महाकाल
धर्म-ज्योतिष

हर सोमवारी उज्जैन में निकलती है महाकाल की भव्य सवारी

दक्षिणमुखी तांत्रिक सिद्धि स्थल के रूप में सर्वविज्ञ बाबा महाकाल की उपयोगिता इस पृथ्वी को गति प्रदान के लिए कितना जरूरी है, इसका सहसा अंदाजा लगाना कठिन है , लेकिन यह तो स्वीकार्य है कि भारत के मध्य क्षेत्र में जिस अतिप्राचीन मंदिर का जिक्र आज भी जेहन को कुरेदता है वह कर्क रेखा पर स्थित महाकालेश्वर का मर्ममंदिर ही है.
तीन मंजिले भवन की भव्यता में पहले तल पर ओंकारेश्वर और दूसरे तल पर नागचंद्रेश्वर की अलौकिक प्रतिमा विराजित है। इनका दर्शन केवल नाग पंचमी पर होता है। जबकि गर्भ गृह में भक्तों का अनुराग और महकाल का दिव्य दर्शन मानव को सुखी करता हुआ आदिकाल से नैसर्गिकता के साथ मनोवांछित फलग्रही बनाया है।

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ब्रह्मांड में महाकाल का यही एक ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जहां ताजी चिताभस्मी से ब्रह्ममुहूर्त मे आरती की परंपरा है। मनभावन सावन माह के अलावा महाशिवरात्रि के अवसर पर भक्तों के द्वारा नयनाभिराम दृष्य के साथ
बाबा की सवारी निकाली जाती है। श्रावण मास के सभी सोमवारी को महाकालेश्वर की सवारी मंदिर से निकाली जाती है, जो शिप्रा नदी
के तट का स्नेह स्पर्श माना जाता है। महाकाल की इस नगर भ्रमण परिक्रमा में योगदान के लिए भक्तों की अकुलाहट शब्दों में बयां करना संभव नहीं।
गगनभेदी जयघोषों व श्लोक की उष्मा को महाकाल भी महसूस करते हुए बिहुंस पड़ते हैं। यही नहीं, आप खुद को इससे वंचित भी नहीं कर पायेंगे। यह जाति, वर्ग, वर्ण से परे अमीर और गरीब सभी के लिए हैं।

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उज्जैन वाले बाबा महकालऔर नगर भ्रमण के इस दिव्य समारोह को सबों की उपस्थिति जीवन का अनमोल सुख दे जाता है। बाबा महाकाल का दर्शन हरहाल में समरथ प्रदान करता है, तो
सभी मिलकर महाराजाधिराज महाकालेश्वर बाबा की जयकारा के वशीभूत हो जाते हैं ।
शंभुदेव झा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )