मंत्ररहस्य : मंत्रों का एक एक अलग विज्ञान है। इसका अपना अलग शास्त्र और व्याकरण है।  इन्हीं व्यकरण के अनुसार लिंगों के आधार पर मंत्रों के त...
धर्म-ज्योतिष

मंत्ररहस्य : जानें मंत्रों के व्याकरण को और कैसे काम करता है मंत्र

मंत्ररहस्य : मंत्रों का एक एक अलग विज्ञान है। इसका अपना अलग शास्त्र और व्याकरण है।  इन्हीं व्यकरण के अनुसार लिंगों के आधार पर मंत्रों के तीन भेद बताए गए हैं।पहला है पुलिंग-जिन मंत्रों के अंत में हूं या फट लगा होता है।वह पुलिंग मंत्र माना गया है। दूसरा है स्त्रीलिंग- जिन मंत्रों के अंत में ‘स्वाहा’ का प्रयोग होता है, उसे स्त्रीलिंग माना गया है।इसी तरह तीसरा भेद है नपुंसक लिंग-जिन मंत्रों के अंत में नमः प्रयुक्त होता है, वह है नपुंसक लिंग।

अतः आवश्यकतानुसार मंत्रों को चुनकर उनमें स्थित अक्षुण्ण ऊर्जा की तीव्र विस्फोटक एवं प्रभावकारी शक्ति को प्राप्त किया जा सकता है।मंत्र, साधक व ईश्वर को मिलाने में मध्यस्थ का कार्य करता है। मंत्र की साधना करने से पूर्व मंत्र पर पूर्ण श्रद्धा, भाव, विश्वास होना आवश्यक हैl

 मंत्र का सही उच्चारण अति आवश्यक है। मंत्र लय,नादयोग के अंतर्गत आता है, मंत्रों के प्रयोग से आर्थिक, सामाजिक, दैहिक,  दैनिक, भौतिक तापों से उत्पन्न व्याधियों से छुटकारा मिलती है। माना जाता है कि रोगनिवारण में मंत्रों का प्रयोग रामबाण औषधि का कार्य करता है। मानव शरीर में 108 जैविकीय केंद्र (साइकिक सेंटर) होते हैं जिसके कारण मस्तिष्क से 108 तरंग दैर्ध्य (वेवलेंथ) उत्सर्जित होता है।इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने मंत्रों की साधना के लिए 108 मनकों की माला तथा मंत्रों के जाप की संख्या निश्चित की हैl

मंत्ररहस्य :  बीज मंत्र उच्चारण की 125 विधियाँ हैं। मंत्रोच्चारण से या जाप करने से शरीर के 6 प्रमुख जैविकीय ऊर्जा केंद्रों से 6250 की संख्या में विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा तरंगें उत्सर्जित होती हैं, जो इस प्रकार हैं।मूलाधार4×125=500, स्वधिष्ठान6×125=750, मनिपुरं10×125=1250, सहृदयचक्र-13×125=1500,विध्रहिचक्र-16×125=2000और आज्ञाचक्र 2x 125 =250, इस प्रकार कुल योग 6250 (विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा तरंगों की संख्या)।

 भारतीय कुंडलिनी विज्ञान के अनुसार मानव के स्थूल शरीर के साथ-साथ 6 अन्य सूक्ष्म शरीर भी होते हैं। विशेष पद्धति से सूक्ष्म शरीर के फोटोग्राफ लेने से वर्तमान तथा भविष्य में होने वाली बीमारियों या रोग के बारे में पता लगाया जा सकता है। सूक्ष्म शरीर के ज्ञान के बारे में जानकारी न होने पर मंत्र शास्त्र को जानना अत्यंत कठिन होगा।

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 मानव शरीर से 64 तरह की सूक्ष्म ऊर्जा तरंगें उत्सर्जित होती हैं, जिन्हें ‘धी’ ऊर्जा कहते हैं। जब धी का क्षरण होता है तो शरीर में व्याधि एकत्र हो जाती है। मंत्रों का प्रयोग ज्योतिषीय संदर्भ में अशुभ ग्रहों द्वारा उत्पन्न अशुभ फलों के निवारण के लिए किया जाता जाता है।

ज्योतिष वेदों का अंग माना गया है। इसे वेदों का नेत्र कहा गया है। भूत ग्रहों से उत्पन्न अशुभ फलों के शमनार्थ वेदमंत्रों, स्तोत्रों का प्रयोग बहुत ही प्रभावशाली माना गया हैl उदाहरणार्थ आदित्य हृदयस्तोत्र सूर्य के लिए, दुर्गास्तोत्र चंद्रमा के लिए, रामायण पाठ गुरु के लिए, ग्राम देवता स्तोत्र राहु के लिए, विष्णु सहस्रनाम, गायत्री मंत्रजाप, महामृत्युंजय जाप, क्रमशः बुध, शनि एवं केतु के लिए, लक्ष्मीस्तोत्र शुक्र के लिए और मंगलस्रोत मंगल के लिए सर्लाधिक उपयुक्त माना गया है। मंत्रों का चयन प्राचीन ऐतिहासिक ग्रंथों से किया गया है।

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 वैज्ञानिक रूप से यह प्रमाणित हो चुका है, कि ध्वनि उत्पन्न करने में नाड़ी संस्थान की 72 नसें आवश्यक रूप से क्रियाशील रहती हैं। अतः मंत्रों के उच्चारण से सभी नाड़ी संस्थान क्रियाशील हो जाती हैं।

परा भौतिकी के विशेषज्ञ
पुनीत आलोक छवि (लेखक वरीय परा भौतिकी विषेशज्ञ हैं)

Xpose Now Desk
मुकेश महान-Msc botany, Diploma in Dramatics with Gold Medal,1987 से पत्रकारिता। DD-2 , हमार टीवी,साधना न्यूज बिहार-झारखंड के लिए प्रोग्राम डाइरेक्टर,ETV बिहार के कार्यक्रम सुनो पाटलिपुत्र कैसे बदले बिहार के लिए स्क्रिपट हेड,देशलाइव चैनल के लिए प्रोगामिंग हेड, सहित कई पत्र-पत्रिकाओं और चैनलों में विभिन्न पदों पर कार्य का अनुभव। कई डॉक्यूमेंट्री के निर्माण, निर्देशन और लेखन का अनुभव। विविध विषयों पर सैकड़ों लेख /आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। कला और पत्रकारिता के क्षेत्र में कई सम्मान से सम्मानित। संपर्क-9097342912.