Lord Shri Ram : अपने पूर्वजों का पिंडदान करने में कोताही नहीं बरतनी चाहिए। हर वर्ष यह पुनीत अवसर संततियों के लिये सौभाग्य का द्वार खोलता है।तभी तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम (Lord Shri Ram) ने भी नेम, नियम और निष्ठा से अपने गोलोकधाम गये पितरों को आंतरिक तड़प से तर्पण तथा श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध-पिंडदान कर पितृऋण से निवृत होने का सरल माध्यम मानव मात्र को दिया। आधुनिक समय में भी इसकी महत्ता को समझने वाले लोगों की कमी नहीं है.स्वांतःसुखाय की इस परीधि के तहत मातृ व पितृ कुल दोनों आते हैं ।
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बिहार की वर्तमान राजधानी पटना से महज 13 किमी दक्षिण हो कर पुनपुन नदी बहती है।इस नदी के तट पर भगवान श्रीराम ने अपने पूर्वजों का पिड़दान किया था। पुराण में वर्नित इस तथ्य का पूरे सनातन संस्कृति पर प्रभाव देखा जा सकता है। पटना -गया रेलखंड पर पुनपुन स्टेशन है। वहां से पल भर में नदी तट पर पहुंचा जा सकता है। जनश्रुतियों के अनुसार यहां पर
तपस्वी ऋषियों ने ब्रह्माजी का घोर तपस्या किया। तब ब्रह्मा जी ने प्रसन्न हो कर दर्शन दिया ऋषियों ने उनके पांव पखारने की सोची पर वहां जल नहीं मिला।अंततः एक कमंडल में ऋषियों ने खुद का पसीना एकत्र किया। कमंडल बारंबार उलट जाया करता, जिससे उसमें रखा जल गिर जाता।इस स्थिति को देख परमपिता ब्रह्मा जी ने “पुनश्च-पुनश्च कहा और पुनपुन नदी का प्रादुर्भाव हो गया।आज भी यहां पिंडदान का प्रथम अर्ध्य अर्पित कर सौभाग्यवंत हुआ जाता है।
शंभूदेव झा .