पटना।विधानसभा (Assembly) चुनाव के दौरान ताबड़तोड़ रैलियां कर रिकार्ड बनाने वाले लालू पुत्र तेजस्वी अपनी पार्टी राजद का खाता-बही तक नहीं संभाल पा रहे । आलम यह है कि सदन में भले ही राजद मुख्य विपक्ष की भूमिका निभा रहा है, लोकतंत्र के दूसरे स्तंभों और लोकतांत्रिक संस्थाओं को ठेंगा दिखा रहे हैं। तेजस्वी ही नहीं, दूसरे राजनीतिक दल भी कमोवेश इसी राह पर हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) और इलेक्शन वॉच ने बिहार विधानसभा की कुछ ऐसी ही तस्वीर अपनी रिपोर्ट में रखी है।
163 दागदार पहुंच गए विधानसभा की रेड कारपेट तक
सत्रहवीं विधानसभा (Assembly) की जो तस्वीर रिपोर्ट में रखी गई है उसमें 163 माननीयों के दामन पर दाग लगे हुए हैं। इनमें से 123 ऐसे हैं जिनपर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। प्रतिशत में देखा जाए तो यह 51 के करीब है।
2015 के विधानसभा में यह आंकड़ा 40 प्रतिशत था। दागदार माननीयों में सबसे ज्यादा राजद के हैं। राजद के 60 प्रतिशत विधायकों पर किसी न किसी मामले में एफआईआर दर्ज है। संख्या के लिहाज से देखें तो 74 में से 44 राजद विधायक दागदार हैं। महागठबंधन के दूसरे दल भाकपा माले के 12 में से आठ (67 प्रतिशत) और कांग्रेस के 19 में से 11 (58 प्रतिशत ) माननीयों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। सत्ताधारी एनडीए के शत-प्रतिशत माननीय भी दूध से धुले नहीं हैं।
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भाजपा के 73 में से 35 (48 प्रतिशत) और जदयू की टिकट पर जीत कर आए 43 में से 11 (26 प्रतिशत ) माननीय भी दामन पर दाग लगाए बैठे हैं। ओबैसी की पार्टी एआइएमआइएम और सीपीएम के तो शत-प्रतिशत माननीय दागदार हैं। जीते जन प्रतिनिधियों में 19 पर तो हत्या के आरोप तक लगे हैं। 31 पर हत्या का प्रयास और आठ पर महिला उत्पीड़न के मामले दर्ज हैं। ये हाल तब है जब सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट दिशा-निर्देश दे रखा है कि दागदार को प्रत्याशी बनाए जाने पर राजनीतिक दलों को ठोस कारण बताना होगा। निर्वाचन आयोग ने भी सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश के आलोक में दलों को कई बार इस आशय की हिदायत दी है। दिलचस्प यह है कि कई राजनीतिक दलों ने दागदार प्रत्याशियों को टिकट देने की वजह जिताऊ उम्मीदवार होना बताकर औपचारिकता पूरी कर ली है।
75 दिन में देना है चुनावी खर्चे का हिसाब, छह माह बाद भी नहीं दिया
विधानसभा (Assembly) चुनाव की अंतिम तिथि के 75 दिनों के भीतर राजनीतिक दलों को चुनाव खर्चे का संपूर्ण विवरण निर्वाचन आयोग को देना होता है। व्यय विवरण में चुनाव के दौरान विभिन्न माध्यमों से प्राप्त कुल राशि और खर्च की जानकारी देनी होती है। राजनीतिक दल के केंद्रीय और राज्य मुख्यालयों के स्तर पर प्रचार और यात्रा सहित अन्य व्यय का पूरा लेखा-जोखा आयोग के समक्ष रखा जाता है। आयोग अपने वेबसाइट पर इस लेखा-जोखा को आमलोगों की जानकारी के लिए उपलब्ध कराता है। अब तक 2020 विधानसभा (Assembly) चुनाव के बाबत मात्र नौ राजनीतिक दलों की व्यय विवरणी ही आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध है। प्रमुख विपक्षी बनी राजद, लोजपा, सीपीआई, आरएलडी, आरएलएसपी, जेडीएस, जेएमएम और एनपीआई जैसे दलों का चुनाव खर्च विवरण आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है। बिहार में चुनाव हुए छह माह से ज्यादा बीत चुके हैं।
*नौ पार्टियों ने चुनाव में खर्च किए 82 करोड़, एकत्र हुआ 185 करोड़ *
नौ राजनीतिक दलों ने जो व्यय विवरणी आयोग को दी है, उसके अनुसार विधानसभा (Assembly) चुनाव के दौरान 81.86 करोड़ खर्च किए गए हैं। इन दलों ने चुनाव के दौरान 185.14 करोड़ रुपये एकत्र भी किए। रूपये एकत्र करने में राजनीतिक दलों के केंद्रीय कार्यालय अब्बल रहे हैं। एकत्र राशि में से 106.16 करोड़ केंद्रीय कार्यालयों के हैं। हालांकि चुनाव के दौरान राशि एकत्र करने में भाजपा 2020 के चुनाव में पिछड़ गई है। 2015 में बीजेपी ने सबसे अधिक 51.66 करोड़ रुपये की धनराशि एकत्रित की थी।विधानसभा चुनाव 2020 में भाजपा ने मात्र 33.83 करोड़ रूपये पर की आय घोषित की। 2020 के चुनाव में जदयू 55.607 करोड़, बीएसपी ने 44.581 करोड़ और कांग्रेस ने 44.536 करोड़ की धनराशि एकत्र की है।
नौ राजनीतिक दलों ने चुनाव के दौरान उम्मीदवारों पर 46.59 करोड़, यात्रा पर 37.32 करोड़, प्रचार पर 36.73 करोड़ का खर्च दिखाया है। भाजपा, जदयू,बसपा, कांग्रेस, शिव सेना, सीपीएम, एनसीपी, आल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक और एआइएमआइएम की व्यय विवरणी आयोग के वेबसाइट पर उपलब्ध है। 2015 में सभी राजनीतिक दलों ने 150.99 करोड़ रूपये खर्च किए थे।
श्रवण कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)