Mahakal Ki Palki : शिव यदि खुद भी सावन से नाता तोड़ना चाहें तो उनके भक्त उन्हें ऐसा करने नहीं देंगे। कारण साफ है।वर्ष भर इंतजार के बाद सावन आता है और सभी शिव भक्त एक समर्पित शिष्य की तरह अपने को ऊं नमः शिवाय के बीच पाता है। भारत के विभिन्न शिवालयों में तो गूंजता ही है शिव नाम केवलम व बोलबम का नारा, लेकिन सावन के हर सोमवार को महाकाल की नगरी उज्जैन में बड़े ही मिजाज से वैभवशाली परंपरा का निर्वाह कर सभी की गरिमामयी हाजिरी व उपस्थिति के बीच महाकाल की पालकी निकाली जाती है।
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शासन की ओर से तोपची तो रहते ही हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से भी जवानों के साथ ओहदेदार हाकिम महाराज दिक्पाल की सलामी गारद की शोभा बढ़ा कर अपने भाग्य पर इतराते नहीं अघाते। यही नहीं, ऐसी धारणा है कि नगर परिभ्रमण पर भक्तवत्सल अपनी प्रजा संतति से साक्षात होते हैं। अतः उज्जैन नगर के वाल,युवा, नर-नारी, वृद्ध सभी हाथों में नव झारन ले,बाबा के आगमन पथ को परिमार्जित करते हुए अहोभाग्य समझते हैं।
Mahakal Ki Palki : मंदिर के मुख्य द्वार से निकलने के बाद बाबा बड़े गणपति, हरसिद्धि, नरसिंह घाट,सिद्धाश्रम मार्ग से हो कर क्षिप्रा नदी तट पर अवस्थित रामघाट महाकाल की पालकी को लायी जाती है।उसके बाद वहां कलकल निर्मल नदी मां क्षिप्रा के पवित्र जल से बाबा का अभिषेक किया जाता है फिर विधि विधान से पूजनोपरांत उसी मार्ग से पुनः वापस मंदिर में विराजमान कर दिये जाते हैं।यहां आकार ही सभी भक्त अपने घर जाते हैं।यानि महाकाल के विश्राम के उपरांत ही उज्जैनवासी यथास्थान गमन करते हैं।
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उज्जैन नगर की सजावट पूरे सावन भर मनहर सा हो जाता। रंगीन पताका, भव्य तोरणद्वार, मेहराब, मोहक भजन-संकीर्तन तथा भक्ति की सरस धारा में समाजवाद के नाव पर सभी विराजमान होते हुए एक ही संदेश मुखरित करते हैं कि “जो सेवक हो महाकाल का, उसे भय नहीं है काल का ।
वास्तव में उज्जैन नगर का शिव सरोकार अनोखा, अद्भुत और अलौकिक है। माता-बाबा के इस
अलौकिक दर्शन सुख के लिए उज्जैन नगर समेत दूरदराज के भक्तों की दिव्य आस्था को केवल रेखांकित किया जा सकता है। अचंभित परिदृश्य, मनोहारी छवि के बीच बाबा की पालकी और इन
सभी नयनाभिराम दृष्य के मध्य शासन-प्रशासन का पारंपरिक उद्गार उपर से सावन की रिमझिम फुहार को भला कैसे भूल सकते हैं महाकाल और उन्हें कैसे भूलने देगा भक्तों का जयघोष ।