Lord Shiva-Vidhyapti Story : भक्त के वश में हैं भगवान, शिव ने किया विद्यापति के घर की चाकरी
Lord Shiva-Vidhyapti Story : मिथिला की आध्यात्मिक ऊर्जा शक्ति के अध्याय से शिवभक्ति के सौम्य मानवीय पक्ष पर जबकिसी की नजर पड़ती है तो वहां सबसे पहले कवि कोकिल विद्यापति का नाम , मानस पटल पर कौंध जाता है। आध्यात्मिक शक्ति, भक्ति, भजन, अर्पण -समर्पण, प्रारब्ध तथा श्रेष्ठ ओजस्विता के धनी संभवतः महाकवि विद्यापति ही इस क्षेत्र के एकमात्र आध्यात्मिक क्षत्रप रहे हैं ।
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“उगना”बन कर महादेव अंतत: अपने भक्त के घर चाकरी करने लगे। समय बीतता गया और भक्त को आराध्य तथा ईष्ट देव को भक्त के साथ मनोनुकूल माहौल मिलने लगा। प्रगाढ़ता इतनी कि दो दिल एक जान में समाहित थे। कवि को एक निर्जन स्थान पर प्यास लगा कर, भगवान शिव ने अपने भक्त की प्यास बुझाने की सोची.शिव भक्ति के प्रसाद स्वरूप अब रहस्य का पटाक्षेप होने वाला था. कवि ने चाकर उगना से पीने के लिए जल लाने को कहा. सेवक ने शीध्र ही जल ला अपने भक्त शिरोमणि की प्यास बुझा दी।
गंगाजल की शुद्ध जलधारा के स्वाद से कवि उत्सुक हो उठे , उन्होंने हठ करदी. “उगना”से पूछा.. कि उसने जल कहां से लाया?उगना पल-पलबातें बनाने लगा लेकिन भक्त विद्यापति के आगे उसकी एक न चली. अब भक्त का हाथ उपर थाऔर भगवान शिव भी साध्य के आगे वाध्य थे. भगवान शिव का सौम्य स्नेह व प्राकट्य देख अनन्य भक्त विद्यापति को काठ मार गया .वे मन से ग्लानि के अथाह सागर में डूब गए कि इतने दिनों तक वे साक्षात अपने आराध्य शिव से सेवा कराते रहे लेकिन भगवान ने तत्काल भक्त से एक मार्मिकता युक्त वचन ले लिया.. इस रहस्यमय घटना की जानकारी जिसदिन खुल जायेगी,उस समय के बाद वे उनके पास से विलोपित हो जायेंगे .शर्त यह भी रखी कि वे “उगना”से पूर्ववत सेवा लेते रहेंगे.
इस बीच समय बीतने लगा.कवि विद्यापति भी साधारण प्राणी के घर शिव की भक्ति का अनूठा सा अनुराग देख अतृप्त रिक्तता का एहसास करते हुए उनसे पूजन सामग्री का लघु कार्य प्रस्तावित किया. अब भक्त और भगवान शिव के विरह-वेदना का क्षण आ रहा था. एक दिन भगवान की कथा निमित्त यथासामाग्री लाने हेतु “उगना”से भक्त विद्यापति ने कहा. उगना देर से घर लौटा तो कवि की पत्नी ने जलते हुए लुकाठी से सेवक को मारना चाहा.भक्त से यह देखा न गया .वे तत्काल स्नेह वश बोल पड़े”हां..हांं..साक्षात शिव शिव पर प्रहार.”
वचनबद्धता के अनसार भगवान शंकर रहस्य खुलते ही तत्काल विलुप्त हो गये.उनके मुख से केवल इतना निकला…
उगना रे मोर कतय गेलाह ..कतय गेला शिव किदहुं भेलाह.. उगना रे । अब खुद को बेजान, बेसहारा और विक्षिप्त की स्थिति में कवि ने इस नश्वर शरीर को त्यागने की सोची और मिथिला के बिस्फी जन्म स्थली से चमथा घाट के समीप तक आते-आते थके हारे कवि ने मां गंगे से गुहार लगायी कि
बर सुख सार पावल तुअ तीरे , छोड इत नयन,निकट बह नीरे ।
हे! अब मै चल नहीं सकता ,तुम हमें शरण में ले लो …कहा जाता है कि मां गंगे ने अपनी धारा मोड़
कर महाकवि विद्यापति को सदा के लिए अपनी धारा में विलीन कर लिया .उक्त स्थान का नाम
कालांतर में”विद्यापति नगर” हो गया जो आज भी वैशाली पूर्वी सीमा तथा समस्तीपुर पश्चिमी सीमा रेखा के समीप है .कहना तर्क संगत है कि भगवन को चिंता रहती है, भक्तों के कल्याण की,
यह कथावस्तु भगवान की ।