धर्म-ज्योतिष

ज्योतिष की प्रमाणिकता पर कोई तर्क देने की जरुरत नहीं : कृष्णा नारायण

मैंने ज्योतिष को नहीं, ज्योतिष ने मुझे चुना है : कृष्णा नारायण

मुजफ्फरपुर में मायका, बेगूसराय में ससुराल और दिल्ली में लगातार ज्योतिषीय साधना। साधना इसलिए कि ज्योतिष इनके लिए पेशा नहीं है। सच तो यह है कि कृष्णा नारायण ज्योतिष को ही जीती हैं, ज्योतिष में ही जीती हैं और ज्योतिष के लिए ही जीती हैं। ज्योतिष में शोध इनका परम प्रिय विषय है। जी हां, गृह विज्ञान से एमए और लेक्चरर पात्रता की परीक्षा पास कर ज्योतिषी बनीं कृष्णा नारायण से मुकेश महान ने लंबी बातचीत की। यहां प्रस्तुत है उसके मुख्य अंश –
आप ज्योतिषी कैसे बन गईं ? मतलब करियर के रूप में आपने ज्योतिष को ही क्यों चुना ?
सच कहें तो मैं ज्योतिषी नहीं बनी। मुझे लगता है कि ज्योतिष ने मुझे चुना है। वरना मैं तो गृह विज्ञान की अपने बैच की एमए में यूनिवर्सिटी टॉपर रही हूं। मैंने तो लेक्चरर की योग्यता परीक्षा भी पास कर रखी है। मुझे तो कायदे से अभी किसी यूनिवर्सिटी में गृह विज्ञान की प्रोफेसर हो जाना चाहिए था।
सवाल तो रह ही गया कि ज्योतिषी कैसे बनीं ?
हां, मेरा ज्योतिषी बनना एक सुखद दुर्घटना थी। दरअसल मेरे पति के एक दोस्त की पत्नी, जो मेरी सहेली भी थी, वो भारतीय विद्या भवन से ज्योतिष का कोर्स करना चाहती थी। उसने मुझसे भी आग्रह किया कि मैं भी नामांकन करा लूं। मकसद था हम दोनों का साथ साथ आना जाना होता। संयोग की बात ही है कि उस सहेली का कोर्स पूरा नहीं हो सका और मैं ज्योतिषी बन गई। इसलिए मैं ये कहती हूं कि ज्योतिष ने मुझे चुना।

ज्योतिष की प्रमाणिकता पर बार बार सवाल उठाए जाते रहे हैं । आज भी इस पर विवाद चल रहा है। आप क्या कहेंगी ?
ज्योतिष की प्रमाणिकता पर हमें कोई तर्क देने की जरुरत नहीं है। यह ऑलरेडी सिद्ध ही है। इसे सिद्ध करने की जरुरत ही नहीं है। हमें भविष्योन्मुखी शोध की जरुरत है। हमें अतितोन्मुखी नहीं बनना है। हम अगर ज्योतिष को ही सिद्ध करने में लगे रह गए, तो हम आगे शोध नहीं कर पाएंगे। हम आगे बढ़ ही नहीं पाएंगे।सवाल करने वालों की आदत होती है सवाल करना, कुतर्क करना,विवाद करना, वो आगे भी करते रहेंगे। उसमें उलझने की जरुरत नहीं। वो तो सवाल करते ही रहेंगे। उस चक्कर में न पड़कर हमें अध्य्यन जारी रखना चाहिए, शोध जारी रखना चाहिए। मैं इन सब चीजों में उलझती नहीं हूं। जो ऐसा करते हैं, उन्होंने ज्योतिष को नहीं पढ़ा है, वो ज्योतिष को नहीं जानते, न ही समझते हैं फिर उनसे बहस क्या करना ? मेरी नजर तो अर्जुन की तरह सिर्फ लक्ष्य पर है। मैं ज्योतिष को वर्तमान स्थिति से निकालना चाहती हूं। इसे सर्वोपयोगी बनाना चाहती हूं, साबित करना चाहती हूं, बस ये ही मेरा लक्ष्य है।


हम क्यों मानें ज्योतिष को ? दूसरे शब्दों में जो नहीं मानते हैं ज्योतिष को, उनके लिए आप क्या कहना चाहेंगी ?
उनके लिए कुछ नहीं कहा जा सकता। क्या कहेंगे उनको? आप सूर्य को मानेंगे ,चंद्रमा को मानेंगे, हवाओं को मानेंगे, काल को मानेंगे, दिशाओं को मानेंगे और ज्योतिष को नहीं मानेंगे। तो ये तो मजाक की बात हो गई न। इससे बड़ा उपहास और क्या हो सकता है? आप उसे ही न मानेंगे, जो इन सब के बारे में हमें शताब्दियों से बताता आ रहा है। ज्योतिष ऐसी चीज है, जो आपसे कोई अपेक्षा नहीं रखती कि आप उसे मानें या न मानें। मसलन अग्नि को आप मानें या न मानें, क्या फर्क पड़ता है अग्नि को। लेकिन जब उसके पास जाएंगे या उसके सम्पर्क में आएंगे तो आप जलेंगे ही। इसी तरह ज्योतिष को मानें या न मानें लेकिन जब आप इसके सम्पर्क में आएंगे तो लाभान्वित तो होंगे ही। रही बात क्यों मानें हम ज्योतिष को? तो सवाल तो ये भी बनता है कि क्यों मानें हम अपने जीवन को, अपने समाज को और अपने राष्ट्र को। ये तो ऐसा सवाल है, जो अनंत चलता ही रहेगा। क्यों का कोई जवाब नहीं होता। ज्योतिष तो आपके जीवन में रचा-बसा है। बस ज्ञान पर एक पर्दा पड़ा है, जिस दिन वो पर्दा हट जाएगा, उसी दिन आप ज्योतिष को मानने लगेंगे। …और हम उसी पर्दे को हटाने की मुहीम में लगे हैं। सच तो ये है कि हम इतने मूढ़ हो चुके हैं कि अपने जीवन को ही पहचानने से इंकार करने लगे हैं।
अपने ही देश में ज्योतिष विद्या के इस दुर्गति के लिए कौन जिम्मेदार है?
हम सब जिम्मेदार हैं। लेकिन शुरुआत के लिए हमें पीछे चलना होगा। अंग्रेजों ने जब भारत को जीतना शुरु किया तो लार्ड मैकाले ने भारत की शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करने की नीति बनाई और ऐसी शिक्षा व्यवस्था विकसित की जिससे भारत की संस्कृति, भारत की मूल परंपराएं नष्ट हो जाएं। और अंग्रेज इसमें काफी हद तक सफल भी रहे। नतीजतन भारत की एक ऐसी समृद्ध और वैज्ञानिक विधा आज सिर्फ पंडितई बन कर रह गई है। उपहास और मजाक का विषय बन कर रह गया है। साफ है कि अंग्रेज अपने साजिश में सफल रहे। हद तो ये है कि इस साजिश को सफल बनाने में देश के लोगों ने भी जाने अंजाने अपना योगदान दिया है। ज्योतिष विधा को जितना नुकसान दूसरे लोगों से हुआ, उससे कहीं ज्यादा नुकसान खुद ज्योतिषियों ने इसे पहुंचाया है।
ज्योतिष के इतिहास पर कई पुस्तक लिखने वाले नेमिचंद्र जैन ने ज्योतिष को सिद्ध करने के अपने प्रयास में बहुत ही महीनी से वेदों को नकारा है। जब चीजें ऐसी ऐसी परोसी जाती रहेंगी और हम जिज्ञासु और खोजी नहीं बनेंगे तो हमारी मनःस्थिति भी वैसी ही बनती चली जाएंगी। और आज वही हो रहा है।

फिर क्या उपाय है ?
उपाय तो है ही। थोड़ा कठिन हो सकता है लेकिन है। हमें ढूंढना होगा कि कालक्रम में हमें कब कब और कहां भटकाया गया या भटकाने की कोशिश की गई। फिर उस भटकाव को दुरुस्त करने की जरुरत है और ज्योतिष के शुद्धतम रुप को लोगों के बीच लाने की जरुरत है। मैं इस दिशा में कोशिश कर भी रही हूं। इसपर मेरे कई शोध अभी जारी हैं।

फिर भी सवाल तो बनता ही है कि हजारों साल पुरानी इस विधा पर हम भरोसा क्यों करें जबकि सैकड़ों साल से इसपर शोध नहीं हुआ है। इसे अपडेट नहीं किया गया है ?
हां, सही कह रहे हैं आप। इसके लिए शोध ही एकमात्र उपाय है। हमें शोध करना ही पड़ेगा। दूसरा कोई विकल्प नहीं है। देश, काल,पात्र के हिसाब से ज्योतिष को संशोधित, परिमार्जित करना ही पड़ेगा तभी ज्योतिष का फिर से स्वर्णिम काल आ पाएगा।
आज भारत में ज्योतिष कई प्रारूप में उपलब्ध है! भृगु ज्योतिषी, वैदिक ज्योतिष, नाड़ी ज्योतिषी, अंक ज्योतिषी, हस्त रेखा, टैरोकार्ड आदि ऐसे में कंफ्यूजन तो स्वाभाविक हैं ?
-नहीं।ऐसा नहीं है। जितने भी प्रारुप हैं, सबके मूल में ज्योतिष ही है। चाहे वह भृगु ज्योतिषी, वैदिक ज्योतिष, नाड़ी ज्योतिषी, अंक ज्योतिषी, हस्त रेखा, टैरोकार्ड कोई भी ज्योतिष हो, और जब ज्योतिष मूल में है तो कहीं कोई कंफ्यूजन नहीं होना चाहिए। सभी के फलादेश एक ही होंगे
हां, अगर हम मूल से भटकेंगे तो कंफ्यूजन स्वाभाविक ही है।लेकिन अगर हम मूल को पकड़े रहेगे तो कोई कंफ्यूजन नहीं है,
कैसा लगता ? दूसरों का भविष्य पढ़ कर और बता कर
देखिए यह भविष्य कथन की विद्या नहीं है। हां कब होगी चीजें, ये आप बता सकते हैं। और हम ये ही बताते हैं। और जब हमारे बताए हुए से लोगों को लाभ मिलता है तो हम और अधिक काम करने के लिए मोटिवेट तो होते ही हैं।
कौन कौन सी बात आप आम तौर पर अपने क्लाइंट से छिपा लेती है ?
देखिए हमारे पास जो लोग आते हैं उनको मैं क्लाइंट नहीं मानती हूं।मैं उसे ऊर्जा पुंज मानती हूं। और मैं उनकी जीवन यात्रा बताती हूं। कुछ भी नहीं छिपाती हूं। हां कभी कभी बताने का अंदाज जरूर बदल लेती हूं।
ज्योतिषी होने पर कभी अफ़सोस हुआ आपको ? और कब आत्म संतुष्टि मिली इस प्रोफ़ेशन में ?
ज्योतिषी होने का कभी अफसोस नहीं हुआ मुझे। हां, अब अफसोस होता है कि जिंदगी का इतना बड़ा हिस्सा गुजर जाने के बाद, इतना देर से मैं क्यों ज्योतिष से जुड़ी ? क्योंकि अब लगता है कि समय कम है और काम बहुत ही ज्यादा।
किसी के जीवन लिए कितना उपयोगी है ज्योतिष ?
हर इंसान के लिए बहुत ही उपयोगी है ज्योतिष। यह जीवन का जीपीएस है। यह हमें बताता है कि जीवन में कब और कहां रोड़े , पत्थर, या कांटे बिछे पड़े हैं। यह हमें दूसरा साफ-सुथरा रास्ता भी बताता है। यह हमें पूरी जीवन याज्ञा की जानकारी हमें समय से पहले ही दे देता है।
आप उपाय बताती हैं, कितना कारगर होता है ?
बिलकुल उपाय तो बताते ही हैं हम। लेकिन दुकान नहीं चलाती मैं। मैं मंत्र पाठ का उपाय बताती हूं, वो भी स्वयं ही करने के लिए। किसी और से नहीं करवाने के लिए।
ज्योतिष की पढ़ाई को स्कूल-कालेज में कितना जरूरी मानती हैं आप ?
बहुत ही जरूरी है स्कूल-कालेजों में इसकी पढ़ाई। पढ़े लिखे लोगों का इस क्षेत्र में आना बहुत ही जरूरी है। और यह तभी संभव है जब स्कूल कालेजों में इसकी पढ़ाई नियमित अनिवार्य की जाए। अगर हमें प्रकृति को बचाना है, अगर हमें स्वयं को बचाना है तो हमें ज्योतिष की ओर लौटना ही होगा। तो पढ़ाई तो इसकी स्कूल-कालेजों में शुरु करनी ही चाहिए।