MATA SITA : सीता का श्राप है कि फलगूनदी हमेशा अतृप्त ही रहेगी, ब्राह्मण हमेशा असंतुष्ट, गाय का मुख अपवित्र, वृक्ष को वर्ष में पतझड़ तथा पहाड़ हमेशा ओज विहीन ही रहेगा। और ऐसा इसलिए हुआ कि इन पाँचों ने सीता (MATA SITA) द्वारा दशरथ जी के सदेह पिंडदान को झुठलाया और शापित जीवन जीने को बाध्य हुए। जीवन-मृत्यु का चक्र हमेशा से जीवधारियों के लिए जिज्ञासा का विषय रहा। जानने की लालसा के मध्य साधु-संतों की रहस्यमयी पराविज्ञान में समय समय पर नव आधुनिकवाद का भी हमला होता रहा लेकिन जीवन-मृत्यु के भेद से
आज भी दुनिया अपरिचित ही है।
भारतीय सूक्ष्म परालौकिक संतों ने कभी गरूड़ पुराण तो कभी गीता का उपदेश दे कर परंब्रह्म में
शून्य की तलाश आरंभ की तो उन्हें सहसा ईश्वरीय शक्ति का सूत्र मिल गया और वहीं से जन्मों का रहस्य खुलने लगा।तभी तो जीवन से मुक्ति के आधार धुरी पर “हम भी तुम भी, कई बार धरा पर आये, तुम प्राणी हो इसलिए जान ना पाये”, यानि जन्मों का भेद और भेद से मतभेद तक जीवन-मरण का यह चक्र चलता ही रहा।सनातन धर्म से सरोकार रखने वाले लोगों ने तर्पण विधा से तृप्ति का मार्गी बन पूर्वजों को खुद के साथ जोड़ दिया तथा बंधन मुक्त कल्पना के साथ श्रद्धा पूर्वक गया को मोक्ष धाम बनाया तथा साक्षात कर्मकांड कराने वाले ब्राह्मण पंडा को
ब्रह्म कल्पित पंडा की संज्ञा से विभूषित किया। जो आज भी कर्मकांड में पारंगत हैं।इनका इतिहास लगभग पांच हजार वर्ष पुराना है सीता कुंड के बारे में जनश्रुति है कि इन्होंने अपने स्वसुर दशरथजी को सशरीर यहीं पिंड दान दिया था।
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जनश्रुति है कि पिंड तथा तर्पण सामाग्री व्यवस्था में राम लगे थे इसी बीच दशरथ जी सशरीर अपनी पुत्रवधु सीता से पिंडदान करने को कहा। व्याकुलता के बीच घबराहट के साथ उन्होंने अपने
पितर को गयाधाम में फलगू नदी, वृक्ष, ब्राह्मण, गाय, पहाड़ को साक्षी मान कर पिंडदान दिया।
पितर तो संतुष्ट हो कर चले गए लेकिन पिड़ सामाग्री लेकर लौटे भगवान राम इस कथा से असंतुष्ट हो गये। तत्काल सीता ने आपबीती सुनाई तो राम ने पितर के सदेह पिडदान का प्रमाण मांगा। देवी सीता ने इस पांच प्रमाणों को उपस्थित कर घटनाक्रम बताने को कहा लेकिन वे सभी चुप लगा गये।राम को सीता जी की बात में शंका होते देख देवी सीता ने उक्त पांचों साक्ष्य को शापित कर दिया। फलगूनदी अतृप्त, ब्राह्मण असंतुष्ट, गाय का मुख अपवित्र, वृक्ष को वर्ष में पतझड़ तथा पहाड़ ओज विहीन शाप से आज भी मुक्त नहीं हो सका है ।
प्रेत शिला समेत अन्य प्रमाण पिंड दान के निमित्त आज भी गया धाम में यथावत हैं व परंपरागत तरीके से आज भी लोग अपने पितरों के निमित्त निर्धारित वेदियों पर पिंडदान कर स्नेह से देवस्वरूप पितर-पितराइन की क्षुधा तृप्ति के रुप में तर्पण कर ऋण से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया करते हैं।
शंभु देव झा