shardiya navratri 2021 : नवरात्रि कलश स्थापना
सनातन संस्कृति और धर्म में नारी की स्थिति सर्वथा पूजनीय रही है। देवी के विभिन्न स्वरूपों के प्रति व आदर का भाव रखते हुए ही दुर्गा, आदिशक्ति, शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि,महागौरी व सिद्धिदात्री के रूप में जगत जननी बन इस जगत को यशवंत,श्रीवंत व सुखवंत बनाती हैं। सनातन संस्कृति की यह विशालता ही है कि पितर आराधना के उपरांत ही महालया व तदुपरांत ही नौ दिवसीय देवीअर्चना की अनुमति,अनुगति के लिये उपयुक्त स्वीकार्य है.
प्रथम शैलपुत्री
अपनी मां के गर्म से उत्पन्न हो कर
श्रीसुख वाली कन्या “शैलपुत्री” के
रूप को प्रतिपादित किया करती है। अतः वह शैलपुत्री संज्ञा से विभूषित होती हैं।
द्वितीय ब्रह्मचारिणी
लोकावतरण से लेकर कौमार्य तक का जीवन दर्शन अति संवेद-
नशील पक्ष माना जाता रहा है तथा साधकों ने देवी के उत्तम
स्वरूप को ब्रह्मचारिणी कहा है।
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तृतीय चंद्रघण्टा
उपासना में लीन उपासक भी स्नेह से उपमा-उपमेय का सहारा लेकर
वैवाहिक संस्कार होने तक चंद्रमा की कला की तरह परिलक्षित होने वाली कन्या में चंद्रघंटा सदृश्य ओज का आंतरिक आभास पाया
जो निर्मल व ओजपूर्ण कालखंड
माना गया।
चतुर्थ कूष्मांडा :
यहां से प्रकृति का निरालापन पल-पल निखरने लगता है।सृजन
का अध्याय ही कूष्मांडा है।गर्भ में
उदरस्थ होने की कला व नीड़ का
निर्माण मां के कूष्माण्डा स्वरूप की देन है।
पंचम स्कंदमाता
क्रिया-प्रतिक्रिया का नैसर्गिक रूप ही स्कंदमाता हैं यानि एक संतति
के जन्म से माता भी धन्य होती हैं और उनका स्वरुप स्कंदमाता बन कर बरदायिनी कही जाती है।
षष्टम कात्यायनी
संयमपूर्वक साथनारत रहने वाली
स्त्री की कल्पनाशीलता ने उसे
मां कात्यायनी बना दिया तथा उसे
पल भर के विचलन से उबार लिया.
सप्तम कालरात्रि
कहते हैं कि”किसी दूसरे की नजर
से,एक मां ही बचा सकती है”..हां इस कालरात्रि में असीम शक्ति है
अपने अनुसेवको को बचाने की।
संतति, पति पर मंडराते काल के तेज से अधिक बिकराल शक्ति मां
के स्वरुप में सन्निहित है।
अष्टम महागौरी
महिला का कौटुम्बिक सरोकार जब हिलोर लेती हैं तब वह संसार की अविरल धारा बन उपकृत होती हैं।महागौरी मां का स्नेहिल
स्वरूप वरदायनी है।कुटुम्ब का
लोकाचार सदा ही पूजित रहा है।
नवम सिद्धिदात्री
स्वाध्याय का समर्पित दर्शन मां का सिद्धिदात्री स्वरूप है ।एक समय लोकावतरण और दूसरा
लोकांतरण का पल। यानि सभी के समक्ष,परित्याग ही जिनका जीवन दर्शन हो,ऐसी मातृ शक्ति को नमन.स्वर्गारोहण से खुद की संतति को सुख,समृद्धि,यश, तथा सिद्धि का वरदान देती मां
सिद्धिदात्री बन पुनः शून्य में समाहित हो जाती हैं । उपरोक्त दृष्टांत पर यदि समाज शक्ति संधान कर देवी की भक्ति अनुष्ठान में संलिप्त हो तो सभी सार्थक फल प्राप्त कर यशवंत हो.
शंभुदेव झा .