शनि संकट इंसान पर किसी न किसी तरह आता ही रहता है। प्रणियों को शनिदेव का प्रकोप ढ़ैया, साढ़ेसाती या महादशा के रूप में सर्व विदित है लेकिन शनि की खास कृपा उन भक्तों पर देखी गई है, जो हनुमानजी के अनुरागी हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जो भी भक्त हनुमानजी की भक्ति करते हैं, उनपर शनि महाराज की क्रूर दृष्टि का प्रभाव नहीं होता है।
प्रसंगवश यह सभी जानते हैं कि “संकट तै हनुमान छुड़ावें, मन क्रम वचन ध्यान जो लाबै”। केशरी नंदन स्वयं आदि देव शिव ही तो हैं। अतः फरियादी की फरियाद को करूणार्थ शीघ्रता से दूर करते हैं।
भावपूर्ण भक्ति इनकी विशेषता है।एक कथा के अनुसार एक दिन ध्यानस्थ महावीर के सिर पर निर्धारित तिथि को शनिदेव का आगमन हो गया। महावीर जी को तत्काल कुछ अटपटा सा लगा और वे पूछ बैठे..तुम कौन हो आगंतुक?
शनिदेव ने कठोर स्वर में खुद के आगमन की जानकारी दी और कहा कि वे अब हनुमानजी के सिर पर ही निवास करेंगे। यानि संकट निकट आ चुका है, यह जान कृपालु हनुमानजी ने अतीत की घटनाक्रम और खुद के सहयोग के संदर्भ में शनिदेव को ज्ञात कराया।
विधिक विधान का संधान व दो महावलियों की टकराहट से जन के लाभ का मार्ग खुलने जा रहा था। भक्त वत्सल हनुमानजी ने शनिदेव को स्मरण कराते हुए बोला कि हे शनिदेव एक समय प्रतापी रावण के चंगुल से मैंने ही तो आपको मुक्त कराया था।
प्रत्युत्तर में शनिदेव ने कहा.. कि रावण के चंगुल से मुक्त करने का फल तो भोगना पड़ेगा। महावीर ने समय-अवधि के बारे में पूछा तो शनिदेव ने “साढ़े सात साल “की बात कही। महावीर जी ने स्वीकार कर लिया। महावीर जी के लिए प्रभु श्री राम की सेवा करते रहना, शनिदेव के चलते एक सवाल बनने लगा तो वे एक युक्ति सोचने लगे। वल,बुद्धि तथा विद्या के रसखान हनुमानजी ने फौरन एक अति भारी शिलाखंड उठा कर अपने माथे पर रख लिया और उठ कर चलने लगे।
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हनुमानजी को ऐसा करते देख शनिदेव थोड़ा असहज से दिखे और उनसे माथे पर शिला रखने का प्रयोजन पूछा, क्योंकि वे शिलाखंड के भार से सिर पर नहीं बैठ पा रहे थे। चतुर सयान हनुमानजी ने शनिदेव को समझाया कि अंजनी माता ने पीसने हेतु शिलाखंड लाने को कहा था। वे उसी का पालन कर रहे हैं और थोड़ी देर पर वे खुद का सिर हिलाते रहे जिससे शनि महाराज परेशान हो गये।.कौतुक वश हनुमानजी जी ने शनिदेव से कहा कि “अभी तो कुछ ही देर हुई है,आप को तो साढ़ेसात साल तक बिराजना है। हनुमानजी की तरकीब से शनिदेव की दयनीयता बढ़ती जा रही थी। उन्होंने हनुमानजी से ऐसा नहीं करने का आग्रह किया तो महावीर ने कहा कि आप मेरे भक्तों को नहीं सतायेंगे। जो भी हनुमानजी की भक्ति करेगा उस पर शनि की कुदृष्टि नहीं होगी।शनिदेव ने पल भर में हनुमानजी की बात मान लिया।
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पुनः हनुमानजी से शनिदेव ने खुद की पीड़ा हरण हेतु प्रत्येक शनि को पत्थर पर करू तेल चढ़ाने का आग्रह कर भक्तों के कल्याण की बात कही। इस प्रकार हनुमानजी के भक्तों व हनुमान चालीसा पाठ करने वालों पर तथा शनिवार को शनि शिलाखंड पर तेल अर्पित करते रहने से शनिदेव के कोप का भागी नहीं बनना पड़ेगा। हनुमानजी ने चतुराईपूर्ण तर्क से शनिदेव को वश में कर भक्तों पर कृपा की ।