फतुहा,अमरेंद्र। सरस्वती पूजनोत्सव एक बार फिर से कोरोना की रफ्तार और उसके दुष्प्रभावों का शिकार हुआ लगता है। स्कूल-कालेजों की बंदी,समारोह, पूजा-पंडालों पर रोक। ऐसे में आखिर कैसे होगा सरस्वती पूजा समारोह। दरअसल यह एक ऐसा पर्व है जिसका इंतजार स्कूली बच्चों के साथ साथ गली मुहल्ले के बच्चों को भी सालों भर रहता है। इस बहाने बच्चे पूजा और धर्म से तो जुड़ते ही हैं, धमाल भी खूब करते हैं। लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं होना है। न तो स्कूल-कालेजों में पूजा होगी और न ही गली-मुहल्ले में बच्चे धमाल कर पाएंगे। कारण है कि कोरोना गाइड लाइन सभी को मानना है जो है।
सरस्वती पूजा (वसंत पंचमी) इस बार 5 फरवरी को है। लेकिन कोरोना के कारण सभी शिक्षण संस्थान बंद हैं। नतीजतन सरस्वती पूजा के बाजारों की स्थिति अच्छी नहीं है। मूर्तिकारों के परिवार में भी भुखमरी की स्थिति पैदा हो गयी है। कोरोना के चलते सरस्वती पूजा को भी सामुहिक मनाने की मनाही है। जिसके कारण मूर्तिकारो द्वारा बनाई गई मूर्तियां उनके गोदामों में खड़ी-पड़ी धूल फांक रही हैं। उनहें बनाने में उनका सारा पैसा और मेहनत बर्बाद हो चुका है।
अब सरस्वती पूजा का पर्व होने के बावजूद सरस्वती माता की इक्का-दुक्का ही मूर्तियों की ही बुकिंग हो रही है। मूर्तिकारों की दुकानों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। उनका परिवार दाने-दाने को मोहताज हो चुका है।
Read also प्रथम संस्था ने आयोजित किया पारिवारिक सहायता कार्यक्रम
फतुहा के प्रसिद्ध मूर्तिकार विश्वनाथ पंडित (कला कुंज) और नीलम देवी (बंटी आर्ट) की मानें तो इस माहामरी के कारण वो लोग रोजी -रोटी के मुहताज हो गए हैं। अपनी अंगूलियों से मिट्टी को भगवान बना देने का हुनर रखने वाले इन कारीगरों ने जो मूर्ति बिक्री के लिए निर्मित की है, वो अब उन्हीं के यहां खड़ी-खड़ी अपने भक्तों का इंतजार कर रही हैं। और इन मूर्तियों के खरीदार भी नदारद हैं। जिससे मूर्ति कलाकारों का परिवार भूखमरी की स्थिति में पहुँच गये हैं। ऐसे में अब मूर्ति कलाकार सरकार से मदद की आस लगा बैठे हैं। देखना दिलचस्प होगा कि इन कलाकारों को अब कैसे मदद करती है सरकार।
मूर्तिकारों के परिवार की ये स्थिति सिर्फ फतुहा तक ही सीमित नहीं है। पटना सहित पूरे राज्य के मूर्तिकलाकारों की आर्थिक स्थिति कुछ यूं ही चरमराई हुई है।