कहानी Acharya Kanad की :
त्याग व वैराग्य के मार्ग पर चल कर कण-कण में भगवान की बात तो आपने सुनी होगी लेकिन भारत के दिव्य अतीत में ऐसे उद्भट मुनि श्रेष्ठ आचार्य भी रहे, जिन्हें अन्न के बिखरा हुआ दाना भी अमृत समान लगा और वे कणों पर आश्रित रहने वाले आचार्य कणाद ऋषिकुल को एक अलग तरह का गौरव दे गए।
आचार्य कणाद (Acharya Kanad) उन भारतीय नक्षत्रों में से एक हैं, जिन्होंने अपने अनासक्त जीवन द्वारा इस ब्रह्मांड को अपने प्रयोग के आधार पर परमाणु की अवधारणा दी। कणाद उन गिने चुने महर्षियों में आते हैं जो विश्व कल्याण के लिए भी काम किया। दुनिया भर के लोलुप इतिहासकारों ने अणु वैज्ञानिक के रुप में जॉन डाल्टन को स्थापित किया, लेकिन सत्य तो यह है कि जॉन से हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने द्रव्य के परमाणु रहस्य को साबित कर दिया था। आचार्य के सिद्धांत के मुताबिक सभी द्रव्य का परमाणु होता है।
ऋषिकुल आचार्य कणाद से ही आज गॉडपार्टिकल की ओजपूर्ण खोज में विश्व पंचायत उलझा हुआ है। हमारे अपने हैं आचार्य कणाद.ऐस उद्भट पूर्वज ने कभी भारत का मान कम नहीं होने दिया। अतीत के समय में ओम से व्योम तक की दूरी निष्ठा के बल पर तय करते रहे और आत्मदर्शी शलाका बन कर, विश्व को प्रथम पुष्प के रूप में सूत्र समर्पित करते रहे। इनका नाम वायु पुराण में भी लिपिवद्ध है। महर्षि होने के साथ ये उच्छवृति तो थे ही, लेकिन ये कण यानि परमाणु ऊर्जा तथ्य के सूक्ष्म साक्षात्कार कर्ता भी रहे।
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संतमत कणाद का अनासक्त भाव ही उनका स्वभाव बन गया, जिस चलते बटोही विन्यास का सन्यास सुख उन्हें भाता रहा। उनका प्रदुर्भाव काल 2600 पूर्व आंका गया है और शैव मतावलंबी ऋषि कणाद को आध्यात्मिक ज्ञान व ऊर्जा भगवान शिव से ही प्राप्त हुई थी। तभी तो उन्होंने एक महान आध्यात्मिक गुरु उल्का के घर जन्म ले कर शैशव काल से ही
चारोधाम यात्रा में अभिरूचि ली। भारतीय सनातनी संस्कृति के वे स्तंभ माने जाते रहे हैं। दैवज्ञ कृपा से ही खगोलीय सूक्ष्म विश्लेषक बन सितारों की रहस्यमय गिनती का आनंद उठाने वाले कणाद ने अपना जीवन ही, इस मिशन को समर्पित कर दिया। तभी तो आगे चलकर आचार्य कणाद ने परमाणु सूक्ष्मता को अविनाशी कहा। उन्हें वैशेषिका विद्यालय दर्शन का मूल संस्थापक मान गया है। वैशेषिक दर्शन नामक अमूल्य निधि आज भी राष्ट्रीय धरोहर की तरह संग्रहणीय है। दिव्य शास्त्र के बल पर वे प्रथम पंक्ति में रहे। उनके निजी शोध से आधुनिक काल भी पूर्ण उपकृत है। गति के महानायक कणाद ऋषि भारतवर्ष के उन आविष्कारकों में हैं जिनके शोध कार्य पर हम आज भी इतराते हैं।