आज के प्रक्षेपास्त्र मिसाइल प्रणाली के जनक ऋषि मुनि विश्वामित्र ही रहे हैं । सनातन संस्कृति,परंपरा, धर्म व विचार-विनिमय के वल पर ही भारतीय संत, ऋषि-मुनि, विचारक, शोधकर्ताओं तथा पुरोधाओं ने भारत को विश्व का सिरमौर बना दिया था। खास बात यह रही कि जब विश्व तंत्र को समझने में लगा था तब हमारे पूर्वज तंत्र साधक बन चुके थे और जब विश्व सिद्धांत के गूढ़ रहस्यों को समझने की कोशिशों में उलझा हुआ था उस समय तक भारतीय मनीषियों द्वारा कई संहिताओं का प्रयोगवादी सिद्धांत मानव कल्याण के लिए समर्पित किया जा चुका थे।शल्य चिकित्सा, नक्षत्र शास्त्र, भूमि शास्त्र, ज्योतिष, अंतरिक्ष विज्ञान समेत पारलौकिक रहस्यों पर मानवीय चिंतन को भ्रम की स्थिति से निकालने में भारतीय मनीषियों को सफलता मिल चुकि थी। आज हम ऐसे ही एक ऋषि मुनि विश्वामित्र पर संक्षिप्त चर्चा करेंगे।
वर्तमान समय में बहुप्रचारित युद्ध की जीत-हार उसकी शैली पर निर्भर मानी जाती है।ठीक उसी प्रकार अतीत के काल खंड में भी सटीक युद्ध कौशल के साथ जब रणनीति तैयार की जाती थी तो उसी रणकौशल के संचालन कर्ता श्रेष्ठ योद्धा के रूप में पूजे जाते थे। आज हम विश्वमित्र गुरू के मुनी बनने तथा उनके कौशल पर प्रकाश डालेंगे।
कहा जाता है कि ऋषि कुल की शोभा बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय वंशज थे। एक घटनाक्रम के बाद वे तपस्वी हो गये। ऋषि प्रसाद वशिष्ठ से कामधेनु गाय हासिल करने के दौरान विश्वामित्र पराजय स्वीकार करते हुए तपस्वी बनना उचित समझा और फिर उसी क्षण से उन्हें ऋषि कुल में समाहित कर लिया गया और फिर वो ब्रह्मर्षि बन गए। शिव शंकर के प्रभावी तप के चलते उन्हें अस्त्र विद्या मिली। यानि प्रक्षेपास्त्र मिसाइल प्रणाली का जनक विश्वामित्र ही रहे हैं। आज की परिष्कृत मिसाइल तकनीक उनके ही सिद्धांत पर आधारित माना जाता है।
भारती के संतानों में कई ऐसे नाम हुए हैं, जिन्हें शस्त्र व शास्त्र का सृजनात्मक मनीषी माना जाता है। एक ओर मिसाइल प्रणाली तो वहीं दूसरी ओर उन्हें ब्रह्मा गायत्री मंत्र का दृष्टा भी कहा जाता है। यह बात तो सर्वाधिक महत्वपूर्ण और मान्य तथ्य हैं कि प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, उपासना, कर्म तथा मर्यादित रुप के बल पर वेदों में छिपे गूढ़ ज्ञान से भारतीय सनातन संस्कृति का परचम विश्व में लहराया। तात्पर्य यह है कि प्रकृति से जुडे कई रहस्य भी सुलझाये गये तो उसी विलक्षणता के मार्ग पर आज विश्व चल रहा है। विश्वामित्र मुनि भी उन्हीं में से एक हैं।
विश्वामित्र के नाम कई ऐसी महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हैं तो वहीं उनका अप्सरा मेनका की स्नेह-पाश में बंध जाना भी युगों तक याद रखा जायेगा। निज तपोबल के वल पर त्रिशंकु का सशरीर स्वर्गारोहण उपाख्यान विस्मृत होने वाला नहीं है। लोभ, मोह का त्याग ने आज इन्हें विश्व मित्र बना दिया। प्रकृति के कई रहस्यों से पर्दा उठा कर ऋषि विश्वमित्र, क्षितिज पर आज भी ध्रुव तारे के समान दैदीप्यमान हैं। प्रचलित प्रक्षेपास्त्र के प्रक्षेपण में आज भी भारत अग्रणी भूमिका निभा कर अपने पूर्वजों की थाति को आगे बढ़ा रहा है।
शंभु देव झा (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)