राम और शिव का संबंध है अनोखा। राम की भक्ति सनातन संस्कृति का वह दिव्य अध्याय है, जिसमें गज व गणिका दोनों रसास्वादन करते हैं, लेकिन आस्था के माध्यम से विश्लेषण करने वालों का रूप व स्वरूप भिन्न है। राम जपें शिव का नाम,शिव जपें राम-राम और शिव की शक्ति पार्वती हैं।विश्लेषण के दौरान आस्थावानों ने यह भी कहा कि क्षुधा की तृप्ति के लिए शिव ने ध्यान मग्न पार्वती से भोजन मांगा। विष्णु सहस्रनाम जाप में लीन पार्वती ने पाठ पूरा होने तक इंतजार करने को कहा। सनातन संस्कृति में विष्णु सहस्रनाम जाप का काफी महात्मय माना जाता है।
शिव ने ममत्व भाव से कहा कि हे देवी! समय व श्रम बचाते हुए राम नाम केवलम् से विष्णुसहस्त्र नाम का फल आपको प्राप्त हो सकता है। देवी पार्वती का तर्क भी बेहतरीन था। “केनोपायेन लघुना विष्णोर्नाम सहस्त्रकं? पठ्यते पण्डितैर्नित्म् श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो!
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तब पार्वती को समझाते हुए शिव ने कहा- श्रीरामराम रामेति,रमे राम मनोरमे, सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने। अमोघास्त्र के रूप में रामनाम का जयघोष सभी बाधाओं,विपत्तियों का हरण कर शांति देगा। अतः मैं उस नाम को नमन करता हूं।आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदांलोकाभिरामं श्रीरामं भूपो भूपो नमयहं. इसप्रकार से देवी पार्वती ने शिव के मुख से राम महिमा का अमृत बखान ग्रहण किया।
भारतवशियों ने हमेशा से किसी को विदा करते समय “रामराम” कह कर मंगलयात्रा की कामना की है। राम यथार्थ हैं, व राम सबों के कल्याणार्थ हैं, भटकाव के सूक्ष्म ठहराव का दिग्दर्शन राम नाम में है तो वहीं कल्पना के राम का साक्षी राम हैं। सनातन धर्म व संस्कृति में जीवन के अंतिम क्षणमें राम नाम सर्व प्रिय हैं। किसी पार्थिव शरीर की अंत्येष्टि का वह काल रामनाम से ही परिमार्जित है, अतः श्मशान की भस्मी से शिव का श्रृंगार किया जाता है। देवी पार्वती जी ने भी शिव की कृपा से रामनाम का जयघोष लोकहित में सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना।