नक्सली घटनाओं और अफीम की खेती जैसी नकारात्मक छवि वाले चतरा (Chatra Temple) जिले का एक जबरदस्त आध्यात्मिक पक्ष भी है। माता भद्रकाली मंदिर और मां कौलेश्वरी मंदिर इसी आध्यात्मिक तस्वीर को पेश करती है। समुद्र तल से 1750 फीट की ऊंचाई पर स्थित चतरा (Chatra Temple) जिले के हंटरगंज प्रखंड से 6 किलोमीटर दूर ख्याति प्राप्त मां कौलेश्वरी मंदिर परिसर वैदिक काल से ही मान्यता प्राप्त तीर्थ स्थल है। यहां पहाड़ की चोटी पर तीनों धर्मों का समागम हुआ है। यह सनातन, बौद्ध एवं जैन धर्म का संगम स्थल माना जाता है।
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कहा जाता है कि महाभारत काल में यह स्थल राजा विराट की राजधानी थी। धर्मपरायण राजा विराट ने ही मां कौलेश्वरी की प्रतिमा को स्थापित किया था। तब से लेकर आज तक मां कौलेश्वरी जन-जन के आस्था का केंद्र बनी हुई हैं। महाकाव्य काल एवं पुराणकाल से भी इस पवित्र स्थल का रिश्ता जुड़ा हुआ है। सनातन धर्मावलंबी पूजा-अर्चना के साथ विवाह एवं बच्चों का मुंडन संस्कार यहां सदियों से करते आ रहे हैं। बौद्ध धर्मावलंबी के लिए कौलेश्वरी पहाड़ भगवान बुद्ध की तपोभूमि के साथ मोक्ष प्राप्त करने का एक पवित्र स्थल है। यहां के मांडवा मांडवी नामक स्थल पर बौद्ध धर्मावलंबी बाल व नाखून का दान कर मोक्ष प्राप्त करने का संस्कार करते हैं । पहाड़ के कई पाषाणों में बौद्ध भिक्षुओं की प्रतिमाएं उत्कीर्ण है। जैन धर्म के दसवें तीर्थंकर स्वामी शीतलनाथ की तपोभूमि कौलेश्वरी पहाड़ को माना जाता है। धर्मावलंबियों ने पहाड़ की चोटी पर एक मंदिर का भी निर्माण किया है। जिसमें भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमाएं स्थापित है। इसकी सबसे ऊँची चोटी को आकाश लोचन कहा जाता है। यहाँ पर बहुत सारे प्राचीन मंदिर हैं। जिसमें काफी प्रसिद्ध है कौलेश्वरी मंदिर।
पहाड़ की चोटी पर बनी प्राचीन मंदिर में मां कौलेश्वरी की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। लोक व धार्मिक कथाओं के अनुसार राजा विराट ने माता की प्रतिमा को यहां स्थापित किया था| तब से लेकर आज तक आस-पास के क्षेत्रों में मां कौलेश्वरी श्रद्धालुओं के लिए श्रद्धा और आस्था का केंद्र बनी हुई हैं। माता की प्रतिमा काले दुर्लभ पत्थर को तराश कर बनाई गई है। मंदिर के पुजारियों व भक्तों के अनुसार माता यहां जागृत अवस्था में विराजमान हैं। मन्नत मांगने वाले भक्तों की हर मुराद माता पूरी करती हैं।कौलेश्वरी सिद्धपीठ के रूप में चिन्हित है।
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इसका उल्लेख दुर्गा सप्तशती में मिलता है। इसमें कहा गया है-कुलो रक्षिते कुलेश्वरी। अर्थात कूल की रक्षा करने वाली कुलेश्वरी। किवदंती है कि श्रीराम, लक्ष्मण सीता ने वनवास काल में यहां समय व्यतीत किया था। यह भी मान्यता है कि कुंती ने अपने पांचों पुत्रों के साथ अज्ञातवास का काल यहीं बिताया था। यह भी कहा जाता है कि अर्जुन के बेटे अभिमन्यु का विवाह मत्स्य राज की पुत्री उत्तरा से यहीं हुआ था।
अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में अपनी पहचान बना रहा यह पर्वत हिंदू, जैन व बौद्ध धर्म का संगम माना जाता है। नवरात्र के अवसर पर पूरे इलाके के लोगों की आस्था यहां उमड़ती है। यहां हर साल चीन, बर्मा, थाईलैंड, श्रीलंका, ताइवान आदि देशों से काफी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। भू-तल से 1575 फीट ऊंचे इस पर्वत का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत है। पर्वत पर हरे-भरे मनोहारी वादियों के मध्य मां कौलेश्वरी मंदिर, शिव मंदिर, जैन मंदिर व बौध स्थल स्थित है। इनके इर्द-गिर्द स्थित तीन झीलनुमा तालाबों की नैसर्गिकता दिलकश नजारा पेश करती है।