गया, अनमोल कुमार। हिंदू धर्म की अगाध आस्था का प्रतीक है पितृपक्ष विशेष मेला। इसमें देश के कोने कोने से श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने भारी मात्रा में गया आते रहे हैं। जिसके कारण पंडा समाज और कारोबारियों को अच्छा मुनाफा होता रहा है। माना तो ये जाता है कि पितृपक्ष के मात्र 15 दिनों की कमाई से ही इनका सालोंभर का भोजन पानी चलता रहा है। लेकिन कोरोना संकट के कारण विगत वर्ष पितृपक्ष मेले का आयोजन नहीं हो पाया था। इस वर्ष भी जिला प्रशासन द्वारा चुप्पी साधे जाने के कारण पंडा समाज और व्यापारियों में दहशत व्याप्त है। 17 दिनों के इस मेले में अनुमानित 100 करोड़ से अधिक का कारोबार होता हैl इस मेले में विदेश से भी तीर्थयात्री आते रहे हैंl
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पितृपक्ष विशेष मेला लगने का इंतजार गया, पाल पुरोहित, होटल व्यवसायी, बर्तन व्यवसायी, कपड़ा व्यवसायी, ऑटो और रिक्शा चालकों सहित बस चालक आदि इंतजार करते रहते हैं। जिससे उनकी बड़ी कमाई होती है। मेला में आए तीर्थयात्रियों का भी कारोबार से सीधा ताल्लुक रहता है। यातायात में रेल, बस और ऑटो, कार का महत्वपूर्ण स्थान है।
किसी जमाने में 365 पिंड पर हुआ करता था। कर्मकांड जो अब लुप्त हो चुका है। उसमें से मात्र 55 से 60 पिंड बेदी बची हुई है, जहां लोग अपने पितरों के मोक्ष के लिए पिंडदान करते हैं। मेले को लेकर लोगों में अभी भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। क्योंकि पितृपक्ष मेले के आयोजन को लेकर अभी जिला प्रशासन की बैठक नहीं हुई है, जबकि पितृपक्ष शुरू होने में अब कुछ ही दिन शेष रह गए हैंl