- 14 मई 2021 अक्षय तृतीया पर विशेष
- parashuraam की जयंती पर परशुराम के कुछ प्रसंग
अनमोल कुमार । राजा प्रसेनजीत की पुत्री रेणुका के गर्भ से महर्षि जमदग्नि के पुत्र parashuraam का नाम मुख्य रूप से राम था और इनकी गणना विष्णु के 10वें अवतार के रूप में होती है। इन्हें भगवान शिव ने सुप्रसिद्ध कुल्हाड़ी (फरसा) दी थी। जिसके कारण इनका नाम parashuraam के नाम से विख्यात हुआ। भृगु वंशी होने के कारण ये भार्गव और जमदग्नि के पुत्र होने से जामदबं कहलाए।
दुर्वासा ऋषि की तरह परशुराम भी क्रोधी स्वभाव के लिए जाने जाते थे। पिता की आज्ञा पर इन्होंने अपनी माता का सर काट दिया और पिता को समर्पित किया। जब पिताजी प्रसन्न हुए तो पिता ने परशुराम से वर मांगने के लिए कहा।परशुराम ने पिता से मां को पुनर्जीवित करने का वरदान मांगा।
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क्षत्रिय और भार्गव में पीढ़ियों से शत्रुता चली आ रही थी। एक बार जब परशुराम अनुपस्थित थे तो हैय राजा कृत्य वीर्य ने जमदग्नि के आश्रम को जला डाला। कामधेनु गाय छीन ली। इसका बदला लेने के लिए भगवान parashuraam ने क्षत्रियों से 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन किया।
बाद में भगवान parashuraam श्रीराम की प्रेरणा से शांतिप्रिय और रचनात्मक बन गए। एक बार भगवान parashuraam समुद्र तट पर नारियल का वृक्ष लगाने का एक सामुदायिक समारोह आयोजित किया। उन्होंने जनसमूह को सामने ज्वार से गरजते समुद्र की तरफ इशारा करते हुए गंभीर ध्वनि में कहा कि समुद्र हमें सिखाता है कि हमें पूर्ण उत्कर्ष के समय भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि श्रीराम ने मुझे पूर्व की गलती का एहसास कराते हुए बताया कि अन्याय प्रतिकार मनुष्य का धर्म नहीं है। परंतु उसकी भी एक शास्त्रीय मर्यादा है राम जैसे गुरु कृपा से आज मैं शांत चित्त होकर वृक्षारोपण कार्यक्रम में संलग्न हूं। कहा जाता है कि उनकी गंभीर ध्वनि सिकंदरा में आज भी गूंजती है।