युगों युगों से मनोकामनाएं पुरी कर रहा है बैकठपुर मंदिर । बिहार की राजधानी पटना से लगभग 35 किलोमीटर दूर खुसरूपुर प्रखंड स्थित बैकटपुर गांव में अवस्थित है महादेव का एक मंदिर। यह मंदिर कभी बैकुंठधाम के नाम से जाना जाता था और आज यह बैकठपुर मंदिर के नाम से जग प्रसिद्ध है। मंदिर का अपना एक अलग इतिहास है। इसके पौराणिक महत्व भी हैं। आज का यह बैकठपुर मंदिर रामायण और महाभारत काल में भी अपनी महत्ता बनाए हुए था। इस प्राचीन मंदिर की एक अलग विशेषता है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां शिवलिंग रूप में भगवान शिव के साथ माता पार्वती भी विराजमान हैं, इतना ही नहीं एक वृहद शिवलिंग पर 108 छोटे-छोटे शिवलिंग भी बने हुए हैं। इन छोटे शिवलिंगों को रूद्र कहा जाता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है कि यह भगवान शिव और पार्वती एक साथ एक ही शिव रूप में विराजमान हैं।दावा है कि दुनिया भर में यह अकेला ऐसा शिवलिंग है। बैकटपुर जैसा शिवलिंग पूरी दुनिया में और कहीं नही है जहां शिव और शक्ति एक साथ ऐसे स्थापित हैं।
कहते हैं कि रावणबध के बाद भगवान श्री रामचंद्र भी ब्राह्मण हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए यहां आए थे। तब इसके आस पास का इलाका बैकुंठवन के नाम से जाना जाता था और यह गांव बैकुंठपुर था। आनंद रामायण में इस गांव की चर्चा बैकुंठपुर के रूप में हुई है। प्रचलित कथा के अनुसार भगवान राम को सुबह मंदिर पहुंचने के लिए आस पास रात्रि विश्राम करना था, इसके लिए उन्होंने तब गंगा पार इलाके में एक जगह विश्राम किया था। तब से उस समय के लोग उस इलाके को राघवपुर कहने लगे थे, जो बाद में अपभ्रंशित होकर धीरे धीरे राघोपुर हो गया जो आज भी हाजीपुर के राघोपुर के नाम से जाना जाता है।
बैकठपुर मंदिर जहां ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होने के लिए भगवान श्रीरामचंद्र भी आए थे। स्थानीय मान्यताओं के के अनुसार महाभारत काल के महाप्रतापी योद्धा जरालंध का जन्म भी इसी स्थान के प्रसाद के कारण हुआ था।जरासंध प्रतिदिन यहां पूजा करने आता था। अकबर का सेनापति राजा मान सिंह ने इस मंदिर का जिर्णोद्धार कराया था। चीनी यात्री फायहान ने भी इस मंदिर की चर्चा अपने यात्रा वृतांत में किया है।
मंदिर का इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत काल में जरासंध भी यहां भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना करने आते थे। दंतकथा के अनुसार मगध क्षेत्र के राजा जरासंध के पिता बृहद्रथ भगवान भोलेनाथ का भक्त था। प्रतिदिन वह गंगा किनारे आते थे और भगवान भोलेनाथ की पूजा करते थे। इसी जगह पर एक ऋषिमुनि ने राजा बृहद्रथ को संतान उत्पत्ति के लिए एक फल दिया था।
राजा बृहद्रथ को दो रानियां थी, इसलिए राजा बृहद्रथ ने फल के दो टुकड़े कर अपनी दोनों पत्नियों को खिला दिया था। फलस्वरूप दोनों रानियों के एक पुत्र के अलग-अलग टुकड़े हुए थे, जिसे जंगल में छोड़ दिया गया था। बाद में जंगल में ही उसे जोड़ा नाम की राक्षसी ने जोड़ दिया। यही बालक बाद में महा बलशाली जरासंध के नाम से जाना गया।
जरासंध भगवान शंकर का बहुत बड़ा भक्त था। जरासंध रोज इस मंदिर में राजगृह से आकर पूजा करता था। जरासंध हमेशा अपनी बांह पर एक शिवलिंग की आकृति का ताबीज पहने रहता था। जरासंध को भगवान शंकर का वरदान था कि जब तक उसके बांह पर शिवलिंग रहेगा तब तक उसे कोई हरा नहीं सकता है। जरासंध को पराजित करने के लिए श्रीकृष्ण ने छल से जरासंध की बांह पर बंधे शिवलिंग को गंगा में प्रवाहित करा दिया था और तब वह मारा गया था।
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इस अद्वितिय मंदिर की एक चमत्कारी कथा मुगलकाल से भी जुड़ी हुई है।एक बार अकबर के सेनापति राजा मान सिंह बंगाल विद्रोह को खत्म करने गंगा नदी जलमार्ग से अपने परिवार के साथ रनियासराय जा रहे थे। अचानक राजा मान सिंह की नाव गंगा नदी स्थित कौड़िया खाड़ में फंस गई। काफी प्रयास करने के बाद भी जब राजा मान सिंह की नाव कौड़िया खाड़ से नहीं निकल सकी, तो पूरी रात मानसिंह को सेना सहित वहीं डेरा डालना पड़ा। दंत कथा के अनुसार उस रात राजा मान सिंह को सपने में भगवान शंकर के दर्शन हुए। सपने में भगवान शंकर ने राजा मान सिंह से कहा कि कौड़िया खाड़ के पहले स्थापित जीर्ण-शीर्ण मंदिर को वह पुनः स्थापित करे। मान सिंह ने उसी रात मंदिर के जीर्णोद्धार का आदेश दिया और उसके बाद यात्रा शुरू की। राजा मान सिंह को बंगाल में विजय प्राप्त हुई। अभी भी माना जाता है कि वर्तमान मंदिर में जो शिवलिंग, माता पार्वती के साथ स्थापित है, वह राजा मान सिंह द्वारा ही स्थापित किया हुआ है।
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यह प्राचीन और ऐतिहासिक शिव मंदिर को लोग श्री गौरीशंकर बैकुंठ धाम के नाम से भी जानते हैं। चीनी यात्री फाह्यान ने अपनी यात्रा वृतांत में नालंदा दौरे के दौरान बैकठपुर मंदिर की चर्चा की है।मंदिर में पूजा-पाठ कराने वाले पंडा सुभाष पांडे कहते हैं कि बिहार के बाबाधाम के रूप में माना जाता है श्री गौरीशंकर बैकुंठधाम मंदिर। सावन में उसी तरह यहां भी जल लेकर लोग दूर दूर से आते हैं और बाबा भोलेनाथ पर जल चढ़ाते हैं। सावन माह में यहां जलाभिषेक करने वालों श्रधालुओं की संख्या लाखों में होती है। जलाभिषेक के लिए पटना के कलेक्टेरिएट घाट या फतुहा के त्रिवेणी कटैया घाट से हजारों की संख्या में लोग रविवार को जल उठा कर रात भर की यात्रा कर सोमवार को जल चढाते हैं। श्री गौरीशंकर बैकुंठधाम मंदिर धार्मिक आस्था का केन्द्र सदियों और युगों से रहा।
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यहां के पंडा सुभाष पांडे कहते हैं भक्तों की इस मंदिर पर अगाध श्रद्धा है। इसका कारण भी है कि सच्चे मन से बैकुंठ धाम में भोले शंकर की जो पूजा करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। शिवरात्रि के मौके पर यहां पांच दिनों तक बडा मेला लगता है। यह मेला लुप्त हो रही मेला संस्कृति का अवशेष भर है लेकिन अब भी मेला संस्कृति ऐसे ही खास मेले के कारण जिंदा है। पंडा सुभाष पांडे बताते हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की श्रद्धा भी इस मंदिर से जुड़ी है। पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व वाले इस मंदिर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी आते-रहते हैं। यहां पुरी के शंकराचार्य जगतगुरू निश्चलानद भी 2007 में आ चुके हैं।
जितेन्द्र कुमार सिन्हा (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)