प्रभाव से व्यक्ति के पारिवारिक और सामाजिक जीवन में  विसंगतियाँ  पैदा होंगी। सचेत करते हुए हिदायत तक दी गई है कि गुरु चांडाल योग का अगर समय पर उपाय न किया गया, तो कुंडली में जितने भी शुभ योग होते हैं, वे सब अप्रभावित हो जायेंगे। माना जाता है कि इस योग के होने से व्यक्ति का चरित्र भी कमज़ोर हो सकता है। स्वास्थ्य संबंधी परेशानी भी आ सकती है। ज्योतिषियों द्वारा किया गया इसका विश्लेषण किसी भी सामान्य व्यक्ति को आशंकित कर सकता है और उसके दिमाग में कुंठा और नकारात्मक भाव के लिए जगह बना सकता है।

क्या है यह योग एवं देश दुनिया और व्यक्ति विशेष पर इस हद तक प्रभावित कर देगा इसे हम ज्योतिष के प्रकाश में आइये साथ साथ देखने का प्रयास करें।

गुरु और चांडाल दो शब्दों से मिलकर बना है गुरु चांडाल, यहाँ गुरु से तात्पर्य बृहस्पति ग्रह से है, जबकि चांडाल से तात्पर्य छद्म राहु से है। गुरु. धर्म, न्याय, दर्शन, विस्तार, ऐश्वर्य एवं समृद्धि, रक्षात्मक सुरक्षा कवच का द्योतक है तो  राहु के कई नामों में से एक नाम चांडाल यहाँ प्रयोग किया गया है। चांडाल का अभिप्राय निम्नकोटि के व्यक्ति, जन्म से या फिर क्रिया कलाप से है। मतंग ऋषि की बात करें तो वह जन्म से चांडाल  हैं और राजा त्रिशंकु अपने क्रिया कलाप से इस प्रकृति के हैं।

इसको और विस्तार दने के लिए इस कहानी पर नजर देना जरूरी है। एक बार बनारस में शंकराचार्य  अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी की ओर जा रहे थे, रास्ते में एक चांडाल ने उनका रास्ता चार कुत्तों के साथ रोक लिया। शंकराचार्य ने जब मार्ग से हटकर राह देने की बात की तब चांडाल ने पूछा, किसको मार्ग से हटने कह रहे हो, देह को या देहि (आत्मा) को।

आचार्य समझ गए कि यह कोई निम्नकोटि का मनुष्य नहीं, बल्कि निश्चित तौर पर कोई अति प्रबुद्ध व्यक्ति है। उनका अहंकार मिश्रित भ्रम दूर हुआ। उन्हें जीवन दर्शन समझ में आया। धर्म समझ में आया। उन्होंने चांडाल को अपना गुरु स्वीकार किया। चांडाल ने अपने छद्म रूप से बाहर आकर आचार्य को अपना असली रूप दिखाया, भगवान शिव ही चांडाल का रूप धरकर आये थे।

इस कथा के प्रकाश में गुरु चांडाल योग की बात की जाए तो पाएंगे कि राहु यदि गुरु के साथ शुभ भाव में शुभ प्रभाव में है तो यह योग ईश्वरीय आशीर्वाद से अहंकार को दूर कर जीवन दर्शन से उसी प्रकार साक्षात्कार करानेवाला एवं धर्म के मार्ग पर प्रवृत करने वाला होगा, जिस प्रकार शंकराचार्य को शिव ने करवाया था। राहु यदि गुरु के साथ होकर अशुभ ग्रहों के प्रभाव में हैं तो यह योग त्रिशंकु की तरह अपने क्रिया कलापों से अपमानजनक स्थिति में पहुंचा देनेवाला होगा।

उदाहरण के लिए. राहु, गुरु यदि पंचम भाव में अशुभ ग्रहों से दृष्ट या युत हैं तो ऐसा व्यक्ति दिमागी रूप से इतना उलझा हुआ होगा की सही या गलत के बीच के अंतर को समझने में असमर्थ हो जाएगा। चाहे कोई कितना भी बढ़िया काम कर ले ऐसा व्यक्ति उसकी प्रशंसा नहीं करेगा। उस व्यक्ति की ऐसी वृत्ति उसके लिए अपमानजनक स्थिति पैदा करनेवाली होगी।इसके विपरीत यदि यह योग शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट है तो शुभ परिणाम देनेवाला होगा। जन्म कुंडली के पंचम भाव के साथ सप्तांश कुंडली का विवेचन किया जाना चाहिए। इससे यह पता चलेगा कि क्या पंचम भाव में बनने वाला यह योग अभी फलित होगा या संतान के माध्यम से इसका फल प्राप्त होगा।

 इसी प्रकार हर भाव का सूक्ष्म विश्लेषण बड़ी ही स्पष्टता से हमारे सामने कुंडली में निहित गूढ़ार्थ को स्पष्ट करनेवाला होगा। प्रवृत्ति मार्ग से निवृत्ति मार्ग पर लेकर जाने वाला होगा। देश-दुनिया में जून सितंबरअक्टूबर माह का अंतिम सप्ताह और नवंबर माह का शुरुआती दो सप्ताह काफी संवेदनशील होगा। धार्मिक उन्माद का माहौल बन सकता है। प्राकृतिक आपदाओं की परिस्थितियों की भी संभावना हैं।

इस योग के निर्मित होने के समय सूर्य और चंद्र दोनों का उच्च का होना, गुरु का वर्गोत्तम होना और इस योग पर कुंभ राशि से शनि की दृष्टि होना।. पुनर्जागरण का काल है। जन जागृति का समय है। सिर्फ भारतवर्ष ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में तमाम नकारात्मकता के बीच इस शुभ बदलाव के लहर  को महसूस किया जा सकेगा।

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विचारणीय

1 .  22 अप्रैल से 29 नवंबर के बीच सम्पूर्ण विश्व में जो बच्चे पैदा होंगे वे इस योग के साथ पैदा होंगे। प्रत्येक राशि के बच्चे इस योग के साथ पैदा होंगे। क्या उन सबका जीवन विनाशकारी होगा। क्या वे अकुशल, अप्रभावकारी, कमजोर सेहत वाले और समाज के लिए अनुपयोगी होंगे।

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2 . ग्रहों की गोचरीय स्थिति ही यदि सब कुछ तय करने लगें तो फिर व्यक्ति की स्वयं की जन्म कुंडली की जरूरत क्या और क्यों। इस संदर्भ में हर व्यक्ति को ज्योतिष के तथ्यों से अनभिज्ञ रहकर भ्रमित होने से बचना जरूरी है। इसके बदले हुए रूप को समझते हुए हर पक्ष का सूक्ष्म विश्लेषण करने के बाद ही जीवन का मर्म समझा जा सकता है। यह नहीं भूलें कि ज्योतिष जिसके नाम में ही ज्योति शब्द जुड़ा हुआ है वह कभी भी एकांगी होकर बात नहीं करता है। कभी भी जीवन को अँधेरे में लेकर जानेवाले अज्ञान की बात नहीं करता है।  यह तो हमारे जीवन से अज्ञान रुपी तम को दूर कर हमें ज्ञान के शुभ्र धवल प्रकाश में लाकर खड़ा कर देता है। इक्कीसवीं सदी में भी यह भ्रम और भटकाव स्वागत योग्य नहीं है।

ज्योतिष विद
(लेखिका दिल्ली की वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य हैं।)