इस लेख में विस्पतार से जानें निर्जला एकादशी के बारे में। द्मपुराण में एक प्रसंग है। जब भगवान वाराह और हिरण्याक्ष का युद्ध हो रहा था, भगवान नारायण के बार बार कोशिश करने पर भी जब हिरण्याक्ष नहीं मर रहा था, तब भगवान ब्रह्मा जी ने भगवान नारायण से पूछा- हे प्रभु यह असुर तो आपकी दृष्टि मात्र से मरना चाहिए ऐसा क्यों हो रहा है कि आप इसे मार नहीं पा रहे हैं। तब भगवान जी बोले, ब्रह्मा जी शुक्राचार्य की माया से मोहित होने से कुछ ब्राह्मण दशमी युक्ता एकादशी का व्रत कर रहे हैं। क्योंकि दशमी के दिन दैत्यों की उत्पत्ति हुई थी और एकादशी के दिन देवताओं की उत्पत्ति हुई थी, इसीलिए दशमी को व्रत करने से दैत्यों का बल बढ़ता है और एकादशी को व्रत करने से देवताओं का बल बढ़ता है। ब्राह्मणों के दशमी विद्धा एकादशी का व्रत करने से दैत्य का बल बढ़ रहा है और यह मर नहीं रहा है।
मतलब जो मनुष्य दशमी युक्ता एकादशी का व्रत करता है उसके अंदर आसुरी शक्ति बढ़ती है।कलियुग में सब लोग मोहित हो कर दशमी विद्धा एकादशी का, व्रत करेंगे इसीलिए दुनिया में अशांति बनी रहेगी।
जब सीता जी को लक्ष्मण जी वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में छोड़ कर आए थे तब सीता जी ने वाल्मीकि ऋषि से पूछा कि हे ऋषिवर मैंने जीवन में कभी पाप नहीं किया, पतिव्रता रही, पति की सेवा की, फिर भी मेरे जीवन में इतने सारे कष्ट क्यों आए। तब बाल्मीकि जी ने सीता जी को जवाब दिया था कि आपने कभी पूर्व जन्म में दशमी विद्धा एकादशी का व्रत किया था, उसी दिन भगवान की पूजा की थी उससे पुण्य नहीं पाप बढ़े, उसी का परिणाम है कि आपको यह कष्ट झेलना पड़ा । पुराणों में लिखा है कि दशमी विद्धा एकादशी का व्रत करने से धन और पुत्र का विनाश होता है।
इस बार जून 10 तको निर्जला एकादशी दशमी विद्धा अशुद्ध आसुरी शक्ति को बढ़ाने वाली है इसीलिए उस दिन एकादशी का व्रत कदापि शास्त्र सम्मत नहीं है। इसलिए सभी को एकादशी 11 तारीख शनिवार को करना चाहिए। पुराणों में स्पष्ट मत मिलता है कि अगर दशमी विद्धा एकादशी हो दूसरे दिन सूर्योदय से पहले एकादशी समाप्त हो रही हो तो द्वादशी के दिन एकादशी का व्रत करके त्रयोदशी को पारण करना चाहिए।