ढाई हजार वर्ष पूर्व चीन में हुआ पतंगबाजी का जन्म। हमारे देश के परंपरागत शौकों में 'पतंगबाजी' का एक विशिष्ट स्थान है। राजा से रंक तक पतंगब....
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मकर संक्रांति पर विशेषः भारत में मकर संक्रांति पर होती है पतंगबाजी

ढाई हजार वर्ष पूर्व चीन में हुआ पतंगबाजी का जन्म। हमारे देश के परंपरागत शौकों में ‘पतंगबाजी’ का एक विशिष्ट स्थान है। राजा से रंक तक पतंगबाजी के प्रति आकृष्ट होते रहे हैं। रंग-बिरंगी पतंगें खुले आकाश में जब इठलाती हुई नजर आती हैं तो देख कर लोग बाग-बाग हो जाते हैं। फिर पतंग के प्रति उनके दिल का भाव प्रकट हो जाता है और कंठ से निकल पड़ता है- “चली चली रे पतंग मेरी चली रे चली बादलों के पार, होके के डोर पे सवार, सारी दुनिया ये देख-देख जली रे…”। पतंग को लेकर ऐसे कई गाने लिखे गए है, जिन्हें बच्चे, जवान और बूढ़े के साथ-साथ आधुनिक लड़कियां भी अपनी सहेलियों के साथ बरबस ही गा उठती हैं।

 पतंगबाजी का इतिहास कहता है कि इसका जन्म करीब ढाई हजार वर्ष पूर्व चीन में हुआ था। वहां के सम्राट लियांग ने अपने लिखित संदेश अन्य स्थानों तक पहुंचाने के लिए पतंग का प्रयोग किया था। प्रारंभिक दिनों में दुश्मनों के पड़ाव का पता लगाने के लिए भी पतंगों का प्रयोग किया जाता था। प्राचीन काल में पतंगे युद्ध का भी संदेश देती थीं। अधिक संख्या में आकाश में उड़ते पतंग देखकर लोग समझते थे कि कहीं युद्ध की शुरुआत होने वाली है। चीन में पुत्र उत्पन्न होने पर पतंग उड़ाया जाता था ताकि पुत्र का अला-बला और दुर्भाग्य भी पतंग के साथ उड़ जाए।

 पतंग का जन्मदाता देश चीन से ही इसका प्रसार-प्रसार जापान, भारत, कोरिया, मलेशिया, थाईलैंड, इंग्लैंड और अरब आदि देशों में हुआ। वैसे भारत की पतंगबाजी भी कम पुरानी नहीं है।  देश के लखनऊ, आगरा, दिल्ली, हैदराबाद, लाहौर सहित अन्य जगहों के नवाबों ने पतंगबाजी में विशेष दिलचस्पी लेते थे। दिल्ली में शाहआलम के शासनकाल में यह शौक विशेष पनपा था। लखनऊ की पतंगबाजी भी वहां के नवाबी शान के साथ शुरू हुई और उसको जिंदा रखने के लिए अभी भी गोमती नदी के किनारे पतंगें उड़ाई जाती है। वाराणसी में गंगा पार की पतंगबाजी भी काफी आकर्षक हुआ करती थी।

भारत में लखनऊ, बनारस, जयपुर, अजमेर आदि अनेक ऐसे शहर हैं, जहां पतंगबाजी बकायदा इस्तहार देकर की जाती है। और इस पर अब लाखों रुपए के वारे न्यारे हो जाते हैं। इन शहरों में बनाई जाने वाली पतंगों की मांग सम्पूर्ण भारतवर्ष में है। इसे उड़ने के लिए प्रयुक्त होने वाला मांझा मुख्यतः बरेली और वाराणसी में बनाया जाता है। पतंग निर्माताओं  का सम्पूर्ण परिवार बच्चों से लेकर महिलाओं तक इस कार्य में लगे होते हैं।

कला और संस्कृति में विविधता के अनुरूप हर राज्य में पतंगबाजी का मौसम अलग-अलग है। गुजरात और महाराष्ट्र में जनवरी माह में मकर संक्रांति के अवसर पर राजस्थान,पंजाब में बैसाखी पर्व के अवसर पर अप्रैल-मई और दिल्ली, उत्तर प्रदेश में जुलाई-अगस्त में पतंगबाजी का आयोजन होता है। जबकि मध्य प्रदेश में पतंगबाजी का प्रदर्शन अक्टूबर-नवंबर माह में किया जाता है।

वैज्ञानिक पतंगों को वायुयान का प्राचीन रूप मानते हैं। वायुयान के अविष्कारक राइट ब्रदर्स ने विमान उड़ने के सभी प्रयोग पतंगों द्वारा ही किए थे। और इस प्रकार सन् 1903 में वायुयान के निर्माण में सफलता मिली। पतंग वायुगति की यानी एयर रोडायना मिक्स के सिद्धांत पर उड़ती है। इसको हवा में उड़ाने के लिए लिफ्ट, ड्रैग, डोरी के खिंचाव और गुरुत्व के बीच सामंजस्य होना जरूरी है।

  पतंग आकार में कई प्रकार की होती है। डेल्टाकर, धनुषाकार, बाक्सनुमा, चपटी आदि अधिक प्रचलित है। वर्तमान में कागज के साथ-साथ प्लास्टिक की भी पतंगें लोकप्रियता प्राप्त कर रही है। लटायन यानी चरखी भी लकड़ी के साथ-साथ प्लास्टिक की बनने लगी है। पतंग पर कन्नी, सद्धी से बांधी जाती हैं। कन्नी में दो या दो से अधिक डोरियां होती है, जिन्हें ‘लेग्स’ कहा जाता है। इन्ही से पतंग डोरी से जुड़ी होती है। इसे कटने से बचाने के लिए डोर को मजबूत बनाया जाता है। इसके लिए कांच पीसकर उसे गोंद में साबूदाना मिलाकर मांझा तैयार कर डोर पर लगा दिया जाता है, ताकि डोर धारदार और मजबूत होकर विपक्षी के डोर को काट डाले।

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 पतंगबाजी का प्रचलन न केवल भारतवर्ष बल्कि इंग्लैंड, ईरान, श्रीलंका, इंडोनेशिया, कोरिया, जावा, जापान, मॉरीशस, अमेरिका आदि देशों में भी है। पतंग की जन्मस्थली चीन में 9 सितंबर को पतंगबाजी की जाती है। वैसे वहां के निवासियों की मान्यता है कि पतंग उड़ाने से प्रेतात्माएं भाग जाती हैं और देवगण प्रसन्न हो जाते हैं। कोरिया में नए वर्ष के दिन माता-पिता एक कागज की पतंग पर अपने बच्चों का नाम और जन्म तिथि लिखकर उड़ा देते हैं। पतंग के आकाश में पहुंचने पर पिता आश्वस्त हो जाते है कि उनके बच्चे का दुर्भाग्य पतंग अपने साथ ले गई।

जापान में पतंगबाजी की परंपरा सदियों पुरानी है।10 वीं शताब्दी के “कमयोरूईजुशो” नामक एंसाईक्लोपीडिया में जापान में पतंगें उड़ाए जाने का स्पष्ट वर्णन है। बताया जाता है की सबसे पहले पतंग का उपयोग एक सेनापति ने किया था, जिसकी हार निश्चित थी। उक्त सेनापति ने एक पतंग जैसी चीज बनवाई और उसके नीचे एक कंदील लटकाकर रात में उसे उड़ा दिया। हारते हुए सैनिकों ने जहां एक ओर उसे शुभचिन्ह समझा, जितने वाले दल ने उसे विपक्षियों के लिए आई दैवी सहायता माना। सेनापति की बुद्धिमता काम आई और वह हारा हुआ युद्ध जीत गया।

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 नववर्ष के दौरान और मई के आरंभ में जापानी लोग पतंग उत्सव मनाते हैं। इसमें सभी उम्र के लोग बड़े जोर-शोर से हिस्सा लेते हैं। इन उत्सव के दौरान तरह-तरह की प्रतियोगिताएं होती हैं। पतंग की सुंदरता, उसे कलात्मक तरीके से उड़ना, पेंच और इसी तरह की कई चीजों के लिए ट्रॉफियां तथा नगद पुरस्कार दिए जाते है।

 पतंगोत्सव से जुड़ी हुई कई कथाएं हैं। सैकड़ों साल पूर्व एक जनप्रिय राजा के घर जब राजकुमार का जन्म हुआ तो वहां की प्रजा ने पतंगें उड़ाकर अपनी प्रसन्नता जाहिर की। राजा को यह पतंगबाजी बहुत पसंद आई और वह अपने पुत्र  राजकुमार के जन्मदिन पर हर वर्ष पतंगबाजी का आयोजन करने लगा।

विश्वनाथ सिंह (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और अधिवक्ता हैं)

Xpose Now Desk
मुकेश महान-Msc botany, Diploma in Dramatics with Gold Medal,1987 से पत्रकारिता। DD-2 , हमार टीवी,साधना न्यूज बिहार-झारखंड के लिए प्रोग्राम डाइरेक्टर,ETV बिहार के कार्यक्रम सुनो पाटलिपुत्र कैसे बदले बिहार के लिए स्क्रिपट हेड,देशलाइव चैनल के लिए प्रोगामिंग हेड, सहित कई पत्र-पत्रिकाओं और चैनलों में विभिन्न पदों पर कार्य का अनुभव। कई डॉक्यूमेंट्री के निर्माण, निर्देशन और लेखन का अनुभव। विविध विषयों पर सैकड़ों लेख /आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। कला और पत्रकारिता के क्षेत्र में कई सम्मान से सम्मानित। संपर्क-9097342912.