शिव दरबार ऐसा जहां से कोई ख़ाली हाथ नहीं लौटता ख़ास कर वो जो नंदी को अपना पैरोकार बना लेते हैं । सभी जानते हैं कि दानी भोलेनाथ को केवल भाव से ही अपना बनाया जा सकता है।
भक्तों का भी कुछ ऐसा हाई मानना है। इसीलिए शिव को जल्द ही भक्तों पर रीझने वाले देव भी कहा गया है।
शिव दरबार में गणों की बहुतायत है। लेकिन शिव के दैनिक सानिध्यमें रहने का सौभाग्य मिला केवल नंदी को ही। नंदी-भृंगी के रूप में नमन सभी
करते हैं। कहते हैं कि शिव
अपने प्रिय पात्र को सदैव अपने
सानिध्य में रखते हैं। श्लोक में
“नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय” का
सीधा संबंध देवाधिदेव महादेव के
स्नेह पात्र होने से है।
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आध्यात्मिक विश्लेषकों ने तो यहां तक कहा है कि शिव आराधना से पहले, उनके सेवक रूपी नंदी की, सेवा से शिव प्रसन्न हो जाते हैं।
कहा जाता है कि “नंदी बैल के कानों में स्नेह से किया गया पुकार” ही भगवान शिव को अति आकर्षित करता है। मान्यतानुसार गृहस्थ आश्रम में
शिव-शक्ति का अर्धनारीश्वर रूप ही सुखी जीवन का मूलाधार है। तभी तो सावन की सोमवारी को
विषेश रूप से “ऊं महाशिवाय वरदाय हीं ऐं काम्य सिद्धि रूद्राय नमः” मंत्र का रूद्राक्ष माला का 11 बार जाप फलदायी माना जाता है।
खास बात यह है कि सोमवार को
नंदी पूजन विधि विधान के साथ
करने की बात कही गई है।इसमें
हरे चारे, गुड़, अक्षत तथा अन्य फल का प्रयोग सार्थक माना गया है।गणों के देवता महादेव साक्षात
प्रकृति स्वरूप हैं और भाव से किया गया ऊंकार जाप का महत्व
आज विश्व पंचायत भी स्वीकार कर चुका है।
शिव का सानिध्य प्राप्त नंदी की मूर्ति शिव के समक्ष पहरेदार के रूप में भी प्रचलित है।वास्तव में जहां शिव वहां नंदी विराजित हैं। भक्तों का यह भी मानना है कि नंदी के कानों तक यदि किसी की कारुणिक पुकार पहुंच जाय तो उसका बेड़ा पार हो जाता है। सच तो यह है कि आज भी भगवान शंकर के दरबार की कल्पना, नंदी के बिना
अकल्पनीय है।यह सही है कि शिव के दरबार का,नंदी पैरोकार हैं।
शंभुदेव झा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)