कन्यादान (Kanyadan) शब्द पर समाज में गलतफहमी पैदा हो गई है और अकारण भ्रांतियां उत्पन्न की गयी है। आज समाज को फिर से यह समझने की जरूरत है कि कन्यादान का मतलब संपत्ति दान नहीं होता और न ही पुत्री या लड़की का दान।
कन्यादान (Kanyadan) का जो मतलब होता था वो गोत्र दान होता है। कन्या पिता का गोत्र छोड़ कर वर के गोत्र में प्रवेश करती है। पिता कन्या को अपने गोत्र से विदा करता है और उस गोत्र को
अग्नि देव को दान कर देता है और वर अग्नि देव को साक्षी मानकर कन्या को अपना गोत्र प्रदान करता है और अपने गोत्र में स्वीकार करता है। इसे ही कन्या दान कहते हैं।
आपको बता दें कन्यादान के समय कुछ अंशदान देने की प्रथा है। आटे की लोई में छिपाकर कुछ धन कन्यादान के समय दिया जाता है। दहेज का यही स्वरूप है। बच्ची के घर से विदा होते समय उसके अभिभावक किसी आवश्यकता के समय काम आने के लिए उपहार स्वरूप कुछ धन देते हैं, पर होता वह गुप्त ही है। अभिभावक और कन्या के बीच का यह निजी उपहार है। दूसरों को इसके सम्बन्ध में जानने या पूछने की कोई आवश्यकता नहीं। दहेज के रूप में क्या दिया जाना चाहिए, इस सम्बन्ध में ससुराल वालों को कहने या पूछने का कोई अधिकार नहीं। न उसके प्रदशर्न की आवश्यकता है, क्यों कि गरीब-अमीर अपनी स्थिति के अनुसार जो दे, वह चर्चा का विषय नहीं बनना चाहिए, उसके साथ निन्दा-प्रशंसा नहीं जुड़नी चाहिए।
पवन कुमार शास्त्री