भगवान महादेव का सातवां शिव अवतार गृहपति अवतार था। भगवान गृहपति भगवान शिव के उन्नीस अवतारों में से एकमात्र अवतार ऐसे हैं जिनका स्वरूप बाल रूप में है। साथ ही हाथ में त्रिशूल, माथे पर चन्द्रमा के साथ-साथ गले और जटा में नाग धारण किए हुए है।
इस अवतार से दो कथाएं जुड़ी हैं। पहली कथा का उल्लेख शिव महापुराण के रूद्र कोटि सहिंता के प्रथम खण्ड में मिलता है। इस कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव का बालरूप देखने के लिए भगवान विष्णु ने प्रार्थना की। अपने आराध्य की इच्छा का सम्मान करते हुए महादेव ने गृहपति का अवतार लिया।
दूसरी कथा का उल्लेख शिवमहापुराण और लिंगपुराण में मिलती है। इसके अनुसार नर्मदा नदी के क्षेत्र नर्मपुर में एक शिवभक्त मुनि सपत्नीक आराधना किया करते थे। अपनी शिव भक्तन पत्नी पर प्रसन्न हो कर मुनि ने उनसे वर मांगने को कहा। पतिव्रता स्त्री ने मुनि से संतान के रूप में भगवान ‘शिव’ की चाहत की। क्षण-भर विराम के बाद मुनि ने उन्हें काशी जा वीरेश्वर लिंग की सविधि पूजन करने की अनुमति दी। मुनि भी पत्नी के साथ शिवार्चन में लग गये। मुनि पत्नी समय के साथ गर्भ में बच्चे को धारण कर अपने पति समेत, स्व नगर लौट आयीं। समयानुसार एक बालक का जन्म हुआ।
शिवात्मनां बालक का नामाकरण संस्कार “गृहपति” के रूप में हुआ। प्रखर,दिव्य व आध्यात्मिक ज्ञान के साथ बालक बढ़ने लगा। धर्म के ज्ञाता पुनीत आलोक छवि ने धर्म पुस्तकों के हवाले से बताया कि बालक गृहस्थ अपने समय का एक अद्वितीय शिवभक्त बालक बन कर उभरा वह कई विलक्षण शक्तियों का स्वामी था।
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कथा के अनुसार एक दिन शिव भक्तमुनि विश्वानर के घर ऋषि नारद पधारे थे और उन्होंने बारह वर्ष की आयु में उस बालक को अग्नि व विद्युत से पूरी तरह सचेत रहने को कहा। नारद का कथन सुन मुनिश्री की चिंता बढ़ गई। माता की परेशानी देख बालक गृहपति ने काशी जा कर अपने आराध्य विश्वेश्वरलिंग की पूजा करने की अनुमति मांगी। अभिभावक को राजी कर नमः शिवाय जपते-जपते बालक काशी आ पहुंचा और शिव आराधना में लग गया।
इस बीच शंकर भगवान ने बालक की परीक्षा के लिए इन्द्र को भेजा और भगवान इन्द्र ने प्रकट हो उसे वर मागने को कहा। बालक गृहपति वर मांगने से मना कर दिया। गृहपति के नकारते ही इन्द्र ने उस पर नाराज होकर बज्र से प्रहार कर दिया।
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तत्काल शिव को पुकारते ही बालक अचेतन अवस्था में चला गया। भगवान शंकर से एक भक्त की पीड़ा देखी न गई। शंकर जी तत्काल प्रकट हो कर उसे अपनी लीला बताते हुए उसे मनोवांछित जीवन दान के.साथ शिवभक्त घोषित कर दिया। साथ ही कहा अबसे तुम्हारे ऊपर यमराज का प्रभाव नहीं पड़ेगा और तुम्हारे द्वारा स्थापित यह शिवलिंग अग्नीश्वर नाम से प्रसिद्ध होगा। इनका दर्शन करने से मनुष्य बिजली और अग्नि से भयभीत एवं पीड़ित नहीं होंगे।