अनमोल कुमार। मध्यप्रदेश स्थित मैहर हिन्दुओं का एक बड़ा तीर्थ स्थल है। यह 51 शक्तिपीठ में से एक है। नवरात्र में मैहर की देवी शारदा भवानी के दर्शन के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। वैसे यहां श्रद्धालुओं की भीड़ सालों भर लगी रहती है।
यहां की मान्यता है कि जो भी यहां आकर कुछ मांगता है वह अवश्य ही पूरी हो जाती है। मतलब साफ है कि यहां अपनी अपनी मुरादें लेकर लोग आते हैं। इस स्थान को मैहर स्थान या मैहर थान भी लोग कहते आ रहे हैं।
देवी शारदा भवानी के इस शक्तिपीठ मंदिर का एक रहस्य भी हमेशा चर्चा रहता है। वह रहस्य है देवी के सामने चढ़ाए गए पहले फूल का। शताब्दियों से आज तक यह ज्ञात नहीं हो सका है कि देवी को पहला फूल कौन चढ़ा जाता है। किसी ने भी उस पहले फूल को चढ़ाते आज तक किसी को नहीं देखा है। इसलिए यह रहस्य रहस्य ही बना हुआ है।
दरअसल प्रतिदिन रात में पुजारी मंदिर का पट बंद करके जाते हैं और जब सुबह मंदिर का ताला खोलते हैं, तो एक ताज़ा फूल देवी की प्रतिमा पर चढ़ा हुआ मिलता है। जबकि रात भर चाभी पुजारी के पास ही रहता है। लोगों को हैरत होती है कि बंद तालों के अंदर कौन आकर देवी मां को फूल चढ़ा जाता है।
इस पहले फूल को लेकर मान्यता है कि सबसे पहला फूल आल्हा-ऊदल ही मैहर के त्रिकूट पर्वत पर विराजमान मां शारदा भवानी को चढ़ाते हैं। कभी उन्हें देवी मां ने ही आशीर्वाद दिया था कि हमेशा उनका प्रथम पूजन वही करेंगे। खास तो यह है कि पूजा से पहले अहले सुबह लोगों को पवित्र सरोवर में किसी के स्नान करने की आवाजें भी सुनाई देती हैं, लेकिन कोई दिखाई नहीं देता। स्थानीय लोगों का मानना है कि कोई अदृश्य रूप में पवित्र सरोवर में स्नान कर देवी को फूल चढ़ा जाता है।
आल्हा ने यहां चढ़ाया था अपना सिर : फूल चढ़ाने वाले का नाम आल्हा माना जाता है। इस मान्यता के पीछे भी एक कहानी है। 12वीं सदी के युग पुरुष आल्हा ने महोबा से यहां आकर 12 वर्ष तक घोर तपस्या की और मां को अपना शीष भेंट किया था। मां ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर अमरत्व का वरदान दिया। साथ ही उसे अपने लिए प्रथम पूजा करने का वरदान दिया। तभी से मान्यता है कि आज भी सबसे पहले आल्हा ही मां की प्रथम पूजा करते हैं। हालांकि, किसी ने भी उन्हें पूजा करते नहीं देखा। मंदिर के प्रधान पुजारी देवी प्रसाद इस बात का दावा करते हैं कि पट खुलने से पहले कई बार प्रतीत हुआ है जैसे किसी ने पूजा की हो।
महान शक्तिपीठ जहां गिरा था मां का कंठ : पुराणों के अनुसार, पिता के यहां अपमान होने पर मां पार्वती ने खुद को हवनकुंड में भस्म कर दिया था। तब भगवान शिव गुस्से में आ गये थे और तांडव शुरू कर दिया था। इस दौरान भगवान विष्णु ने मां के शव को खंडित करने के लिए सुदर्शन-चक्र चलाया था। तब इसी त्रिकुट पर्वत पर मां का कंठ गिरा था। इसी से यहां का नाम मैहर पड़ा। यह एक महत्वपूर्ण शक्तिपीठ माना जाता है।
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सतना जिले की पावन नगरी मैहर में मां शारदा विराजी हैं। वैसे तो मां शारदा के दर्शनों के लिए सालभर देश-विदेश के कोने-कोने से आनेवाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र में इसका अलग ही महत्व है। मान्यता है कि एक बार जो मां के दर्शन करने आया, उसकी मुराद जल्दी पूरी होती है। यहां नौ दिन तक मेला लगता है और लाखों श्रद्धालु मन्नतें मांगने आते हैं।
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मंदिर की स्थापना को लेकर रहस्य है बरकरार मैहर के त्रिकुट पर्वत पर मां शारदा के इस मंदिर की स्थापना कब और कैसे हुई,यह अभी तक एक रहस्य बना हुआ है। मां की मूर्ति के नीचे 10वीं सदी का एक शिलालेख है। इस शिलालेख में अंकित है कि ओड़िशा का एक बालक दामोदर यहां गाय चराता था और मां की आराधना करता था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने उसे दर्शन दिये और उसकी इच्छापूर्ति करते हुए त्रिकुट पर्वत पर विराजमान हुईं। वहीं, एक और मान्यता यह भी है कि 2000 साल पहले आदि शंकराचार्य ने मां को यहां स्थापित किया।